क्या वास्तव में राजनीतिक इतने बुरे हैं?
रविवार, 15 फ़रवरी 2009
राजनीति एक गंदा धंधा बन चुकी है‚ राजनीति अच्छे लोगों के लिये नहीं है‚ आदि आदि। अक्सर ऐसे जुमले सुनने को मिलते हैं और कौन इन जुमलों को उछालता है जो अपने को अच्छा आदमी मानता है। मुंबई हमलों के बाद मीडिया ने भी जमकर राजनीतिकों की खबर ली थी। परंतु कौन साफ करेगा राजनीति की गंगा को। या फिर कहने मात्र से इतिश्री हो जायेगी और नेताओं को दोष देना क्या सही होगा। आखिर चुनती तो उन्हें जनता ही है और जब जनता चुन रही है तो फिर नेताजी क्यों राजनीति छोड़ें। क्या कभी सोचा है अगर राजनीति गंदी है तो इसे गंदी करने के लिये कौन जिम्मेदार है? अगर राजनीति में अच्छे लोग नहीं आ रहे हैं तो कौन जिम्मेदार है कभी सोचा है। बाहर से कहना आसान है परंतु जब मैदान पर खड़ा होना पड़ता है तो तब पता चलता है कि ब्रेट ली की गेंद कैसे सनसनाती हुई कान के पास से निकल जाती है। आज भी एक आम आदमी का ख्वाब है सुकून भरी जिन्दगी। न कोई टेंशन न कोई झंझट। सिर्फ १० से ५ बजे तक की नौकरी। एक अदद घर‚ बैंक बैंलैंस‚ परिवार‚ बच्चे। अगर ऐसा ही आजादी की लड़ाई लड़ने वाले नेताओं ने सोचा होता अगर सुभाषचन्द्र बोस भी एक सरकारी अफसर बन जाते तो। तो क्या मिल पाती आजादी‚ ले पाते हम खुली हवा में सांस‚ क्या घूम पाते एक छोर से दूसरे छोर तक? राजनीतिज्ञों को दोष देना आसान है परंतु उनका कसूर जनता से कम ही है। आखिर आज पब्लिक बंट चुकी है क्षेत्रों में‚ जातियो में‚ भाषा में‚ सम्प्रदाय में और भी बहुत हिस्सों में। अगर आप अपना वोट देते समय जाति देखेंगे‚ सम्प्रदाय देखेंगे या भाषा और क्षेत्र देखेंगे तो फिर जो आप चुनेंगे उसका नतीजा बेहतर होना असंभव है। अगर राजनीति में किसी की दूकान चल रही है तो मात्र जनता के कारण। अगर जनता ठान ले कि बगैर योग्यता के किसी को नहीं चुनना तो फिर मजाल है किसी की जो बगैर काम के दोबारा फिर चुनकर आ जाय। हम चाहते तो हैं सुकून भरी जिन्दगी परंतु अच्छे सिस्टम के अभाव में मिल पाता है क्या ये सब? आफिसों के चक्कर‚ अदालतों के चक्कर‚ हर जगह चक्कर ही चक्कर। और उम्र बीत जाती है भड़ास निकालते हुए। न व्यवस्था बदलती है और न ही हम। सब कुछ यथावत चलता रहता है।
3 टिप्पणियाँ:
क्षमा करें भाईसाहब ये भड़ास मात्र इस वेबपेज तक ही सीमित नहीं है बल्कि जिंदगी का दर्शन है। आपका स्वागत है धीरे-धीरे आप पुराने दिग्गज भड़ासियों जैसे डा.रूपेश श्रीवास्तव,भाई रजनीश झा,मुनव्वर आपा,मनीषा दीदी आदि से परिचित हो जाएंगे तब आप महसूस करेंगे कि इन लोगों ने कैसे इस मंच को एक रचनात्मक दिशा दे दी है। हमारा उद्देश्य मात्र कागज काला करना नहीं है हम चाहते हैं कि संवेदनाएं रंग लाएं उस दिशा में जो कि सभी के सही हित में हो न्याय,रोजगार मिले और न्यूनतम बुनियादी जरूरते पूरी हो सकें। लिखते रहिये अपनी क्षेत्रीय समस्याओं को इस मंच पर लाइये और हम सब उन्हें हल करने में जुटें ताकि सार्थकता सिद्ध हो।
जय जय भड़ास
नहीं चलेगा....बदलाव आयेगा...हम सब प्रयास करेंगे...हम नहीं करेंगे तो कौन करेगा???
जय जय भड़ास
मित्र,
नेता हमसे है, हमारे लिए है.
बस हमें सोच को सकारात्मक और क्रियाशील करना है.
हम बदलेंगे इसे.
जय जय भड़ास.
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