आम जनता मंथरा जैसी सोच रखती हैं
बुधवार, 22 अप्रैल 2009
पनवेल जो कि नई मुंबई का दिल कहा जाता है अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति में है। आम आदमी राजनीति के गणित तो जानता नहीं है कि क्यों संसदीय क्षेत्रों की सीमाओं में बदलाव करा जाता है, जनसंख्या घनत्व क्या होता है वगैरह। पहले पनवेल रायगढ़ में आता था और अब मावळ में है और मावळ पूना के पास का क्षेत्र है यानि कि पनवेल से तो कम से कम इतनी दूर है कि किस पार्टी का कौन प्रत्याशी है ये तक अधिकांश लोगों को पता नहीं है। पनवेल में तो मेरे जैसे बंदे ने किसी प्रत्याशी की कोई चुनावी गतिविधि नहीं देखी। तमाम लोगों ने फोन करके मुझे सता डाला कि वोटिंग कब है(पता नहीं क्यों बहुत सारे लोगों को लगता है कि मेरे पास हर सवाल का जवाब है) तो मैंने भी नरकपालिका में फोनिआया, कान में फ़र्म खोल कर कन्फ़र्म करा कि भाई २३ तारीख को ढूंढ कर कि मतदान केन्द्र कहां है वोट डाल आना। पहले अब्दुल रहमान अंतुले महाराज यहां (रायगढ़) से सांसद थे अब इसबार क्या होता है देखना है क्या होता है? कभी कभी मुझे रामायण की मंथरा की याद आ जाती है जो कि हमारी आम जनता जैसी सोच रखती थी उसने कहा था कि " कोऊ नृप होए हमैं का हानी, चेरी रहौं न बनिहौं रानी....."। भगवान जाने गजानन बाबर या पानसरे नामके प्रत्याशी क्या हैं कौन हैं हम तो वही रहने वाले हैं सड़क के गड्ढ़ॊ का रोडटैक्स भरने वाले....।
जय जय भड़ास
4 टिप्पणियाँ:
ye to sahi hai ki aam janta jyaada kuchh nahi janti in jatiltaaon ke baare me ...par manthara jaisi soch mujhe samajh nahi aaya ..
KYU GURUJI ???? HAMARI MEDIA KYA GHAS CHHILANE GAYI HAI..JO JANTA KO YE BATA SAKE KI KOUN KYA HAI? KYA NETAO KA BHASAD COVER KARNA HI AB MEDIA KA PARAM KARTVABYA HAI? KAI SAWAL JEHAN ME UBHAR RAHE HAI...
@मार्क भइया,पापा ने मंथरा की जो सोच लिखी है वही सोच मेरी भी है क्योंकि कोई भी राजा बन जाए हमें तो फिलहाल भीख मांग कर या कमर्शियल सेक्स वर्क करके ही पेट भरना है। हम अपने जैसे इंसान को अब तक इस देश के नागरिक सिद्ध नहीं कर सकते तो फिर कोई भी सांसद बने या विधायक हमें उससे क्या...न जाने किसके नाम का एक फर्जी वोट मुझसे डलवा कर मुझे एक पांच सौ रुपए दे दिये जाएंगे बस्स्स्स्स्स..... हो गया इलैक्शन..। बन गयी नयी सरकार जोड़-तोड़ करके और हम जहां के तहां।
@मनोज भाई,दादा आप तो मीडिया का हाल जानते हैं जिधर टुकड़े मिल जाते हैं दुम हिला कर पहुंच जाते हैं उन्हें जनता से क्या लेना आजकल तो नोट छापने का मौसम चल रहा है, कई लोगों ने तो नई गाड़ियां ले ली हैं। हमारे पापाजी डा.रूपेश सबको वोट की ताकत और अपने अधिकारों के प्रति सचेष्ट रहने के लिये वन मैन आर्मी की तरह हमेशा लगे रहते हैं, कभी कभी खीझ होने लगती है कि क्या इंसान है गधों को घोड़ा बनाने पर तुला है पर ये चमत्कार भी यह ही कर सकते हैं।
जय जय भड़ास
आपने अर्थशास्त्र का यथार्थवादी चित्रण प्रस्तुत किया है.
एक टिप्पणी भेजें