मुक्तक

रविवार, 22 फ़रवरी 2009

मुझसे कोई दूर है, ना पास है,
बस इक टूटी हुई सी आस है.
चल पड़ा हूँ अजनबी रास्ते पर
न जाने मुझे किसकी तलाश है.

2 टिप्पणियाँ:

डॉ.रूपेश श्रीवास्तव(Dr.Rupesh Shrivastava) ने कहा…

अखिलेश भइया अगर अजनबी रास्ता पकड़ कर मुंबई पहुंच जाओ तो मुझे मोबाइल पर एक बार टुनटुना देना मैं आपको कंपनी देने आ जाउंगा फिर आराम से बतियाएंगे और मैं आते समय फ़ेविकोल लेता आउंगा ताकि टूटी आस को जोड़ा जा सके, ई ससुरी फ़ेविकोल की कंपनी हमरे पनवेल के नगीचन है मुंबई में..... :)
जय जय भड़ास

बेनामी ने कहा…

भाई अखिलेश,
तो चला जाए पनवेल.
सारी तलाश ख़तम हो जायेगी. आख़िर यारों के यार का आमंत्रण जो हो गया है आपको.
जय जय भड़ास

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