पिंक रंग में रंगे पिंकी पिंकू

गुरुवार, 12 फ़रवरी 2009

सुबह का अख़बार पढ़ते ही मुझे गाने का ऐसा खुमार चढा की मै गाते ही जा रहा हूँ- मुझे रंग दे मुझे रंग दे हाँ अपने ब्लॉग पर रंग दे। और रंग कोई ऐसा वैसा नही बल्कि खलिश पिंक रंग में रंग दे। जनाब मैंने तो अभी तक यही सुना था की हरे रंग से रंगों , लाल रंग से रंगों और यदि कुछ न मिले तो काले रंग से रंग दो। पर आज मन हुआ जा रहा है की कोई मुझे पिंक रंग से रंग दे , इसी की डिमांड ज्यादे है या यूँ कहिये की भिसद मांग है जनाब। अख़बार के समाचार में , चैनल के व्यापर में और इन्तेरनातिया अवतार में हर जगह बस पिंक पिंक हो रहा है। कोई किसी को पिंक चड्डी तो कोई पिंक साडी और भिया हद तो तब हो गई जब पिंक कंडोम भी गिफ्ट किया जाने लगा। चाहे जो भी हो मुझे तो इन पिंकी और पिंकू की दास्ताँ पर थोडी हँसी आ रही है। पब में बालाओं पर जबसे अत्याचार हुआ तो मुह्फत लोगों ने अपना मुह फाडा। किसी ने बालाओं को तो किसी ने सेनाओं को झाडा । लेकिन पिक्चर अभी बाकि है मेरे दोस्त......क्योंकि असली कूड़ा तो वालेंटिन दे के दिन होना है, देखिये कही ऐसा न हो जाए की ये पिंक रंग वाले पिंकू और पिंकी आपके दरवाजे की घंटी बजा डालें और अपने समर्थन की गंगा में गोता लगाने की गुहार कर डालें। तो सरजी रहिये सावधान आपकी आजादी में पड़ सकता है व्यवधान! इसका समाधान आपको ही करना है। कुछ लोग कहते हैं की अंग्रेज चले गए लेकिन अपनी अंग्रेजियत यही छोड़ गए, मैं पूछता हूँ क्यों न छोड़ जायें ... हम भी तो कहीं जाते हैं पिकनिक-विक्निक पर तो सारा कूड़ा वही छोड़ आते हैं। भला हो उन सफाई कर्मचारियों का जो बिना किसी लानत-मलानत के सारा कचाडा साफ कर जाते हैं, वो भी बिना हमें कोसे। अब देखिये न हमारी संस्कृति कहाँ से कहाँ पहुँच गई... एक वो जमाना जब साधारण से कंडोम को खरीदने के लिए घंटों मशक्कत करनी पड़ती थी। अरे भाई कांफिडेंस नही था, बोलने में हिचक होती थी बस। पर आज देखिये लड़कियां चड्डी गिफ्ट कर रही है वह भी पिंक रंग की जो लड़कों का पसंदीदा रंग हो सकता है! अब लड़के भी कहाँ चुप बैठते कंडोम देने की बाकायदा मुहीम चला राखी है। भला हो ऐसी महान सोच रखने वाले बालक-बालिकाओं का, क्यूंकि जो भी हो कम से कम ये हिंसा तो नही है। कुल मिलकर इस पिंक ने कितनों को संस्कृति के समुन्दर में सींक कर दिया है।
जय भड़ास जय जय भड़ास

4 टिप्पणियाँ:

बेनामी ने कहा…

मनोज भाई,
पिंक रंग की पिंकी व्याख्या को पढ़कर मजा आ गया.
शानदार लिखाई है भैये, पेले रहिये ऐसे ही भड़ास.
जय जय भड़ास

डॉ.रूपेश श्रीवास्तव(Dr.Rupesh Shrivastava) ने कहा…

मनोज भाई काफ़ी दिन बाद पैट्रोल की सुस्सू करी आपने अच्छी आग लगाई है भाया....
जय जय भड़ास

फ़रहीन नाज़ ने कहा…

मनोज भाई
क्या बात है...
ऊऊऊऊऊऊऊऊ........
बड़ी स्स्स्स्स पोस्ट है भाया...
जय जय भड़ास

हिज(ड़ा) हाईनेस मनीषा ने कहा…

मनोज भाई बड़े दिनो बाद लिखा लेकिन जोरदार है मजा आ गया आपने जो आग उगली है उस पर तो अगर राजनेता होते तो ब्रेड सेंक लेते:)
जय जय भड़ास

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