आइये बनाएं जूते चप्पलों से एक नया सेतु....

शुक्रवार, 17 अप्रैल 2009

जनता के नेता अब जनता से दूर हैं। सुरक्षा घेरा इतना सघन होता जा रहा है कि जनता अपने नेता को दूर से हाथ हिला कर अभिवादन भर कर सकती है। नेता अपनी ही जनता के बीच असुरक्षित महसूस करने लगे हैं। लोकतंत्र के नाम पर पिछले दशकों में इन स्वयंभू नेताओं ने देश को ये किस स्थिति में ला दिया? जनता बम नहीं फेंकती है और न ही गोली मारती है लेकिन समर्थन तो वोट देकर जता सकती है विरोध कैसे जताए? जूता या चप्पल एक नया सेतु बना रहे हैं लोकतंत्र में नेता और जनता के बीच। जो कहते हैं कि विरोध का तरीका गलत है वे विरोध का संवैधानिक तरीका बताएं वरना गाल बजाना बंद करें। सब कह रहे हैं चीख-चीख कर वोट करो..... अपराधियों को वोट मत दो.... उ.प्र. के शहर बनारस में मायावती माफ़िया डान मुख्तार अंसारी के लिये वोट मांग रही है.... अपराधी कौन है जिसे राज्य की मशीनरी के दुरुपयोग की ताकत से कानून के गेयर में उलझा कर अपराधी बना दिया जाता है या फिर वो जो सरेआम आम आदमी को चूस रहे हैं, खुद को मजदूरों और किसानों का नेता जता कर अरबों-खरबों की सम्पत्ति पर फन काढ़े बैठे हैं, क्या करे वो जो पत्रकार है, क्या करे वो जो कभी प्रिन्सिपल रहा है और क्या करे वो जो रंग दे बसंती फिल्म के एक सहनायक(अतुल कुलकर्णी) की तरह तुम्हारी पार्टी की विचारधारा का आदर करता है...... कौन बताएगा कि क्या करे हर वो इंसान????? देश का कानून बताएगा कि क्या करना है.... संविधान को जूतों की नोक पर सरेआम उछालते ये लोग नेता हैं?? नही...नही...नहीं...हरगिज नहीं...। एक सेतु बनाने का जतन कर रही है आम जनता नेताओ और अपने बीच जूते-चप्पलों का.... समाज शास्त्री खामोश हैं इस अभिव्यक्ति पर.....
भड़ास परिवार उन सभी वानर सेनानायकों को नमन करता है जो अपने अंदर के उस राम का आदर करते हैं जो संविधान पर श्रद्धा व आस्था रखता है और दशानन बन चुके नेताओं की सोच के रावण को जय करने के लिये ये सेतु बनाना चाहता है। मुंबई की लोकल ट्रेनों में रोजाना ही लगभग हजारों एक पैर के ज्ते चप्पल भीड़ के कारण छूट जाते हैं हम वो एकत्र करेंगे और आप सेनानायकों को स्पांसर करेंगे, आप अपने कीमती जूते-चप्पल की जोड़ी खराब न करें।
जय जय भड़ास

1 टिप्पणियाँ:

jamos jhalla ने कहा…

पत्रकार कीकलम चली यानहीं मगर उसका जूता चलगया

बनाए अहिंसा का पाठ पढानेवाले भगवान् महावीर के जन्मदिवस पर एक पत्रकार ने अपनी जमात के लोगों की मौजूदगी मैं केन्द्रीय ग्रह मंत्री पर जूता उछाल दिया \अपनी भावनाओं को जूते के माध्यम से पहुचाना किसी भी सभ्य समाज विशेषकर पत्रकारों मे स्वागतयोग्य नहीं है\इस प्रकार की घटनाओं की पुनरावृति रोकने के लिए ,एक और भिन्दर्वाला पैदा करने,और १९८४ के दंगों के जख्मों को मरहम के लिए समय रहते कुछ किया जाना जरूरी है \



ग्रह मंत्री प .चिदम्बरम की प्रेस कान्फरेन्स मैं १९८४ के दंगों पर सी .बी .आई द्वारा एक आरोपी जगदीश टाइटलर को क्लीन चिट दिए जाने से सम्बंधित पूछे गए प्रश्न को मंत्री द्वारा टाले जाने पर भावुक हो कर एक सिख पत्रकार ने अपना जूता मंत्री कीe दिशाs बी दिया\इससे स्वाभाविक बवाल हो गया चुनावों के इस महा पर्व hकी घटना ने पूरे मीडिया को मानो हाइजैक कर लिया हो \मंत्री को छोड़ दैनिक जागरण ग्रुप के जरनैल सिंहको घेरे रहे \

बेशक जूता बहुरास्ट्रीय कंपनी का था और उसकी कीमत .५ लाख लगाई जा चुकी है मगर

इस अवसर पर जूते से ज्यादा जूता फैकने वाले की बाडी लेंगुवेज को देखने से निम्न बिन्दुओं पर नज़र डालना जरूरी है\



[१]जरनैल सिंह ने सफ़ेद पगडी बाँधी हुई थी\ सफ़ेद रंग शान्ति का प्रतीकgहै \



[२]आई प्रोटेस्ट कह कर जूता उछाला गया\ केवल एक ही जूता से



[3]जूता उछालने वाला जूता उछाल कर सीट की बैक से पीठ लगा कर बैठ
ayaa
[4]सुरक्षा कर्मियों से कोई विरोध नहीं किया मंत्री ने भी कोई भागमभाग नहीं की ulte sabhee se शान्ति banaaye रखने की apeel ही करते रहे



[५]मुद्दे को ठीक मगर अपने इस जूता फैकने के कदम को अनुचित बताया \ mantri ने bhee jarnailको bhavook कहा और



पी.चिदम्बरम ने भी बड़प्पन का parichye देते हुए कोई मुक़द्द्मा दर्ज नहीं कराया



अब प्रश्न उठता है जब दोनों पक्ष ठीक हैं to jootaa kyoon चला \jadish और सज्जन के sansad maarg पर kaante kyoon bich गए \
ye dono praanee sansad me pahuchenge yaa नहीं
इनके कारण दिल्ली और panjaab me kangress आएगी yaa नहीं
मगर यह kleear है की दिल्ली और panjaab me kangress की sattaa और इन दोनों mahaanubhaavon की saansadi मैं कोई रिश्ता जरूर है
कुछ भी हो यह satya है की patrkaaron को press waartaaon मैं दूर bethaayaa जाने lagaa है

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