साहित्यिक छिछोरों डा .रूपेश श्रीवास्तव बन कर दिखाओ तो जरा (अतीत के पन्ने से.....)
सोमवार, 4 मई 2009
राजीव करुणानिधि,वरुण जायसवाल और वो लोग जिनके मां-बाप ने अब तक उनके नाम नहीं रखे अब तक बेनामी हैं, पूरे यकीन के साथ कह सकती हूं कि वरुण जी ने न तो कभी डा.रूपेश श्रीवास्तव को पढ़ा है और न ही उनके व्यक्तित्त्व से जरा सा भी परिचित हैं। भाषा की श्लीलता और अश्लीलता के पैमानों से उन्हें मत नापिये उनके सामाजिक और साहित्यिक कद की पैमाइश के लिये आपको वातानुकूलित घर से निकल कर झोपड़ॊं मे श्रमिकों के साथ, सड़कों पर सोने वाले भिखारियों और बच्चों के साथ, जिस्मफ़रोशी करने वाली लाचार माताओं के साथ और हम जैसे लैंगिक विकलांगों के साथ चंद घंटे या दिन नहीं बल्कि अपनी M.D. Ph.D जैसी बड़ी डिग्रीज़ को किनारे रख कर,एक धनी परिवार की विरासत छोड़ कर,सन्यस्त रह कर जीवन जीने वाले इस परित्राता मसीहा को नापने के लिये नया पैमाना लाना होगा। दिवा से पनवेल और खोपोली तक होने वाले जहरीली शराब के व्यापार को अकेले अपने आत्मबल की ताकत से इस शख्स ने समाप्त करा दिया, मुझ जैसे अनेकों इंसानो को जिनके माता-पिता ने तक सड़कों पर धक्के खाने को छोड़ दिया था इस मसीहा ने सहारा दिया घर, हिंदी सिखाया, गालियां देकर कमर्शियल सेक्स वर्क करने वाले हिजड़े को बहन कह कर सम्मानित दर्जा दिलवाया, कम्प्यूटर सिखाया। जिस ब्लाग भड़ास पर आप उन्हें कलंक कह रहे हैं शायद आप जानते ही नहीं कि यशवंत दादा और डा.रूपेश श्रीवास्तव उस ब्लाग के माडरेटर हैं वे अगर चाहते तो आपका कमेंट हटा सकते थे लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं करा बल्कि आपसे बातचीत और विचारों के आदान-प्रदान का पुल बना लिया। आशा है कि आप मेरी बातों से व्यथित न होंगे। मै यह भाषा प्रयोग कर आपको ये सब लिख पा रही हूं उस बात का श्रेय आपके द्वारा कलंक ठहराये गए डा.रूपेश श्रीवास्तव को ही जाता है किसी बौद्धिक और साहित्यिक मुखौटाधारी ब्लागर को नहीं वरना यशवंत दादा जानते हैं कि भाई ने ही मुझे एक "भड़ासी डिक्शनरी" दी थी जो मुझे अब तक पूरी याद है। राजीव करुणानिधि नामक छिछोरा डा.साहब के ब्लाग आयुषवेद पर जाकर सुअरपन कर रहा है उसे चेतावनी है कि बेटा सुधारे नहीं तो ध्यान रखना हम भड़ासी वैसे भी घोषित तौर पर बुरे लोग हैं तुम्हारी तरह अच्छाई का मुखौटा नहीं लगाते,तुम्हारी औकात तुम्हें दिखाने में जरा भी देर न लगाएंगे।
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