अनूप मंडल मै कही नही गया , , आखे खोलो देखो , मे रोज यहाँ हु

शुक्रवार, 19 जून 2009

अरे भाई आप से कुछ सवाल मैंने , और भड़ास समुदाय नए मिल कर बस एक ही सवाल किया था जो इस पोस्ट मे है / इसे फ़िर से ध्यान पूर्वक पढ़े / फ़िर लिखे / सिर्फ़ बोलने ना , उसे सिद्ध भी करे रही बात मेरे गायब होने की तो आप भूल रहे है जनाब की मै भड़ास पर निरंतेर अपनी उपस्थिति दे रहा हु / और आप विश्वाश रखे मे अकेला ही आप के द्वारा किए जा रहे इस जैन धर्म विरोधी अभियान को ख़तम करने का हौसला रखता हु / आप ने सब्द बाण तो चला ही लिए है , पर इन निर्थक बातो को सिद्ध भी तो करे / मे आप को मायुश नही करुगा और आप की हर पोस्ट के १२ घंटे के अंदर आप को जवाब जरूर दूगा

Thursday, June 11, 2009
सोनी जी मेरे विचित्र व्यवहार की वजह सिर्फ़ ये है .....

सोनी जी आप के द्वारा लिखा गया बंधुत्व की भावना से भरा लेख पढ़ा और मई फिर से अनूप मंडल के कुतर्को का जवाब देने के लिए तयार हो गया ,
सबसे पहले यदि अनूप मंडल मन की कषाय को छोड़ कर निर्मलता पूर्वक यहाँ मंच पर धर्म जैसे संवदेनशील मुदे पर बात करे तो कोई भी सहर्ष तयार हो जायगा /
पहली बात अनूप मंडल कहता है ये धातु क्या होता है ?
अनूप मंडल यदि हिंदी भाषा या संस्कृत भाषा को जानता है तो उन्हें व्याकरण शब्द जरूर पता होगा /
यदि नहीं पता तो किर्पया पहले भाषा को पढ़ ले /
जब कोई भाषा साहित्य की समृद्धि से जगमगाने लगती है, तब उसके व्याकरण की जरूरत पड़ती है/
इस व्याकरण के लिए पदों को ("मध्यस्तोऽवक्रम्य") बीच से तोड़ तोड़कर प्रकृति प्रत्यय आदि का भेद किया-व्याकरण बनाया गया /
इसी परकार भाषा विज्ञानं सब्द शास्त्र है /
व्याकरण तथा भाषाविज्ञान दो शब्दशास्त्र हैं; दोनों का कार्यक्षेत्र भिन्न-भिन्न है;
पर एक दूसरे के दोनों सहयोगी हैं। व्याकरण पदप्रयोग मात्र पर विचार करता है;
जब कि भाषाविज्ञान "पद" के मूल रूप (धातु तथा प्रातिपदिक) की उत्पत्ति व्युत्पत्ति या विकास की पद्धति बतलाता है।
व्याकरण यह बतलाएगा कि (निषेध के पर्य्युदास रूप मे ), "न" (नञ्) का रूप (संस्कृत में) "अ" या "अन्" हो जाता है।
अब सोनी जी एक शब्द जिन का मतलब बताने के लिए मुझे पूरा व्याकरण इन को बताना पड़ेगा /
क्योकि मुझे उम्मीद है की अगली पोस्ट मे अनूप मंडल लिखेगा
ये भाषा विज्ञानं क्या है? ,
ये पद पर्योग क्या है ? ,
ये उत्पति व्युत्पति क्या है ? ये परुदास क्या है ?
अब ये अनूप मंडल व्यथ की बात करते है की आप अपने भगवन की तस्वीर भेजिए /
कितनी बचकानी बात है /
सिर्फ किसी स्थापित मूल्यों को तोड़ मरोड़ कर उन से उन का श्पष्टिकरण मांगना बेव्खुफी नहीं तो क्या है / ---------------------------------------------------------------------------------------------------- बङे से बङा शहर जैन वंश को बणीयो के नाम से ही संबोधित करते है शायद आप
यह कहेगे कि हम बनिये नही है

बनिया अक्षर का असली अर्थ बिगङी औलाद से है जो अर्थ
ङिक्सनरी से नही मिलता है सौदागर का अर्थ होता है जो पुरूष माँ के घर मे
चोरी करता है वह सौदागर के नाम से जाना जाता है महाजन का अर्थ होता है
माँ के साथ बेटा, पति की तरह वर्ताव करके औलाद पैदा करे- उस औलाद को
महाजन वंश कहाँ गया है अमीत.....
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अब इस परकार का लेख जो ये महोदय लिख रहे है ,
वो बाते किस dictionary से उन होने ये शब्दार्थ लिए है /

सिर्फ उन की इन जातीय मानसिकता के चलते मैंने उन से बात न करना ही उचित समझा / क्यों की मे अनूप मंडल के स्तर तक गिर कर नहीं लिख सकता था /

Friday, June 12, २००९ मुनादर सोनी जी द्वारा पर्काशित


मैं मानता हूं कि दैवीय और राक्षसी प्रव्रत्ति का मिश्रण ही तो है मनुष्य.....

आत्मन अनूप मंडल से करबद्ध निवेदन है कि अमित जी ने आपके समक्ष जो बातें रखी हैं उन्हें व्यवहारिक तरीके से यदि सामने लायी जाएं तो ये एक अत्युत्तम विकल्प है। आप इस बात का स्पष्टीकरण अवश्य करें कि आपने जिन शब्दों के आपत्तिजनक अर्थ बताए हैं उनका आधार कौन सा शब्दकोश है और किसने लिखा व कहां से प्रकाशित हुआ है। यदि आपके अनुसार जैन फेरबदल करवाने में माहिर हैं और शब्दकोशों के शब्दों में हेराफेरी कर देते हैं तो इस बारे में ठोस प्रमाण भड़ास के मंच पर लाइये ताकि आपकी बात की पुष्टि हो सके। भाषा व उसके व्याकरण में उलझ कर मुख्य मुद्दा जिसमें कहा गया था कि जैन राक्षस होते हैं वो तो कहीं गुम होता प्रतीत हो रहा है। मेहरबानी करके सभी बातों को क्रमबद्ध तरीके से प्रस्तुत करें। ये अवश्य ध्यान रखिये के आपकी लिखी हुई कोई भी बात भड़ास के वैश्विक मंच के द्वारा पूरी दुनिया में पहुंच जाती है यदि कहीं भी कोई ढीलापन रहा तो विमर्श लड़खड़ा जाता है। निजी तौर पर मैं मानता हूं कि दैवीय और राक्षसी प्रव्रत्ति का मिश्रण ही तो है मनुष्य। अब आप क्या बताना चाहते हैं, क्या राक्षस कोई विशेष प्रजाति है अथवा दुष्ट सोच के मानव? यदि दुष्ट मानव ही दानव या राक्षस हैं तो ये सिर्फ़ जैन ही क्या हर समुदाय में मिल जाएंगे बल्कि ज्यादातर तो इन्ही की भरमार है। शायद मेरे भीतर भी कहीं न कहीं एक राक्षस खामोश बैठा रहता है जो पता नहीं कब किन परिस्थितियों में बाहर निकल आएगा। आप दोनों के स्पष्ट आलेखों का इंतजार है मात्र शब्द-प्रपंच से बचें।
जय जय भड़ास




आप का जैन भाई -------- अमित जैन

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