अमित जैन तुम अपने राक्षसी काम में लगे हो सबको भुलावे में डाल कर .....

शुक्रवार, 19 जून 2009

अमीत जिन,
तुम्हारे उत्तर मे से खडे किये गये इन सवालो का जवाब तुमने नही दिया है और तुम्हारा हिमायती महावीर सेमलानी तो मैदान छोड़ कर भाग ही गया हम सबको अभी से लग रहा है कि कुछ समय बाद तुम भी इसी अंदाज में गायब हो जाने वाले हो। क्यों नहीं महावीर सेमलानी सीधे विचार-विमर्श पर आता तुम्हारे कंधे पर बंदूक क्यों चला रहा है??

1. आप कौनसे प्रकार के "जिन" है या "जिन" के अनुयाई है?

2. तथा आपको "जिन" बनने कि जरूरत क्यो पडी?

3. "जी" धातु क्या है? हमारा सीधा उत्तर यह रहता है कि हम हमारे बाप की औलाद है यानी अपने बाप के बीज से पैदा हुए है और मानव जाती कि औलाद है तथा ॐकारजी सृष्टि के रचना कार है तथा सब बीज उन्होने ही उत्पन्न किया है| इसमे हमारि आदि उत्पत्ति आ जाती है इसमे हिंदु मुसलमान ईसाई व समस्त मानव वंश आ जाता है|

4. जैन किसको जीतना चाहते है?

5. वाणी, काया, मन जितने से "जिन" बन जाता है या उत्तम कोटि का पुरूष बनता है?

6. जिन भगवान का धरम क्या है?

7. भगवान का क्या धरम होता है?

8. वाणिया और जैन अक्षर का एक ही अर्थ है या अलग अलग अर्थ है?

9. पाप की परिभाषा नही दिये है?

10. अहिंसा मन की स्थिति बताते है यह-- यह तो बच्चो को फुसलाने वाली बात है! तुम्हारा पंथ अहिंसा पर खडा किया गया है यह बडी बात है पर तुम विषय से विषलित हो रहे है| गांधीजी वैष्णव वंश का पुरूष थे और जैन वंश ने पता नही किस तरह से उनके साथ धोखा करके उसे जैन धर्म मे परिवर्तित किया यह तो जैन वंश ही जाने? लेकिन तबसे उन्होने अहिंसा की आड लेकर हिंदुओं को शांत रखा अहिंसा हिंदुओं का हथियार नही है इसका स्पष्ट अर्थ होता है कि गाँधीजी ने जैन धर्म स्विकार किया था? या असली गाँधीजी को मारकर नकली आदमी को गाँधी बनाकर उनकी जगह पर बैठा दिया होगा जैसै बोलिया धोबी और राजा भोज की वार्ता, दो सुग्रीव होने की वार्ता, रावण द्वारा रूप बदलने की मायावी कला, जादुगरो द्वारा मुर्दो को जिंदा और जिंदो को मुर्दा दिखाने की कला, अल्लाउद्दिन के जादुई चिराग की माया ईत्यादी ईत्यादी___ फिर कुछ अरसे के बाद आने वाली जनरेशन के सामने दावा करेंगे कि गाँधीजी ने जैन धर्म स्विकार किया था ____ डा. बाबा साहेब आँबेडकरजी, राजा अशोक, महावीर, बुद्ध, कृष्णजी, रामचंद्रजी सबने जिन धर्म स्विकार किया था? जिनवंश पृथ्वी का इतिहास बदलने व उनके पक्ष मे बनाने के लिये कुछ भी लिखते है लेकीन सत्य झुठ का सामना करने के लिये अपने आप मे अडिग खडा है| अंग्रेजो से देश को स्वतंत्र कराने का मुख्य श्रेय सुभाषचंद्र बोस को जाता है| अमीत जैन! गाँधीजी के अहिंसा के पीछे आपको बहुत नाज़ है लेकिन इस ना्ज़ के पीछे 50 लाख हिंदुओ के नरसंहार तथा करोडो हिंदुओ के विस्थापित होने का ईतिहास छुपा हुआ है साथ ही साथ 5 / 6 लाख मुसलिम नरसंहार भी इस ईतिहास के साथ छिपा हुआ है| अब श्री. हुतात्मा नाथुराम गोडसे के फाँसी के वक्त अदालत मे दिये गये बयान को ध्यान से पढो-- पाकिस्तान से सर्वस्व लुटाकर आए शर्णार्थियों से गाँधीजी ने खुले शब्दो मे कहा था की " वे यहाँ भारत में जान बचाकर क्यों आए? उन्हे वहाँ मर जाना चाहिए था| अगर मुसलमान सभी को मार डालें तो हिंदुओ को मर जाना चाहिए क्योकि मारने वाले हमारे मुस्लिम भाई ही तो है| दुर्भाग्य से यह कांग्रेसी रहनुमा जीवन भर सर्व- धर्म- समभावी हिंदुओं को तो धर्म- निरपेक्षता का उपदेश देते रहे "

आगे हुतात्मा नाथुराम गोडसे बयान देते है की "गाँधीजी, शिवाजी, प्रताप और गुरू गोविन्द सिंह की, निन्दा करते थे और उनको गलत पथ पर चलने वाला कहते थे और इस प्रकार अपने बौध्दिक दिवालियापन का प्रमाण दे रहे थे|"

आगे बयान देते है की "मैं उनकी कार्य प्रणाली और नीति का घोर विरोधी था और हुँ| वास्तव में गाँधीजी ने वह काम किया जो अंग्रेज हिंदु - मुसलमानों में फूट डालकर करना चाहते थे| उन्होने भारत का विभाजन करने मे अंग्रेजो की सहायता की|

गाँधीजी अपने सभी विषयों के स्वयं परमार्शदाता होते थे और स्वयं निर्णायकर्ता|

किस प्रकार गाँधीजी अपनी मुस्लिम तुष्टीकरण नीति के ऊपर अपने देश तक को न्यौछावर कर देने पर तुल गए थे| वे अपनी मातृभुमि पर आक्रमण करने वाले एक विदेशी राजा को सहायता देने के लिए तैयार हो गए थे| गाँधीजी के शब्द निम्नलिखित हैं- "मैं नही समझ सकता की जैसी खबर फैली हुई है, अली भाइयों को क्यों जेल में डाला जाएगा और मैं स्वतन्त्रता से रहुँगा ? उन्होने एसा कोई कार्य नही किया जो मैं न करूँ! यदि उन्होने अमीर अफगानिस्तान को आक्रमण के लिए संदेश भेजा है तो मैं भी उसके पास संदेश भेज दुँगा कि जब वह भारत आएँगे, तो जहाँ तक मेरा बस चलेगा एक भी भारत वासी उनको हिन्द से बाहर निकालने में सकार की सहायता नहीं करेगा|

"बादशाह राम और बेगम सीता" जैसे शब्दो का प्रयोग होने लगा, परन्तु इस महात्मा में इतना साहस न था की मिस्टर जिन्ना को महाशय जिन्ना कहकर पुकारें और मौलाना आजाद को पण्डित आजाद कहें| उन्होने जितने भी अनुभव प्राप्त किए वे हिन्दुओं की बलि देकर ही किए|

यह कितनी लज्जाजनक बात है की मुसलमान यह पसंद नही करते थे कि "वन्देमातरम्" का राष्ट्रीय गीत गाया जाए इसलिए गाँधीजी ने, जहाँ वे कर सकते थे, उसे बंद करा दिया| "वन्देमातरम्" के सम्मान के रक्षा के लिए अनेक देशभक्तो ने अपार कष्ट सहे और अपने प्राणो का बलिदान दिया| किन्तु जब एक मुसलमान ने "वन्देमातरम्" पर आपत्ति की तब गाँधीजी ने सारे राष्ट्र की भावना को ठुकराकर काँग्रेस पर दबाव डाला कि इस गीत के बिना हि काम चलाया जाए| इसलिए आज हम रवीन्द्रनाथ का "जनगणमन" गीत गाते है और "वन्देमातरम्" बन्द करा दिया गया है| क्या इससे भी पतित कोई काम हो सकता है कि एसे विश्व प्रसिध्द कोरस को केवल इसलिए बन्द कर दिया जाए कि एक अञानी हठधर्मी समुदाय उसे पसंद नहि करता| अगले वर्ष ही कांग्रेस ने जिन्ना के सम्मुख आत्म समर्पण कर दिया| पाकिस्तान मान लिया गया| जो कुछ उसके पश्चात हुआ, वह सबको भली-भाँति ञात है| गाँधीजी फिर भी मुसलमानों का पक्ष लेते रहे| जो लाखों हिंदु लुटे-पिटे और नष्ट हुए, इस महातमा ने उनके लिए एक शब्द भी नहीं कहा| वह स्वयं को मानवता का सेवक कहता था, किन्तु उसके लिए मानवता के एक मात्र प्रतीक मुसलमान थे| हिंन्दु उनकी मानवता के क्षेत्र में नही आते थे| इस विचित्र "साधुवृती" को देखकर मुझे आघात पहुँचा| यही वह उप्लब्धी है जो गाँधीजी से 30 वर्षो मे भारत को प्राप्त हुई| इसी को कांग्रेस स्वतंत्रता के नाम से पुकारती है| इतिहास में ऐसा कोई उदाहरण नहीं है कि इतना रक्तपात हुआ और फिर भी उसके परिणाम को शान्तिपूर्वक सत्ता हस्तान्तरण का नाम दिया जाए और उसे स्वतन्त्रता के नाम से पुकारा जाए| यदि 1946-47 और 48 की घटनाएँ भी शान्ति की घोतक है तो पता नहीं अशांन्ति किसे कहते है? स्वतंत्रता दिलाना तो दुर, गाँधीजी ने भारत को एसी दशा मे लाकर छोड दिया कि उसके खंड-खंड हो गए और स्थान स्थान पर रक्तपात होने लग गया| भारत में गाँधीजी के पुर्व शताब्दियों से एक ऐसा स्वतंत्रता आँदोलन चल रहा था जो कुचला नहीं जा सका| गाँधीजी और उनके अहिंसा और सत्य के सिध्दांतो से वह आन्दोलन दुर्बल होने लगा था, किन्तु नेताजी सुभाष चंद्र बोस और महाराष्ट्रा, पंजाब तथा बंगाल के अन्य क्रांतिकारी नेताओं को धन्यवाद देना चाहिए कि लोकमान्य तिलक की मृत्यु के बाद गाँधीजी का प्रभाव ज्यो ज्यो बढता गया, क्रांतिकारी आन्दोलन भी साथ ही साथ प्रखर होता गया| "

THE FOLLOWING IS AN EXTRACT FROM THE BOOK DR BABASAHEB AMBEDKAR WRITINGS AND SPEECHES - VOLUME 9- PAGE 470; Published by Government of Maharashtra

The Bania is the worst parasitic class known to history. In him the vice of money-making is unredeemed by culture or conscience. He is like an undertaker who prospers when there is an epidemic. The only difference between the undertaker and the Bania is that the undertaker does not create an epidemic while the Bania does. He does not use his money for productive purposes. He uses it to create poverty and more poverty by lending money for unproductive purposes. He lives on interest and as he is told by his religion that money-lending is the occupation prescribed to him by the divine Manu, he looks upon money lending as both right and righteous. With the help and assistance of the Brahmin judge who is ready to decree his suits, the Bania is able to carry on his trade with the greatest ease. Interest, interest on interest, he adds on and on, and thereby draws millions of families perpetually into his net. Pay him as much as he may, the debtor is always in debt. With no conscience to check him, there is no fraud and there is no chicanery that he will not commit. His grip over the nation is complete. The whole of poor, starving, illiterate India is irredeemably mortgaged to the Bania.

Appeal by SAINT SHRI. ANOPDASJI MAHARAJ to George V, the king and the emperor of Britain in the year 1909 in Bombay at place now known as Hawkins Institute.

I, Saint Shri Anopdas extend my heartiest thanks to the almighty god who created the earth containing marvelous mountains, rivers, streams and oceans and also created human beings, birds, animals and many strange creatures on this earth but till now nobody in this world has come to know of the mystery of this wonderful creation. In this strange world which a divine creation of god I have noticed another strange thing and that is a mysterious network of evil tricks laid by the mahajans; whosoever is entrapped in this network cant come out of it and finds it impossible to get rid of it. Therefore I beg each with folded palms to the hindus, muslims, fakirs, saints, kings, and emperors of the seven and eight continents of this world and specially to George V, the king and the emperor of Britain and intend to bring to light the fact that evil tricks adopted by the mahajans are magic tricks , indrajal or unholy tricks and are therefore most sinful. Ravana took recourse to such evil tricks, which caused famines and droughts and in this way collected the property of people for his own use. Later King Hirankashyap, King Kansa and King Karun also exploited and agonized people by such evil tricks. Next to them, Balraja also did so and now these baniyas(mahajans) have started causing droughts and famines by means of their devilish tricks. During the times Vibhisana had warned people against Ravanas Indrajal. In the same way I too have cautioned people against the network of evil tricks of the mahajans in this book. Never be entrapped in the network of evil tricks of the mahajans otherwise, once people are entangled in the network of Indrajal their wisdom becomes corrupt without knowing the reasons why they are in loss and how to escape from it. I request king and ever blessing god and also to the British Emperor and emphasise my point to accept my request for common good and oblige me.



दया धरम का मूल है न कि अहिंसा, दया से बढकर कोई अक्षर नही है| दया अक्षर में सबकुछ समा जाता है यानी पृथ्वी पर किसी भी जीव की मदद करना, सहायता करना, किसी भी समस्या से दर्दी को बहार निकालना दया में निहित है दया अक्षर सागर जितना विशाल है जिसे धुर्त लोग समझकर असमझा हो जाते है उनके असली पाप को छुपाने के लिये मंजूर करना नही चाहते है क्योकी वे पाप के ठेकेदार है वे दया को अपनाकर पाप किस तरह से कर सकते है? दुसरी बात अगर जिन वंश साफ सुथरा होता तो फिर उन्हे
जिनवंश जैसा फाटे फोडने की जरूरत कहाँ पडती है| प्रश्न यह भी खडा होता है कि उन्हे जिनवंश मे जाने की जरूरत क्यो पडी?

अहिंसा का असली अर्थ नपुंसकता से है " सबको नपुंसक बनाकर धुर्त अपना काम करता रहे"

"कोई कत्ल
रने आवे तो उसे नही मारो,

कोई घर मे चोरी करने आवे तो उसे चोरी करने दो,

कोई आप की औरतो के साथ बलातकार करे तो उसे करने दो

यानी साँप काटने आवे तो उसे काटने दो,

देश पर शत्रु आक्रमण करता है तो उसे करने दो|

हिंसा, अहिंसा, न्याय तथा अन्याय समय समय की परिस्थितीयों के हिसाब उपयोग में लाये जाते है| युद्ध के स
य अहिंसा के गीत ही गाये जाते वहा पर तो हिंसा के हथियार हाथ में लेने ही पडते है| 26/11 व 11/07 के समय आपकी अहिंसा कितना काम आयी? विश्व को खतम करके यह अहिंसा विश्व विजेता बनना चाहती है यह बात हमारे से छुपी हुई नही है?

ये सब अहिंसा की परिभाषा मे आता है इसलिये जैनवंश के हिसाब से इस अहिंसा को पालने वाले लोग हिजडो की भरती में तथा काफिरो की भर्ति मे आते है

अहिंसा में वीरतत्व नही होता है अहिंसा में झुठ के विरूद्ध लडने की ताकत नही होती है अर्थात अहिंसा स्वयं एक झुठ है, एक ढकोसले का रूप है,

इस अक्षर की आड के पिछे बडे बडे राक्ष
छिपे हुए है जिनकी अदृश्य हिंसा का कोई पार नही है| जिन्हे मातृभूमि, देशभक्ती, चरित्र व मोरल, सत्यवाद, धरमवाद, मानव वाद,पुरूषार्थ व मानव समाज से कोई लेना देना नही है बल्कि वे उसे नष्ट करने मे लगे हुऐ है बहुत जोरो से व पूरी ताकत से एक लाख वर्षो से लगातार नष्ट करने मे लगे हुए है| मानवजाती को अहिंसा की आड लेकर गुमराह करना चाहते है, उसके प्रमाण इस प्रकार निचे दिये गये है| भडास पर उत्तर देने का तरिका भी धन का घमंड अमीत जैन की हिंसा व निरलज्जता से तालुक रखता है|

जिनवंश आज भारत वर्ष मे ही नही अपिवू विश्व भर मे सबसे धनाड कौम के नाम से पहचानी जाती है धनाड होने का दुसरा अर्थ किसी भी तरीके से लोगो का (सफेद/काला) धन व अर्थ खुद की झोली मे डालने से है लोगो का धन खुद की झोली मे डालकर 10 दुकान, 20 दुकान, 10 कारखाने, 10 उद्योग चला
ना एवम इस का अर्थ ही दुसरे के अधिकारो का हनन करना होता है

जिनवंश अपनी आवक की तुलना मे सरकार का टैक्स भी नही भरते है|
जिनवंश काला बाजारी करने नकली माल बेचने में जगजाहीर है

असली माल मे खराब माल मिश्रण करने मे माहीर है

गलत वजन करने मे माहीर है झूठ मूट वस्तु लिस्ट मे लिख देने मे माहिर है

हिसाब करते समय गलत आँकडे बढा कर रूपया वसुल करने मे माहीर है

सोना चाँदि गिर
वी रखकर घर, मीन, जायदाद गिरवी रखवाकर रूपया तीन, चार व पाँच टक्के से मानव वंश को उधार देते है, इसका साफ साफ अर्थ होता है कि जिनवंश मानव वंश को लुटने के लिये आया है क्या ही पाप नही है? क्या ये हिंसा में नही आता है? जबकि बैंके आज भी एक टका मे रूपया उधार देती है इसका अर्थ ही यह है कि जिनवंश मानव वंश के भाई नही है| अगर मानवता के हितेषी होते तो एक टका भी ब्याज इनको लेने कि जरूरत नही है क्योकी इनके पास असंख युगो से पुरी पुथ्वी का धन है|

हिंदुस्तान में 16 - 17 बडे कत्लखाने है उनमे से पाँच छ कत्लखाने जैनो
के है यही आपकी अहिंसा है न?

विराणी जैन भारत का सबसे बडा मच्छी निर्यातक है|

अलकबीर कत्लखाना मेडक (हैदराबाद) मे है जो सुरेंद्रनगर (गुजरात) का रहने वाला जैन कोठारी का है|

सुमेरू अलफारमा, ब्रूकबाँड ये कत्लखाने औरंगाबाद मे है सब जैनी वंश के लोगो के है| यही अहिंसा का असली स्वरूप है|

कानपुर मे कई कारखाने गायो को कत्ल करने के लिये जिनवंश ने खोलकर रखे है|

बडे बडे नेताओं को जिन वंश अपने प्रसंगो मे बुलाते है तथा रूपयों की थैलियाँ भेट करते है तथा नेता लोग वहा उपस्थित होकर क्या देखते है कि नंगे जिन बेठे हुए है उनके गुप्तांगो के दर्शन के लिये आग्रह करते है तथा केमेरे मे फोटो भी खिंच लेते है बेचारे नेता वहा अपने आप को फस गया करके महसुस करते है अब करे भी तो क्या करे? नंगे जिनवंश के दर्शन करवा देते है फिर फोटो खिंचकर जिन समाज मे फोटो का पूरा प्रचार करते है और भले नेताओ को बदनाम करते है मेरे पास करिब करिब 100 नेताओ को अपमानित करने के फोटो मौजूद है क्या यह अहिंसा की परिभाषा मे आता है? जिन वंश है तो मानना ही पडेगा कि बेशरम वंश है परंतु दुसरो की ईज्जत भी लुट रहे है|

जैनी लोग मानव लोगो का करोडो रूपया लेकर जानबुझकर दिवाला निकाल देते है और मानव वंश का रूपया खोटा कर देते है तथा आपस मे जिनवंश समझौता कर देते है क्या यह अहिंसा है?

जैन वंश सदियो से सोना स्मगलींग करने मे उस्ताद है हर कानुन को तोडकर विश्वभर से जैन वंश सोना हिंन्दुस्तान मे लाकर गायब करते थे और आज भी कर रहे है इसको देश द्रोहिता कहेंगे या हिंसा कहेंगे या दानचोर कहेंगे?

माल गायब करके बाजार मे माल का भाव बढाकर बेचना तथा काला बाजारी करना जैन वंश के दाये हाथ का खेल है, इस तरह संसार के गरिबो को लुटना क्या यह हिंसा नही है?

जैन वंश अलग पंथ होने के बावजुद हिंदुस्तान के सिधे सरल मा वंश को जिनवंश कि असली पहचान कभी नही बताई तथा हर जगह विश्वभर मे हिंदु धरम का प्रतिनिध्व करते रहे और आज भी कर रहे है क्या मानव वंश को यह बहुत बडा धोखा ही है इसको अहिंसा बोलते है|

जैनीवंश के करोडो रूपयों जिनालय बनाने मे खर्च किये जाते है तथा आज पूरे हिंदुस्तान मे चार से पाँच लाख जिनालय निर्माणाधिन है क्या जमीन के शरिर को तोड तोड कर पत्थर निकाल कर जिंदा जमीन माता को खंडित कर पत्थर की मुर्ति के लिये जिनालय बनाना पाप कि परिभाषा मे नही आता? क्या यह बहुत बडी हिंसा न
ही है|

हिंदुस्तान कि जमीन पर कब्जा करने के लिये गौशाला के नाम पर लाखो करोडो एकड भुमी पर गौशाला खोलकर ट्रस्ट बनाकर
जमीन पर कब्जा करने का षडयंत्र जिनवंश ने बनाया है वहा देखने जाओतो पता चलेगा कि गाये कत्लखानो मे भेज दी जाती है या फिरउनका खुन इन्जेक्शन देकर निकालकर दवाई बनाने मे भेजा जाता है क्या यह असली हिंसा का रूप नही है|

चंद्रस्वामी जैनजिसका असली नाम नेमीचंद जैन है लेकिन हिंदु नाम के पिछे नेताओ से ठगाई कर रहा है और खुद का असली नाम छुपा कररखा है| इसको क्या कहेंगे?

ओशो रजनीश भी चन्द्रमोहन जैन था उसने काफी लोगो का खुन बदलाया व धरम भ्रष्ट किया है?

जैनवंश के साधु सुबह सुबह नंगे सब जगह घुमते है खैर वे तो नंगे हो गये उनकी तो इज्जत का कोई सवाल पैदा नही होता है पर इस देश के मानव जाति के लोगजिनकी आँखो के सामने नंगे जैन खडे रहते है या जाते है तो उनकी इज्जत का क्या हाल होता है बहन बेटियो की इज्जत का क्या? बच्चो समाज देश का क्या? मातृभूमी का क्या? क्या यही जिन वंश की असली हिंसा है?

मानवता की पुरी अस्मिता यह वंश निगल चुका है फिर भी कहते है भुखे है और कुछ भी नही किया है इसका अर्थ यह होता है कि जैनवंश सदियों से अशलीलता के ठेकेदार है "नंगा शरीर रखना विश्व के सबसे बडेअपराध मे आता है"

"हकिकत अहिंसा का अर्थ जैन वंश के लिये है कि उनकी सब अभद्रभद्र हरकत देखकर भी मानवजाती उन्हे नही मारे उनके साथ अहिंसा का वर्ताव करे

अहिंसा का सही मायना यही है

जिसके असली फायदे धुर्त लोगो को मिले तथा मानवजाती की इज्जत विश्व मे खराब होती जाय"

जैनवंश की भंगार कि दुकाने कारिगरो को चोरी करने का प्रोत्साहन देकर लाखो प्राईवेट सरकारी कारखाने बंद करवा दिये है| यह असली हिंसा जिनवंशो की है|

जैन बनिये कहते है कि दिवाली के दिन लक्ष्मीजी उनके घर का दरवाजा खुला देख गयी है दुसरो के घरो के दरवाजे बंद थे, हम पुछना चाहेंगे कि लक्ष्मी एक बनिये के घर गयी थी वह तो धनी होगया फिर दुसरे जैन बनिये धनी कैसे हो गये क्योकि लक्ष्मीजी एक ही बनिये के घर गयी थी तथा सबके घर लक्ष्मीजी जा भी नही सकती है, दुसरी बात लक्ष्मीजी एक औरत रही होगी जब ही तो चलकर उनके घर तक पहुँची फिर धन जो कि निर्जिव वस्तु है उसके साथ एक जिवित नारी की कलपना या तुलना बनियों ने करके यह बात कैसे फैलाई है इसकी पूरी पूरी तहकिकात होनी चाहिये तिसरी बात एक लक्ष्मीजी जो महान पराकर्मी पुरूष श्री विष्णुजी की धरमपत्नी थे अतः अगर जैन बनिये उनकी बात करते है जब तो इन्हे मार मारकर खिमा ही बना लेना चाहिये क्योंकि विष्णुजी की धरमपत्नी लक्ष्मीजी हम सब की माताश्री है| यही जैनवंश के हिंसा का असली प्रमाण है|

आज दुनिया मे जितने भी गबोडे फैलाये हुए है वे जिनवंश के है|

जैनियो के पास धन अपरंपार है और सब हिन्दु मुसलमानो का ही है|

अमीत जैन आज कुदकी मार रहा है वह भी धन कि गर्मी के माध्यम सेही मार रहा है यह तुम्हारी असली हिंसा है|

मदर इण्डिया फिल्म में जैन सौदागर के असली पाप को दर्शाया गया है उससे प्रमाण मिलता है कि जैन वंश कितना हिंसक है|

हिटलर को जैनवंश व यहुदिवंश की मिठी व जहरिली हिंसा के आक्रमण के विरूद्ध क्रूर हिंसा चलाने की जरूरत महसुस कि थी क्योकी यहुदि मानव वंश का खुन परिवर्तित करना चाहते थे मुख्य वजह यहुदियो के चरित्रहिनता के विरूद्ध थी न कि धन व सत्ता| विश्व युद्ध कि मुख्य वजह ही यहुदियो कि चरित्रहिनता थी और आज भी है| यहुदि व जैनो मे कोई फर्क नही है|

पुरे हिंन्दुस्तान के लोगो की जबान को जैनवंश ने खुद के मिडिया के माध्यम से एवम गरीबी की जंजीर से बांधकर रखा है|

आज इन्सान भुखा भी मरे तो किसी के पास फरियाद करने जा नही सकता है क्योकि पूरा सिस्टम पोकल कर दिया गया है और पुरी कंमांड जैन वंश के हाथ मे धन के बल पर करी हुई है यह हिंसा नही तो और क्या है?

तथा जैनवंश का दुसरा हथियार---

जैनवंश जब जिनवंश है तो काला जादु, अविधा, आकल्ट, तिसरी दुनिया, उडन तस्तरी, चंद्र सुर्य ग्रहण, भुकम्प, वर्षा का होना न होना उनके दाये हाथ का खेल है क्योकि जिनवंश ही इन बातो मे माहिर होता है और कोई नही- फिर मेरू पर्वत, अष्टापद, महाविदेश क्षेत्र, शत्रुंजय, कालापानी, परलंका इन सब का संचालन जैनवंश के हाथ मे ही है| फक्त संसार के मानव लोगो को मालुम नही है इसलिये जैनवंश हमेशा अपने मगरूर व घमंड मे रहता है और उसके दो ही कारण है एक तो काला जादु कि ठेकेदारी व दुसरा पुरे विश्व का धन उनके कब्जे मे है| अमीत जिन------

शत्रुंजय--- नाम से हिंदुस्तान मे कितनो ही प्रसिद्ध जिनालय बनाये हुए है कुछ के नाम बावन जिनालय शत्रुंजय है जिन मे से बिहार का संवेतशिखर शत्रुंजय तिर्थ, गुजरात पालितना का शत्रुंजय तिर्थ, मुंबई-भाईंदर का बावन जिनालय शत्रुंजय तिर्थ, कर्णाटका का श्रावण बैलगोडा शत्रुंजय तिर्थ ईत्यादी ईत्यादी, एक तरफ अहिंसा की ठेकेदारी दुसरी तरफ शत्रुओ पर विजय पाने के लिये शत्रुंजय जिनालय बनाये है जिनालय अपने आप मे शत्रुओ से लड ही सकते है इसका अर्थ जिनवंश जिनालय मे बैठकर अप्राकृतिक भाषा द्वारा मंत्र बोलकर शत्रुओ को जितते है फिर मानवजाती को बताने के लिये झुटी अहिंसा फैलाने का मजा क्यो नही लेंगे, शत्रुओ को मारने के लिये बडी बडी योजनाए खडी की है और शासन कर्ताओ की नजरो मे अहिंसक बने हुए है| आपके कौन कौन शत्रु है उनकी जरा सुची भेज दिजीए?

लगातार----- आगे भी जारी

जगत हितैषी

आप सबका अनूप मंडल

जय जय भड़ास

जय नकलंक देव


1 टिप्पणियाँ:

बेनामी ने कहा…

ahinsa dharm ko kayart kehne wale ahinsa ka matlab tumhe jab malum chalega jab koi atankawadi ya or koi tumahre paiwar ki hatya kar dega. tumhare dimag ki upaj padkar aisa lagta hai ki iske alawa tumhe or kai tarika samajh me nahi aayega . jain dharm ke bare me tumhara gyan adhura hai or adhura gyan khatarnak hota hai puri jankari jutao . itihas gawah hai hinsa ke raste par chalne wale be mout mare gaye hai or ahinsa ko manne walo ne apni amrgi se is manav sharir ko tyaga hai . jain dharm ke bare me tumne jo galat bate boli hai wo is bat ki or sanket karti hai ki tumhari maa ka sambandh kisi janwar se raha haga ya ek se adhik purusho ke neeche wo aayee hogi . tabhi tumhare dimag me aisi bate aa sakti hai .me tumhare is comment ka uttar isliye de raha hu ki me ek thakur hu or gaon me rahta hu hamare yahan thakur or kulmi samaj me barso se ladai char rahi thi or dono taraf ke loga ne apni jane gawai hai par ek ahinsa ke pujari ne hame sahi raste par lakar hamara bhavishya surakshit kar diya hai ab hamare gharo ki ourte jawani me vidhwa nahi hoti hain .

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