एक ब्लागर की कुंठा
रविवार, 22 मार्च 2009
कभी–कभी कुंठायें चरम पर होती है। इसका कारण है ब्लाग। ब्लागों पर अनेक लेख पड़ने के कारण ये बढ़ती जाती हैं और तब मेरे पास होता है मेरा एक मात्र हथियार टिप्पणी देकर अपने मन का बोझ हल्का करुं परंतु तब ये कुंठा और बढ़ जाती है जब इंटरनेट कनैक्शन धीमा होता है और जिन ब्लागों पर मैं टिप्पणी करने जाता हूं तो केवल लेख पड़ पाता हूं और कमेंट बाक्स खुलता ही नहीं। बड़ी बेचारगी का अहसास होता है। सुबह से दो ब्लागों पर कमेंट देने की कोशिश कर रहा हूं परंतु उनके कमेंट बाक्स हैं कि खुलने का नाम ही नहीं ले रहे हैं। लोग मेरे सामने कुछ भी लिख रहे हैं और मैं उन्हें दो गरियाने वाले शब्द भी नहीं लिख पा रहा हूं। किसी अन्य की टिप्पणी मुझसे पहले वहां विराजमान हो जाती है और मैं अपने धीमे इंटरनेट कनैक्शन को कोसते हुए हाथ मलता रह जाता हूं। अभी मेरे साथ ऐसा ही हुआ लगातार दो लेखों से अपने को असहमत पाया तो लिख दी दो लम्बी–चौड़ी टिप्पणी फिर इत्मीनान से कमेंट बाक्स के खुलने का इंतजार करने लगा पंरतु कई मिनटों के बाद भी कमेंट बाक्स नहीं खुला। मानो मुंह चिढ़ा रहा हो कि प्यारे तुम्हें ऐसे ही तरसाते रहेंगे और तुम अपनी कुंठा की आग में यूंही झुलसते रहोगे सुबह से शाम होने को आई है परंतु मैं असफल हूं‚ लाचार हूं। कई जगह तो बाक्स खुला मिलता है परंतु वर्ड वेरिफिकेशन दुखी कर देता है लोडिंग दिखा कर कभी लोड नहीं होता। और दूसरे ब्लागर शान से टिप्पणी करते चले जाते हैं। खैर यह लेख लिखकर कुछ देर के लिये अपनी कुंठायें तो कम हो गयी परंतु तब तक दिल नहीं मानेगा जब तक की अपनी असहमती न जता दूं। चाहे सुबह से शाम हो या रात।
2 टिप्पणियाँ:
कठैत जी क्या बात है भड़ास के दर्शन को ठीक से आत्मसात नहीं कर पाए या अभी भी कोई दिक्कत है? जिनसे असहमति है और आपके शब्दों में आप जिन्हें "गरियाना" चाहते हैं और नहीं कर पा रहे हैं तो कुंठित हो कर मनोरोग की स्थिति तक पहुंच जाएं इससे पहले भड़ासोपचार ले लीजिए और स्वस्थ हो जाइये। उन ब्लाग्स की कसकर लानत-मलानत कर लीजिये नाम गांव भी लिखिये उनका बिना घबराये कि लोग निंदा करेंगे किंतु अकारण नहीं। भड़ास के मूल दर्शन के विषय में टुच्चापन नहीं है बल्कि ये औघड़,झेन तथा कबीराना अंदाज से जन्मा है साथ ही इसकी चिकित्सकीय व्याख्या है जिसे मैं एक पोस्ट के रूप में अवश्य लिखना चाहूंगा।
जय जय भड़ास
भाईसाहब क्या बात है किस पर नाराज है और असहमति की बात का सिर-पैर जरा भड़ास पर भी तो खोल कर दिखाइये ताकि हम सब भी अपनी कुंठाओं की उल्टियां करके हल्के हो जाएं...
जय जय भड़ास
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