लो जी मैंने लिख दिया जवाब- आपके पास है क्या जवाब????

मंगलवार, 24 फ़रवरी 2009

लो भाइयों फिर से मै हाजिर हूँ एक लोकतान्त्रिक ब्लॉग पर जहाँ मेरी अपनी ही पोस्ट पर मेरी ही टिप्पणी को प्रकाशित करने योग्य नही माना गया और २३ फ़रवरी को रात मे ११ बजे की गई टिप्पणी अभी भी प्रकाशित होने के लिए मोडरेटर महोदय का मुख तक रही है। अब मै उस टिपण्णी को ही यहाँ पोस्ट के रूप मे डाल इस हूँ ।
मूल पोस्ट के लिए यहाँ चटका लगाये... मुझे सांप्रदायिक होने से बचाओ...
इस पर मनीषा दी और मनीष भाई ने अपनी टिपण्णी लिखी है
हिज(ड़ा) हाईनेस मनीषा, February 23, 2009 8:17 AM

अभिषेक भाईसाहब कुत्ते भगवा रंग के होते हैं क्या? होते होंगे तो मैने नहीं देखे। बहुत स्पष्ट शब्दों में कहूंगी कि धर्म का अभिप्राय क्या है-हिंदुत्त्व,इस्लाम या ईसाइयत?ये तो पंथ या संप्रदाय मात्र हैं। इन्हें धर्म मान लेना ही सारे विवाद का कारण है। जैसे धरती का धर्म है धारण करना,अग्नि का धर्म है प्रज्ज्वलन करना वैसे ही राष्ट्रीय धर्म है सर्वांगीण तथा सांगोपांग राष्ट्रीय उत्थान। धर्म शब्द अत्यंत सुंदर है पर गलत हाथों में पड़ गया है जिस कारण इसका अर्थ का अनर्थ हो गया है। जिस दिन जस्टिस आनंद सिंह की लड़ाई निर्णायक स्थिति में आ जाएग आप जैसे सारे भाई-बहनों की समस्या का हल मिल जाएगा, राष्ट्रवाद कोई विवाद नहीं है जो कि अनेक मतों से अलग-अलग हो। जिस दिन आप भारतीय हो कर सोचने लगेंगे और हिंदू-मुस्लिम-पारसी-ईसाई-जैन-बौद्ध आदि के दायरे से बाहर आ कर भड़ास के मूल दर्शन को समझ गये उसी पल आप इस सत्यं-शिवं-सुंदरम की निरपेक्षता को समझ लेंगे लेकिन मन तो पूर्वाग्रहों से मुक्त होना ही नहीं चाहता जो कि हमारे ऊपर थोप दिये गये हैं पीढ़ियों से......
जय जय भड़ास

अमित जैन (जोक्पीडिया ), February 23, 2009 9:38 AM

सिर्फ़ एक दवाई उपलब्ध है मेरे भाई आप के लिए ,
आप प्यार का चश्मा खरीद लो ,
फ़िर उस को फिर पहन लो ,
जब आप उस से इस दुनिया को देखो गे
आप की सारी सोच अपने आप बदल जायगी /
अभी बाजार मे प्यार का टोनिक नही आया है ,
वरना मै झोलाछाप डॉ आप को वो ही prescription मे लिखता


मनीषा दी मै भी तो यही जानना चाहता हूँ कि समस्या कहा है. वैसे मै आपको बता दूँ कि निरपेक्षता तो संभव ही नहीं है. यह खुद में भ्रामक शब्द है जिसके सहारे हम अपनी कमजोरी छुपाते है. और भारतीय होने की शर्त क्या है? इसकी कसौटी क्या है? हिन्दू और हिन्दुत्व को गाली देना? मै तो धर्म से ऊपर उठना चाहता हूँ, लेकिन ये शर्त मेरे लिए ही क्यूँ? और भड़ास का मूल दर्शन क्या है? किसी प्रश्न को बस भावनावो के सहारे टाल देना? मनीषा दी मैंने कुछ प्रश्न भी उठाये थे. अच्छा होता कि आप उन प्रश्नों को तर्क के आधार पर काटती.
और मनीष भाई ये प्यार का चश्मा मिलता कहा है, जरा हमे भी बताना. आपने सही कहा कि आप झोलाछाप डॉ हो वरना आपको पता होता कि डॉ भावनावो के आधार पर नहीं, निश्चित प्रक्रिया से जाच और तर्क के आधार पर प्रेस्क्रिप्शन लिखते है.

मनीषा दी और सभ भडासी भाई मुझे कोई एतराज़ नहीं है अगर आप मेरी बातों को तर्क और प्रमाण से काटे, पर कोरी भावुकता और अंध समर्थक होकर बात करने से आप किसी को अपनी बात नहीं समझा पाएंगे. और डॉ साहब आपसे गुजारिश है कि भड़ास का लोकतान्त्रिक स्वरुप बनाये रखे.
जय जय भड़ास

2 टिप्पणियाँ:

अनुज शुक्ला ने कहा…

समस्या हमारे और उनके दीमाक १९४७ से ही घर कर गई ै
है .जब देस को धर्म का अधार बनाकर बाटा गया
और जो लोग बटवारे मे पाकीस्तान नही गये
हमने मान लीया की ये देस हमारा है , उनका नही
आज जो रास्ट्र वाद प्रचलीत है यह हमरे उसी पुर्वाग्रह की देन
है. रस्त्रभक्ती के लीये रास्ट्र के कीसी ब्यक्ती , समज
धर्म अौर लीन्ग को प्रमाण्पत्र लेने की
आवस्यकता नही है .

ज़ैनब शेख ने कहा…

अनुज भाई बिलकुल सही फ़रमाया आपने मैं आपकी बात से सहमति रखती हूं यही बात हमारे मुंबई के एक नामचीन कवि श्री आलोक भट्टाचार्य जी ने अपनी कविता "बर्बरियत की तारीख" में कही है.....
जय जय भड़ास

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