पर्यावरण मरण दिवस का सफल आयोजन !
शनिवार, 13 जून 2009
अभी कुछ दिन पहले की ही बात है। पर्यावरण दिवस बड़े धूम-धाम के साथ मनाया गया। आप मुगालते में मत रहिये की इन गोष्ठियों और सभाओं से पर्यावरण को बचा लिया जाएगा। देश-विदेश के वातानुकूलित कमरों में इम्पोर्टेड फर्निचेर पर विराजमान होकर तथा कथित पर्यावरण प्रेमियों ने हरियाली को बचने की वकालत बांच डाली। आप सबको तो पता ही है की कथनी और करनी में उतना ही अन्तर है जितना पड़ोसी मुल्क की बातो में । इन मह्शयों को सब पता है की जिस इम्पोर्टेड फर्नीचर पर इन्होने अपने नकली शरीर को टिकाया हुआ है वह लकड़ी भी हरे जंगलों को काटकर ही लायी जाती है। खैर छोडिये जनाब ! ये दुनिया ही एक दिखावटी सब्जबाग के सिवा कुछ भी नही है। यहाँ जो दीखता है वाही बिकता है वाली कहावत फिट बैठती है। इधर ये नुमैन्दे पर्यावरण-वर्यावरण और ग्लोबल वार्मिंग -शर्मिंग पर भासन भिड़ा रहे उधर पुरी दुनिया पानी -पानी हुए जा रही है..अपने यहाँ तो कितनों ने पानी के लिए बाकायदा कत्ल तक कर डाला है । मगर इनको कौन समझाए ये तो बिसलेरी से कम कुछ गटकने को तैयार ही नही हैं। चलिए महाराज अभी अभी ख़बर मिली है की भगवान भास्कर जो की फ्री में पुरी दुनिया को उर्जा उडेले जा रहे हैं ने एक विज्ञापन निकला है । उन्होंने कहा है की अब रौशनी पर भी टैक्स लगेगा । जब तक लोग बकाया राशिः का भुगतान नही करेंगे तब तक सवेरा नही होगा। अब क्या था कोट-पैंट और ताई लगाये महापुरुषों ने फिर से बड़े बड़े होटलों में चर्चाएं सुरु कर दी । करोडो रुपये तो यु ही फूंक दिए गए सिर्फ़ योजनायें बनने में ..और नतीजा क्या निकला एकदम सिफर ! फिर वाही पुरानी परम्परा ही हमारे कम आई। कुछ बुजुर्गों और अच्छी महिलाओं ने भगवन सूर्य की उपासना की और उन्हें प्रसन्न करके टैक्स माफ़ करवा लिया ।
कहने का मतलब सिर्फ़ इतना है की सबसे पहले अपनी अन्तर-आत्मा में ईमानदारी से झांकना चाहिए। क्योंकि होता क्या है की हम करने कुछ जाते है और हमारे मन कुछ और ही चल रहा होता है। इससे अपना भला तो किया जा सकता है लेकिन इसकी कीमत औरों को चुकानी पड़ती है।
2 टिप्पणियाँ:
मनोज भाई कई दिनों से प्रतीक्षा थी कि आप आकर कब भड़ास के हवन कुंड में अपनी समिधा डालेंगे सो आपने कस कर झोंक दिया, उठने लगी हैं ऊंची लपटें....
जय जय भड़ास
बेहतरीन और उर्जावान,
बस भड़ास कि मुहीम जारी रखें.
जय जय भड़ास
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