मधुबनी स्टेशन......लालू के रेल के विकास की सच्चाई।
गुरुवार, 23 अप्रैल 2009
पिछले महीने घर से वापस आ गया और अब चुनावी बयार बह रही है, मजबूरी कि मैं इस बयार में अपने को नही पा रहा हूँ। एक सच्चा हिन्दुस्तानी अपने देश कि राजनीति को कितना प्यार करता है ये मैं जानता हूँ, उम्मीद और आशा ने जरुर नकारात्मक छवि बनाई है बावजूद इसके देश हित में देश की बागडोर किसके हाथ में हो कि चिंता सभी को होती है।
भारतीय लोकसभा चुनाव एक ऐसा ही महायग्य है जिसमें सभी शरीक होते हैं और परिणाम की ओर आशा से देखते हैं कि आने वाला नेतृत्व देशहित में बदलाव लेकर आएगा।
एक बार फ़िर से चुनावी महासमर सामने हैं, देश इस समर में शामिल होते हुए भी राजनैतिक लिप्सा के कारण अपने को अलग थक कर रहा है ओर बीन नेताओं की बज रही है।
ये तस्वीरें पिछले सरकार के रेलमंत्री के रेलविकास के दावे की पोल खोल रही है, विकास तो हुआ भाडा भी नही बढ़ा आम आदमी आम ही तो है, झुनझुने से खुश हो जाता है।
होली के अगले दिन ही मुझे घर से विदा होना था बस स्टैंड पहुंचा तो विकास पुरूष नीतिश जी के विकास ने ट्रांसपोर्ट का विकास भी दिखाया, निजी बस की दादागिरी ओर परिवहन ठप्प। जहाँ अन्य राज्यों में सरकारी ट्रांसपोर्ट सरकार की रीढ़ है बिहार में तो रीढ़ ही नही है।
बहरहाल आना तो था ही टिकट था पटना से सो स्टशन पहुँचा की कोई ट्रेन मिले तो आगे सफर करुँ। ट्रेन के आने में घंटे भर था सो पुराने स्कूल ओर कोलेज के दिनों को याद करते हुए स्टेशन पर ही घुमने लगा, रात के बारह बजे होते हुए भी पुराने चाय ओर सिगरेट के दूकान वाले मिल ही गए ओर बातों का सिलसिला भी चल पड़ा। कुछ देर बाद मैंने कहा की यार जरा मैं स्टेशन से घूम आऊं ओर जब नजारा लिया तो ये तस्वीरें उस नज़ारे की गवाह....आप भी देखिये ओर सोचिये विकास की दुहाई या सच्चाई। संग ही अपने मधुबनी स्टेशन के दर्शन भी।
सालता रहा ओर याद करता रहा, दावे ओर घोषणाएं, लम्बी फेरहिस्त की हम कहाँ से कहाँ पहुंचे मगर जब मैं इन सुविधा का जायजा विकास का नजारा लेने पहुंचा तो याद आ गया वो पुराना दिन जब छोटी लाइन हुआ करती थी मगर सुविधा थी । राज्य के परिवहन की बस चलती थी ओर बंदी नही होता था।
क्या लालू क्या नीतिश सभी राजनेता ने जाति को आधार बना कर सत्ता का सुख लिया, मिथिलांचल ने जहाँ लालू को सर आंखों पर बिठाया वहीँ नीतिश को भी ताज दिया ओर सच्चाई याने की..........
वोट लो, जनता को लूट लो।
राज करो, जनता का व्यापार करो।
जागो भारत जागो।
भड़ास का यक्षप्रश्न जारी है।
भारतीय लोकसभा चुनाव एक ऐसा ही महायग्य है जिसमें सभी शरीक होते हैं और परिणाम की ओर आशा से देखते हैं कि आने वाला नेतृत्व देशहित में बदलाव लेकर आएगा।
एक बार फ़िर से चुनावी महासमर सामने हैं, देश इस समर में शामिल होते हुए भी राजनैतिक लिप्सा के कारण अपने को अलग थक कर रहा है ओर बीन नेताओं की बज रही है।
मुद्दाओं की बाढ़ है, घोषणाओं से सरोबार है।
दाल चावल से लेकर रोजगार तक की बीन है
लोग जानते हैं,
परिणाम वही डफली ओर ढाक के पात हैं।
चुनाव भी होगा सरकार भी बनेगी,
आई टी भी चलेगा ओर विकास भी बजेगी।
ना होगा तो आम जन का भला क्यूँकी,
आम तो निचोड़ने के लिए होते हैं,
चुनाव ख़तम, सरकार बनी,
आम के निचोड़ने पर ठनी।
दाल चावल से लेकर रोजगार तक की बीन है
लोग जानते हैं,
परिणाम वही डफली ओर ढाक के पात हैं।
चुनाव भी होगा सरकार भी बनेगी,
आई टी भी चलेगा ओर विकास भी बजेगी।
ना होगा तो आम जन का भला क्यूँकी,
आम तो निचोड़ने के लिए होते हैं,
चुनाव ख़तम, सरकार बनी,
आम के निचोड़ने पर ठनी।
ये तस्वीरें पिछले सरकार के रेलमंत्री के रेलविकास के दावे की पोल खोल रही है, विकास तो हुआ भाडा भी नही बढ़ा आम आदमी आम ही तो है, झुनझुने से खुश हो जाता है।
होली के अगले दिन ही मुझे घर से विदा होना था बस स्टैंड पहुंचा तो विकास पुरूष नीतिश जी के विकास ने ट्रांसपोर्ट का विकास भी दिखाया, निजी बस की दादागिरी ओर परिवहन ठप्प। जहाँ अन्य राज्यों में सरकारी ट्रांसपोर्ट सरकार की रीढ़ है बिहार में तो रीढ़ ही नही है।
बहरहाल आना तो था ही टिकट था पटना से सो स्टशन पहुँचा की कोई ट्रेन मिले तो आगे सफर करुँ। ट्रेन के आने में घंटे भर था सो पुराने स्कूल ओर कोलेज के दिनों को याद करते हुए स्टेशन पर ही घुमने लगा, रात के बारह बजे होते हुए भी पुराने चाय ओर सिगरेट के दूकान वाले मिल ही गए ओर बातों का सिलसिला भी चल पड़ा। कुछ देर बाद मैंने कहा की यार जरा मैं स्टेशन से घूम आऊं ओर जब नजारा लिया तो ये तस्वीरें उस नज़ारे की गवाह....आप भी देखिये ओर सोचिये विकास की दुहाई या सच्चाई। संग ही अपने मधुबनी स्टेशन के दर्शन भी।
एक स्मारक जिसपर ना बैठने का निर्देश, स्टेशन से ढाई फुट नीचे कोई कैसे बैठे। स्टेशन बदला स्मारक जस का तस्।
नया प्रसाधन ताला बंद, रेल मंत्री आयें तभी ये खुलेगा।
अर्र्र्र्र्रर ये कैसा सीन है भैया, स्टेशन है या छावनी? क्या आपने कभी ऐसा सीन देखा है ?
स्टेशन के विश्रामालय से लेकर बाहर तक पुलिस का स्टेशन पर कब्जा, सुविधा तो है मगर आम जन से कोसो दूर!
स्टेशन के विश्रामालय से लेकर बाहर तक पुलिस का स्टेशन पर कब्जा, सुविधा तो है मगर आम जन से कोसो दूर!
सालता रहा ओर याद करता रहा, दावे ओर घोषणाएं, लम्बी फेरहिस्त की हम कहाँ से कहाँ पहुंचे मगर जब मैं इन सुविधा का जायजा विकास का नजारा लेने पहुंचा तो याद आ गया वो पुराना दिन जब छोटी लाइन हुआ करती थी मगर सुविधा थी । राज्य के परिवहन की बस चलती थी ओर बंदी नही होता था।
क्या लालू क्या नीतिश सभी राजनेता ने जाति को आधार बना कर सत्ता का सुख लिया, मिथिलांचल ने जहाँ लालू को सर आंखों पर बिठाया वहीँ नीतिश को भी ताज दिया ओर सच्चाई याने की..........
वोट लो, जनता को लूट लो।
राज करो, जनता का व्यापार करो।
जागो भारत जागो।
भड़ास का यक्षप्रश्न जारी है।
2 टिप्पणियाँ:
bahut achchha aur jagrukta se bhar dene vala post hai yah..
भाई आपने जो लिखा उससे शत-प्रतिशत सहमत हूं लेकिन भारत भर में हर जगह यही हाल है मैं आपकी इस प्रेरणास्पद पोस्ट से एनर्जिया कर अभी आपको मुंबई का हाल दिखाता हूं जहां अभी कुछ समय पहले कसाब जीजा जी ने इतने लोगों को पेल दिया था लेकिन सुरक्षा का हाल देखिये तो सन-सनन-सांय-सांय...
जय जय भड़ास
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