Loksangharsha: बेबस हम है...

बुधवार, 13 मई 2009



(हिन्दुस्तान अखबार से साभार )
पुलिस का मानवीय चेहरा
उत्तर प्रदेश में पुलिस का मानवीय चेहरा यह है कि पुलिस जुर्माने से दंडनीय अपराधो में थानों में लाकर जबरदस्त पिटाई करती है और पैसा वसूलती है कानून यह कहता है कि जुर्माने से दंडनीय अपराधो में मौके पर (जहाँ गिरफ्तारी दिखाई जाती है) जमानत दे दी जानी चाहिए लेकिन पुलिस रुपया वसूलने के लिए थानों में थर्ङ डिग्री का इस्तेमाल करती है । शासन प्रशासन और उच्च अधिकारियो का संरक्षण थानों कि पुलिस को प्राप्त होता है और हिस्सेदारी होती है । हमारी न्यायपालिका स्थानीय स्तर पर खामोश रहती है । कोई व्यक्ति विरोध नही कर सकता है न्याय पालिका के पास अवमानना से करने का मजबूत डंडा है । आम आदमी उत्पीडन से बचने का लिए जाए तो जाए कहाँ ? बेबस हम है ।

सुमन

1 टिप्पणियाँ:

हिज(ड़ा) हाईनेस मनीषा ने कहा…

इस विषय पर शमा दी’की राय जानना चाहूंगी। पुलिस थानों में इस तरह का व्यवहार मेरे लिये कुछ नया नहीं है क्योंकि मैं खुद पुलिसिया अमानवीय व्यवहार की भुक्तभोगी हूं लेकिन हमें किन्हीं भ्रष्ट और दुराचारी व्यक्तियों के आचरण के लिये पूरे विभाग को दोषी ठहराना अब उचित नहीं लगता ये बात वैसी ही होगी कि सारे मुसलमान आतंकवादी होते हैं ठीक वैसे ही सारे खाकी वर्दीधारी दरिंदे होते हैं। हमें मूल कारण तलाशने होंगे कि क्या होता है अक्सर इन पर राजनैतिक माफ़िया का दबाव होता है जैसा कि सबसे नजदीकी उदाहरण हमारे भाईसाहब डा.रूपेश श्रीवास्तव वाले प्रकरण का है जिसमें कि पुलिस ने भाईसाहब को दिन भर थाने में चोर-गिरहकटों की तरह रखा और ऊपर से १४९-ए का नोटिस भी दिया कि अगली बार तो सीधे तड़ीपार कर दिया जाएगा......। दूसरी ओर मुंबई पर हुए आतंकी हमले के सच्चे नायक शहीद स्व.तुकाराम ओंबले के बारे में सोचिये जिन्होंने जान दे दी लेकिन अपना फ़र्ज निभाया और कसाब को गिरफ़्तार करा दिया अब भले ही जुडीशियरी कुछ भी खेल करे....; दोनो चेहरे तो मौजूद हैं जहां भयानकता है वहीं सुन्दरता भी है बस हमारा किससे पाला पड़ा आग्रह निर्माण उस बात से होता है....
इस कुव्यवस्था से हमें ही लड़ना होगा शायद शमा दी’के पास कुछ तरीके हैं सुझाव हैं जिनसे हम नीति निर्धारित कर सकते हैं।
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