मुक्तक
रविवार, 22 फ़रवरी 2009
मुझसे कोई दूर है, ना पास है,
बस इक टूटी हुई सी आस है.
चल पड़ा हूँ अजनबी रास्ते पर
न जाने मुझे किसकी तलाश है.
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© भड़ास भड़ासीजन के द्वारा जय जय भड़ास२००८
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2 टिप्पणियाँ:
अखिलेश भइया अगर अजनबी रास्ता पकड़ कर मुंबई पहुंच जाओ तो मुझे मोबाइल पर एक बार टुनटुना देना मैं आपको कंपनी देने आ जाउंगा फिर आराम से बतियाएंगे और मैं आते समय फ़ेविकोल लेता आउंगा ताकि टूटी आस को जोड़ा जा सके, ई ससुरी फ़ेविकोल की कंपनी हमरे पनवेल के नगीचन है मुंबई में..... :)
जय जय भड़ास
भाई अखिलेश,
तो चला जाए पनवेल.
सारी तलाश ख़तम हो जायेगी. आख़िर यारों के यार का आमंत्रण जो हो गया है आपको.
जय जय भड़ास
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