**मंगली दोष एवं उसके निवारण हेतु उपाय **
गुरुवार, 7 मई 2009
शास्त्रों के अनुसार यदि कुंडली में जन्म लग्न से प्रथम , चतुर्थ , सप्तम , अष्टम एवं द्वादश भावों में मंगल ग्रह स्थित हो तो मंगल-दोष या मांगलिक-दोष या कुज-दोष या जातक मंगला या मंगली कहलाता है । कुछ आचार्यों के अनुसार , यदि जन्म-लग्न के अतिरिक्त चन्द्र-लग्न ,सूर्य-लग्न एवं शुक्र या सप्तमेश से कुंडली में उपरोक्त स्थानों पर भी यदि मंगल-ग्रह स्थित हो तो मंगली-दोष या मंगला-दोष होता है .
मंगली दोष वैवाहिक - जीवन को विभिन्न तरह से प्रभावित करता है - विवाह में विच्छेद , विलंब , व्यवधान या धोखा , विवाहोपरांत दम्पति में से किसी एक या दोनों को शारीरिक , मानसिक अथवा आर्थिक कष्ट , पारस्परिक मन-मुटाव , आरोप-प्रत्यारोप तथा विवाह - विच्छेद । अगर दोष बहुत प्रवल हुआ तो दोनों या किसी एक की मृत्यु हो सकती है ।फिर भी मंगली दोष से भयभीत या आतंकित नहीं होना चाहिए । प्रयास यह करना चाहिए की मंगली का विवाह मंगली से ही हो क्योंकि मंगल-दोष साम्य होने से वह प्रभावहीन हो जाता है तथा दोनों सुखी रहते हैं । कई कई बार कुंडली में कुछ ऐसा भी योग बन जाता है जिससे मंगल दोष होने के बावजूद भी मंगल दोष नहीं रहता है और ऐसे परिस्थिति में मंगला या मंगली होने के बावजूद भी वह बिना मंगला या मंगली से शादी कर सकता है ।
वास्तव में आप मंगला या मंगली हैं या नहीं इसके लिए किसी अच्छे ज्योतिषी से परामर्श कर लेना चाहिए । वैसे व्यवहारिकता में देखा गया है की ९०% कुंडली में मंगली योग भंग ही रहता है यानि दोष होने के बाद भी दोष समाप्त ही रहता है । उपाय के तौर पर मंगल देव की पूजा अर्चना एवं मंगल ग्रह का *जाप इत्यादि करना चाहिए तथा लाल रंग से पूर्णतया परहेज करना चाहिए तथा इसी साईट पर मंगल ग्रह हेतु बताये गए उपाय करना चाहिए ताकि मंगल ग्रह के दुष्प्रभाव में काफी हद तक कमी लाया जा सके ।
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1 टिप्पणियाँ:
क्या कोई ऐसी समस्या है मानव जीवन की जिसका ज्योतिष शास्त्र में हल न हो?
जय जय भड़ास
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