लो क सं घ र्ष !: लज्जित हो मेरी लघुता

शुक्रवार, 12 जून 2009

निराधार सपने टूटे,
क्रंदन शेष रहा मन का ।
भ्रमता जीव ,नियति रूठी,
परिचय पाषाण ह्रदय का॥

लज्जित हो मेरी लघुता ,
कोई नरेश बन जाए।
अधखुली पलक पंकज में,
जगती का भेद छिपाए॥

आशा की ज्योति सजाये ,
है दीप शिखा जलने को।
लौ में आकर्षण संचित
है शलभ मौन जलने को॥

-डॉक्टर यशवीर सिंह चंदेल 'राही'

1 टिप्पणियाँ:

बेनामी ने कहा…

अति सुन्दर,
जारी रहें.
जय जय भड़ास

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