कहाँ हैं? कहाँ हैं? कहाँ हैं?
रविवार, 3 मई 2009
Sunday, May 3, 2009
कहाँ हैं? कहाँ हैं? कहाँ हैं?
जबसे पता चला है कि, मुम्बई मे केवल ४५ प्रतिशत मतदान हुआ, बडीही कोफ्त और उदासी महसूस हो रही है..सिर्फ़ इसलिए कि लंबा वीक एंड था? इससे अधिक मतदान तो ५ साल पूर्व हुआ था.....
कहाँ हैं, कहाँ हैं, कहाँ, हैं, जिन्हें नाज़ है हिंदपे वो कहाँ हैं?
कहीँ नहीँ? या फिर जब कुछ करनेका वक्त आता है तो holiday resorts मे चले जाते हैं और फिर बुद्धी वादी बनके अपने ड्राइंग रूम्स से डिस्कशन करते हैं...राजनेताओंको गालियाँ देते हैं? अपनी औलादको यही सीख देते हैं, कि, इस दुनियाकी बडेसे बड़ी लोकशाहीके हम कितने बेज़िम्मेदार नागरिक हैं?
मेरे खयालसे, जिन जिन लोगोंने इसवक्त पलायन किया, वो सब आनेवाले, या फिर हो चुके, आतंकी हमलोंके जिम्मेदार हैं..वो सब एक तरहसे आतंकवादियों से शामिल हैं...हाथ मिलाये हुए हैं...उन्हें इस देशकी राजनीती या राजनेताओंको कुछभी कहनेका हक नही...आतंक वादियों से बदत्तर कायर हैं....
चंद महीनों मे हर शहादत भूल गए...जब ये आतंकी हमला हुआ, तभी मैंने लिखा था," ये जज़्बा सलामत रहे.."....तभी लग रहा था, कि, कुछ सभाएँ, कुछ मोर्चे निकाले जायेंगे और फिर हरेक, अगले हमलेतक भूल भाल जायेंगे...करकरे, काम्टे , पांडुरंग...और बरसों से हो रहे अनेको गुमनाम शहीदोंको...इन पलायन वादियों तक इन हमलों की चपेट पोहोंचेगी तबतक, न जाने कितने और मर चुके होंगे...
भारतने/दुनियाने, मुम्बईपे गर्व किया...किनपे गर्व किया? जो शहीद हुए उनपे? या जिन्होंने मोर्चे निकाले उनपे? आज मेरी गर्दन शरमसे झुक रही है...लगता है, अपनी व्यक्तिगत आज़ादीका हम कितना ग़लत इस्तेमाल कर रहे हैं.... सही कहा था चर्चिलने," your freedom ends, where my nose begins"..हमें कितने इख्तियार दिए जाने चाहियें?
जैसे हर शेहेरके exitpe टोल भरना पड़ता है और अगले टोल पे परची दिखानी होती है, मतदान के दिन, गर उन्गलीपे निशान न हो...और मतदान करनेकी परची ना हो तो, शेहेरके बाहर नही जाने देना चाहिए...या फिर हर exitpe वोटिंग बूथ होने चाहियें...कुछ तो इलाज होगा....वही बात...सीधी ऊँगली से घी ना निकले तो तेढीसे निकालो..पर निकालना ज़रूर है...इन भगौडों की ग़लतीकी सज़ा मासूम क्यों भुगतें??
या तो कमसे मतदान ऐसे दिन हो जब, एक दिन पूर्व या एक दिन बाद कोई छुट्टी ना हो...
आज मुझे कहते हुए शर्म आ रही है,कि, मुम्बईके तथाकथित , जिम्मेदार नागरिक कितने स्वार्थी निकले...कितने खुदगर्ज़...क्यों इन्हें, इनकी कामकी जगहों पे ज़लील ना किया जाय? जैसे पाठशालाओं मे हाजरी लगती है, क्यों इनकी हाज़री ना ली जाय? क्यों न इनके documents पे दर्ज ना हो,कि, इन्हों ने मतदान नही किया...क्यों न इनके पासपोर्ट ज़प्त किए जाय? क्यों ना इन्हें जेलकी सलाखों के पीछे खड़ा ना किया जाय? कमसे कम १ हफ्तेके लिए...? क्यों ना इनकी उन्गलीपे काली सियाही के बदले लाल सियाही का निशान ना लगाया जाय...जो खूनका प्रतीक हो
4 टिप्पणियाँ:
wah
kya baat hai
शमा दी,इस विषय पर सख्ती से अमल करा जाना जरूरी है लेकिन ये भी विचारणीय है कि यदि मेरे पसंद का प्रत्याशी है ही नहीं चार चोर खड़े हैं राजा बनने की उम्मीदवारी में तो मुझे हक है कि मैं उन्हें मत न देकर अपनी लोकतांत्रिक विचारधारा को स्पष्ट कर सकूं। क्या जबरन मुझे पकड़ कर कहा जाना कि चुनो वरना सजा दी जाएगी तो मैं क्या करूं कोई विकल्प है?
Nahee...hame " protest votingkaa" adhikaar hai..aur ham use ikhtiyaarme laa sakte hain...darj karen, ki, hamare ilaaqekaa har numaaindaa elction me khada rehne layaq nahee hai...
mai is sambhavnaakee baat kar rahee hun...aur is adhikaarko, abhi isee electionme prayogme laate hue maine matdaataa ko dekhaa...
Wahan( boothpe) baithe adhikaariyon ko is baatkee khabar nahee thee..yaa wo aasan raah khojte hain...lekin ye suvidha darj hai....ise amalme laanaa zarooree hai...
Is suvidhake baareme janjaagruteebhee zarooree hai...
शमा बहन मै आप का छोटा भाई ,
याद आया ,
कोई बात नहीं ,
पर बहन लोकतन्तर मे जब हमे ये अधिकार है की हम अपना वोट अपने पसंद के उमीदवार को गुप्त रूप से डाल सकते है
तो ये अधिकार क्यों नहीं है की हम अपने मताधिकार का पर्योग सभी उमिदवारो के खिलाफ गुप्त रूप से डाल सके
उस के लिए इलेक्शन comission हमे इस बात के लिए क्यों मजबूर करता है की हम अपनी नाराजगी को ( नेताओ ) से खुल कर सब को बता कर जाहिर करे /
ये तो वही बात हुई न की बिल्ली के गले मे घंटी कोन bhandhe ,
मतलब सब को अपना दुश्मन बना लो
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