भडास..... फटी हुई है सबकी. (अतीत के पन्ने से......)
गुरुवार, 30 अप्रैल 2009
कल शाम रुपेश भाई का फ़ोन आया कि भाई भडासी जरा १० बजे एन डी टी वी देख लियो ब्लॉग पर सच उगलने वालों से फटने वालों की ब्लॉग पर चर्चा है ।
इन्तेजार की घड़ी खत्म हुई और एन डी टी वी का न्यूज़ पॉइंट शुरू हो गया। मेहमान क्या कमाल के थे। मेहमानों को देखकर एक बात साफ दिखा की ये समाचार चैनल या तो पूर्वाग्रह से पीड़ित है या अपने भविष्य को लेकर आतंकित। ब्लॉग पे चर्चा और सर्वाधिक लोकप्रिय ब्लोग का मोड्रेटर दिखा ही नही, पहली नजर में तो मुझे शक सा हुआ कि क्या ये वाकई ब्लॉग पर ही चर्चा है। क्योँ कि बात शुरु
बच्चन साब से की गयी, आमिर खान पर गयी और फिल्मी धुन गुनगुनाती नजर आयी।
बहरहाल ब्लॉग पे चर्चा शुरु हुई और एन डी टी वी के अविनाश अपनी रिपोर्ट के साथ हाजिर थे, महाराज जी ये बताओ तुम्हारी स्क्रिप्ट तुम्हारी रिपोर्ट साफ कह रही थी की या तो तुम्हें ब्लॉग को टारगेट और अपने लाला , गुरु जी को अपने चुतिये ब्लोगोर गेस्ट को खुश करने को भडास को गरियाने को कहा गया है। जहाँ स्क्रीन पे सिर्फ भडास और सिर्फ भाडासियों का पोस्ट्स, बात-चीत किसी और की हद तो तब हो गयी जब सर्वाधिक लोकप्रिय ब्लोग के मोडेरेटर के नाम कहीं नहीं दिखाई दिए, भाई लोगों वैसी हमारे मोडेरेटर को तुम्हारे दिखाने ना दिखाने से कोई फर्क नहीं पड़ता मगर एक बात तो तय है की मीडिया और पत्रकारिता सचमुच में तेल लेने चली गयी है। टीवी पत्रकारिता हो या ब्लोग सभी की शकल से जो जाहिर हो रहा था कि भडास , भडासी ये चुतिये कि जमात ऐसा कैसे हो गया कि ये वहाँ पहुंच गए जहाँ से इन लोगों को अपने अस्तित्व कि चिंता होने लगी ।
अपने आका और लाला को तेल लगाने वाले ये पत्रकारिता के दुर्योधन , चिंताओं से घिर गए हैं। चिंता है इन्हें अपने अस्तित्व कि क्योँ कि इनकी विश्वसनीयता संदेह के दायरे में है चिंता है इन्हें एक ऐसे प्रतिद्वंद्वी से जो इनके लिए चुनोती बन चुका है क्यूंकि इनमें जो सच दिखाने कि सुनाने कि कहने कि ताकत नहीं है वोह हम भडासी बे हिचक कह सकते हैं और कह रहे हैं. इनके लिए हम चुतिये हैं क्योँ कि ये लाला का भला चाहते हैं और हम अपने भडास से चुतियों को उसका कर्तव्य याद दिलाते हैं.
जय जय भडास
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