साला चोर कहीं का...मारो इसको/इसकी..कमीना शब्दचोर
रविवार, 28 दिसंबर 2008
आदरणीय अशोक पाण्डेय जी से करबद्ध क्षमा चाहता हूं क्योंकि मैं ठहरा निपट चूतिया तो पाप और गुनाह को एक जैसी ही चीज समझ बैठा अब पता चला कि ये भाषाई अंतर है हिंदी और उर्दू का इसमें शब्दकोश नहीं देखना चाहिये/ग्यान तो नहीं पर एक शब्द है "ज्ञान" जिसे बांटने के लिये कुछ छात्र चाहिये २००९ में आफ़र है सस्ते में बांट रहा हूं अगर आपकी जानकारी में हों तो मेहरबानी करके मेरी दुकान चलवा दीजिये आजीवन दुकान पर "साभार" लिख कार टांगे रहूंगा। कानून की मां-बहन करने के लिये जस्टिस आनंद सिंह ही काफ़ी हैं लेकिन आप तो बस मेरी करिये क्योंकि आप उन्हें जानना नहीं चाहेंगे या फिर है सच जानने की ताकत(वैसे चुप ही रहेंगे ऐसी उम्मीद है) बुरा आदमी हूं, चोर हूं, गलीज़ हूं अंतरात्मा क्या बहिरात्मा क्या कुछ है ही नही... ईमान,दोस्ती,सच्चाई वगैरह जैसे गरिष्ठ आचरण से दूर रहता हूं इससे पेट खराब हो जाता है और जुलाब हो जाता है कोई आयुर्वेविक दवा असर नहीं करती इसलिये हलकट पन में ही स्वास्थ्य तलाश कर भला हूं। चोर हूं इसलिये भड़ास की आत्मा तक चुरा ली है। आदरणीय सुशील जी के लिये मेरा मोबाइल नं.
09224496555, मेरा ई-मेल rudrakshanathshrivastava7@gmail.com , मेरा ब्लाग - http://aayushved.blogsopt.com
जितनी गालियां चाहें दे/प्यार देना चाहें दे सकते है मुकुन्द ने जो करा उसके लिए उसको इतनी गालियां दीजिये कि आप द्वारा दी गयी गालियों को संग्रह कर एक नयी किताब प्रकाशित करा सके
आत्मन अंकित ने जो लिखा वह अंग्रेजी में है तो समझना कठिन है आशा है अगली बार वे हिंदी में लिखेंगे तो मुझ देसी पिल्ले की समझ में आ सकेगा और रही बात बेनामी, अनामी, गुमनामी की तो आपको बस इतना बताना था कि कम से कम जो खुल कर गालियां दे पाने का साहस था, लेकिन ध्यान रहे गालियां मौलिक हों मादर-फादर छाप परम्परागत गालियों को हमने कापीराइट करा लिया है अतः उन्हें प्रयोग नहीं करें:)
जय जय भड़ास
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