कहाँ हैं?

रविवार, 3 मई 2009

अपनी आखरी पोस्ट मे एक और बात का विमोचन करना भूल गयी...याद तब आयी जब, गुमशुदा बच्चों की तस्वीरें फिर एकबार दिखीं...इन गुमशुदा बच्चों के परिवार वालोंको उनकी वापसीका इंतज़ार नही होगा? लेकिन क्या कर सकते हैं? हमारे "शांतिप्रिय" देशमे मतदान कितने राज्यों मे "शांती" से होता है? गर होता तो, इतने सारे पुलिस कर्मियों की इलेक्शन ड्यूटी क्यों लगती?

हमारी इस अभूत पूर्व लोकशाहीमे मतदान बिना किसी अवांछित घटनाके हों, इसलिए पुलिस खाता दिनरात लगा हुआ है...लोगों से गाली खाता हुआ, कि, ये राजनेताओं की चमचागिरी है...खैर, राजनेताओं की सुरक्षाका इख्तियार पुलिसने ख़ुद होके नही लिया...ये क़ानूनी प्रावधान है...

लेकिन सोचें, ज़रा कि, जहाँ, इन गुमशुदा बच्चों को ढूँढ नेके लिए पर्याप्त मात्रा मे पुलिस नही है, वहाँ के मतदाता अपना कर्तव्य ना निभाके छुट्टी मनाने चले जाते हैं...! ऊपरसे पुलिसके लिए अपशब्द होते हैं...अपने गिरेबान मे झाँकने की कोई तकलीफ लेगा? क्या ये संदेश हर जगह फैलाया जा सकता है?

क्या पुलिसवालों को तीज त्यौहार मनानेकी इच्छा नही होती? क्या उनके बाल बच्चे नही होते? और गर भ्रष्टाचार के इनपे आरोप हैं,तो इनका क्रमांक भ्रष्टाचारीमे कितवां आता है, ये बात किसीको पता है? पता है,कि, प्रथम क्रमांक पे कौन है? पता है,कि, देशकी आज़ादीसे लेके अबतक, देशकी सेनाके ब-निस्बत, १० गुनासे अधिक, पुलिस करमी मारे गए हैं?
क्या फायदा हुआ इस पुलिस फोर्स की दिन रातकी मेहनतका जब हमारे मतदाता ही पलायन कर गए?

2 टिप्पणियाँ:

मोहम्मद उमर रफ़ाई ने कहा…

शमा जी मैं आपकी बात से पूरी तरह इत्तेफ़ाक रखता हूं। ये बात सिर्फ़ पुलिस विभाग ही क्यों हर सरकारी विभाग में है। कुछ लोग गधों की तरह काम कर रहे हैं और बहुत से लोग मजे मार रहे हैं, जिम्मेदारी का एहसास मर चुका है। यदि आपको पता हो तो अवश्य बताएं कि क्या पुलिस वाले मतदान कर सकते हैं या उन बेचारों को ये अधिकार भी नहीं है? मुझे निजी तौर पर इन खाकी वर्दी के भीतर छटपटाते इंसानों को देख कर दया ही आती है कि लोग इनसे सुपरमैन होने की उम्मीद क्यों करते हैं?
जय जय भड़ास

Akhilesh Shukla ने कहा…

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अखिलेश शुक्ल्
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