सब की सुनते रहो पर अपने मन की करते रहो
रविवार, 1 फ़रवरी 2009
एक मर्तबा बहुत से मेंढक जंगल से जा रहे थे।
वे सभी आपसी बातचीत में कुछ ज्यादा ही व्यस्त थे।
तभी उनमें से दो मेंढक एक जगह एक गड्ढे में गिर पड़े।
बाकी मेंढकों ने देखा कि उनके दो साथी बहुत गहरे गड्ढे में गिर गए हैं। गड्ढा गहरा था
और इसलिए बाकी साथियों को लगा कि
अब उन दोनों का गड्ढे से बाहर निकल पाना मुश्किल है।
साथियों ने गड्ढे में गिरे उन दो मेंढकों को आवाज लगाकर कहा
कि अब तुम खुद को मरा हुआ मानो।
इतने गहरे गड्ढे से बाहर निकल पाना असंभव है।
दोनों मेंढकों ने बात को अनसुना कर दिया
और बाहर निकलने के लिए कूदने लगे।
बाहर झुंड में खड़े मेंढक उनसे चीखकर कहने लगे कि
बाहर निकलने की कोशिश करना बेकार है।
अब तुम बाहर नहीं आ पाओगे।
थोड़ी देर तक कूदाफाँदी करने के बाद भी जब गड्ढे से बाहर नहीं निकल पाए तो एक मेंढक ने आस छोड़ दी
और गड्ढे में और नीचे की तरफ लुढ़क गया।
नीचे लुढ़कते ही वह मर गया।
दूसरे मेंढक ने कोशिश जारी रखी
और अंततः पूरा जोर लगाकर एक छलाँग लगाने के बाद वह गड्ढे से बाहर आ गया।
जैसे ही दूसरा मेंढकगड्ढे से बाहर आया
तो बाकी मेंढक साथियों ने उससे पूछा-
जब हम तुम्हें कह रहे थे कि गड्ढे से बाहर आना संभव नहीं है
तो भी तुम छलाँग मारते रहे, क्यों?
इस पर उस मेंढक ने जवाब दिया-
दरअसल मैं थोड़ा-सा ऊँचा सुनता हूँ
और जब मैं छलाँग लगा रहा था
तो मुझे लगा कि आप मेरा हौसला बढ़ा रहे हैं
और इसलिए मैंने कोशिश जारी रखी
और देखिए मैं बाहर आ गया।
यह छोटी कहानी कई बातें कहती है।
पहली यह कि हमें हमेशा दूसरों का हौसला बढ़ाने वाली बात ही कहनी चाहिए। दूसरी यह कि जब हमें अपने आप पर भरोसा हो तो दूसरे क्या कह रहे हैं इसकी कोई परवाह नहीं करनी चाहिए।
अर्थात मित्रो आप सभी भड़सी भाई अपनी अपनी भड़ास (मन की व्यथा )इस पवित्र जाल के पन्ने पर अवश्य निकालिए
जय भड़ास बाबा की ,जय जय भड़ास महाराज की
1 टिप्पणियाँ:
बढ़िया है अमित भाई मजा आ गया और आपका भड़ास निकालने के आह्वान को पढ़ कर और ज्यादा अच्छा लगा कि आप इस विषय पर गम्भीरता से सोचते हैं
जय जय भड़ास
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