मैंने गा़लिब से लेकर हरकीरत हकीर जैसे महान लोगों की रचनाएं चुराई हैं

रविवार, 5 अप्रैल 2009

आत्मन हरकीरत हकीर बहन जी ने मेरे ऊपर जो चोरी का आरोप लगाया है मैं उसे खुशी से स्वीकार कर दंड भुगतने को तैयार हूं। भड़ास से जुड़ने के बाद बस सहजता का जो गुण उपजा है वही सबसे बड़ी उपलब्धि है मेरे जीवन की।
बहन हरकीरत हकीर ने भड़ास के सभी सदस्यों को संदेह के घेरे में ले लिया, बड़ी भोली हैं वो ये नहीं जानती हैं कि ये एक कम्युनिटी ब्लाग है यहां सब किस्म के प्राणी हैं भला मेरी किसी करतूत से उनका क्या लेना देना? बहन की टिप्पणी है---
मेरी भडास के सभी सदस्यों से एक गुजारिश है ..आपने जिस महिला की तस्वीर अपने ब्लॉग में (मुनव्वर सुल्ताना) लगा रखी है कृपया उस से पूछें की मेरी नज़्म को अपने नाम से अपने ब्लॉग में डालने का हक उसे किसने दिया......क्या इस घृणित कार्य में आप उसके साथ हैं...???अगर नहीं तो मुझे न्याय दिलाएं ....!!
उन्होंने "लंतरानी" पर टिप्पणी करी थी जो कि मैं व्यसततावश देख ही न पायी आज देखी तो प्रकाशित कर दी ताकि बौद्धिक लोगों को ये न लगे कि भड़ासी आरोप तक नहीं स्वीकारते। अरे बहन! आरोप क्या हम तो सहर्ष इस अपराध को स्वीकार रहे हैं और दंड के लिये तैयार हैं :) कोई जिरह नहीं.....
Harkirat Haqeer ने कहा… Munawwar ultana ji,
Aapne meri nazam ko bina meri anumati ke shirsak badal kar apne blog me apne nam se prakashit kiya hai...yah zurm hai...is se pahle ki mai koi sakht kadam uthaun aapko jald se jald mere blog par aakar apni safai pesh karni hogi.
Harkirat 'Haqeer"April 3, 2009 9:41 PM
हरकीरत बहन को बताना चाहती हूं कि मुझे ये रचना नौंवी कक्षा में पढने वाली एक लड़की की किताब में हिंदी में लिखी हुई मिली, जब मैंने उससे जानना चाहा कि ये किसने लिखा तो उसने कहा कि मेरी आपा ने लिखा है इससे ज्यादा वह लड़की बता न पायी। मुझे रचना बड़ी प्यारी लगी और मैंने इसे उर्दू में अनुवाद करके लंतरानी पर लिख दिया। अब चूंकि हम जैसे लोग रोज़ाना तो इंटरनेट पर आ नहीं पाते हैं तो पता ही नहीं चला कि इस अनुवाद के अक्षम्य अपराध के लिये हरकीरत बहन क्या सख्त कदम उठाने वाली हैं वैसे बहन जी को एक बात बताऊं कि मेरे ब्लाग पर प्रकाशित ९९% सामग्री दूसरों की लिखी है चाहे वो चचा ग़ालिब हों या फिर कोई अन्य; अब हम ठहरे निपट बुद्धू कि ये बेवकूफ़ी आपको इतना ठेस पहुंचा देगी कि आप बौखला कर मेरा नाम सुल्ताना से बदल कर "उलटाना" कर देंगी। कम से कम इसी बहाने आप भड़ास पर पधारीं तो और हम एक कोने में पड़े अबौद्धिक लोग आपसे परिचित हो पाए। किसी बात के लिये अगर माफ़ी चाहती हूं तो वह है कि मैं आप और आपकी महान रचनाधर्मिता से परिचित नहीं थी। आपकी सेवा में अत्यंत ढीठतापूर्वक एक पता नहीं किस महान इंसान की बतायी लघुकथा रख रही हूं--
एक बार एक व्यक्ति अपने आठ साल के बेटे को लेकर एक महान संत की सभा में गया। पिता तो मन लगा कर एक एक शब्द सुन रहा था और भावविभोर हुआ जा रहा था लेकिन बेटा था कि उबासियां ले रहा था। जब घर आकर पिता ने कहा कि मूर्ख! बाबाजी इतनी सुंदर बातें कह रहे थे और तुम उन्हें मन लगा कर सुनने की बजाय उबासियां ले रहे थे तो बेटा बिना कुछ बोले कमरे में गया और अपनी पढाई की किताबों में से एक डिक्शनरी उठा लाया और पिता को देकर बोला कि आपके बाबाजी ने जो शब्द बोले वो सारे के सारे इस किताब में पहले से ही लिखे हैं उन्होंने बस हेराफेरी करके आगे-पीछे करके बोले हैं। बच्चा भाव नहीं समझता है भोला है मासूम है उसे नहीं पता कि बाबाजी कितने महान हैं जो शब्दों की हेराफेरी करके सबसे ज्यादा समझदार बन चुके हैं। मेरा भी हाल कुछ उसी बच्चे जैसा है जो कि आपकी महान कीर्ति से परिचित नहीं थी तो बस लिख मारा। शब्दों की मौलिकता, भावों की मौलिकता और विचारों की मौलिकता से जुड़ी महानता के बारे में मैं जागरूक नहीं हूं। आप जैसी महान ब्लागर महिला जो कि भावों की काव्यात्मक अभिव्यक्ति भी दे लेती है उनकी महान रचना का तर्जुमा करने का अपराध सहर्ष स्वीकार है लेकिन इस अपराध के लिये माफ़ी नहीं मांगूंगी बल्कि आपके द्वारा कोई महान सजा पाना चाहती हूं ताकि लोग मुझ गुमनाम भड़ासिन को भी जान लें कि इस दुष्टा को महान रचनाकार हरकीरत हकीर ने दंड दिया था। आपके दंड का स्वागत रहेगा बल्कि अभी से खुश हो रही हूं ये सोच-सोच कर कि इतनी संवेदनशील नारी इस घृणित कार्य के लिये क्या सजा निर्धारित करेगी। काश वाल्मीकि इस युग में होते तो महाराज तुलसीदास को रगेद रहे होते कि बदमाश तुमने मेरी रचना चुरा ली अब मेरी रायल्टी का क्या होगा।मैं एक बात और ढिठाई से कहती हूं कि हो सकता है कि भाव सड़क पर पत्थर फोड़ने वाली किसी गरीब औरत के हों और आपने उन्हें शब्दों का जामा पहना दिया हो तो उस गरीब को तो ये भी नहीं पता कि कविता क्या और ब्लागिंग क्या....। मैं आपके ब्लाग पर तो जाउंगी ही ताकि इसी तरह की अन्य रचनाएं चोरी के लिए मिल सकें लेकिन जो दिल की बाते हैं हकीकत के साथ यहां पर लिख दिया है आप जैसी प्रतिक्रिया करना चाहें मुझे सिर झुका कर स्वीकार है लेकिन ये सिर शर्मिंदगी से नहीं आपके प्रति आदर से झुका है और इसे झुका रहने दीजियेगा। अगर आप भड़ास पर आकर ये बात कह दें कि आप ही वो शख्स हैं जिसके मन में दुनिया में पहली बार वो विचार,शब्दगुंफन,काव्यात्मक अभिव्यक्ति आयी है तो मैं लंतरानी से उस रचना को अवश्य हटा दूंगी क्योंकि मुझे तो आपकी संवेदनाएं संदिग्ध लगने लगी हैं। आपने प्रकाशित करा है बस भाव तो मेरे ही है प्यारी बहना... अब ये मत कहना कि क्या कमाल की ढिठाई है:)
जय जय भड़ास

3 टिप्पणियाँ:

मनोज द्विवेदी ने कहा…

apne sahi rasta dikhaya hai..samajhdar hongi to samjh jayengi..

बेनामी ने कहा…

आपा,
बोलग की बेचारगी है, सभी अपने नेमत के बजे विवाद से तफरीह करना चाहते हैं मगर हम तो सबसे बड़े विवादी हैं, हरकीरत जी आपकी लेख के पक्ष में आने वालों से गुजारिश की आपकी पाण्डुलिपि को प्रकाशित करवा दें की हमें भी कुछ चुराने का मौका मिल जाए और आपको इतने सारे टिपण्णीकार पाठक.
आपा के प्रश्न के जवाब से आपने बौखलाकर जो टिपण्णी अपने ब्लॉग पर की है वोह एक लेखक कभी नहीं कर सकता है.
आपको साबित करना चाहिए की ये आपने लिखा है जबकि आपा ने मान लिए की ये उन्होंने नहीं लिखा है.
जय जय भड़ास

hempandey ने कहा…

टूटी फूटी उर्दू जानता हूँ. आपके ब्लॉग पर वह नज्म देखने से ऐसा लगता है कि वह आपके द्वारा लिखी है.हिंदी में भी यह ब्लॉग प्रसिद्ध रचनाकारों की रचनाएं प्रकाशित करता है लेकिन स्पष्ट हो जाता है कि रचना ब्लॉग लेखक की नहीं है.

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