प्रिय भड़ासियों! भड़ास पर प्रतिबंध की हार्दिक शुभेच्छाएं
सोमवार, 27 जुलाई 2009
प्रिय भड़ासियों! धूर्त लोगों ने आजकल ये दस्तूर बना लिया है कि जो सच को सच और झूठ को झूठ कहने का साहस कर रहा है उसको खामोश करने का हर संभव प्रयास करो। यदि उनका कमीनापन कहीं भी जगजाहिर करा जाए तो उसे किसी भी तरह मिटा दो चाहे सत्य बताने वाले को ही खत्म करना पड़े। भड़ास ने भी बहुत बुरे समय को झेला है, तिरस्कार और बहिष्कार से हमें रोकने की कोशिश करी गयी हैं लेकिन "कुछ तो जरूर बात है कि हस्ती नहीं मिटती सदियों से रहा है दुश्मन दौर-ए-जहां हमारा" ये तो हमारे लिये नयी ऊर्जा का कार्य करता है। हमारे लिये भड़ास मात्र इंटरनेट पर एक ब्लाग नहीं बल्कि जीवनशैली है। हमने इस पर तमाम मुखौटाधारियों के असली चेहरे उजागर लोकतांत्रिक तरीके से करे और जिसके बदले में हमें मारपीट,धमकियां,पुलिस लाक अप की सैर तक झेलना पड़ा पर हम भला क्यों बदलने चले... सबकुछ सीखा हमने न सीखी होशियारी सच है दुनिया वालों की हम हैं अनाड़ी..... ये गाना गुनगुनाते पुलिस वालों से भी पूछते रहे कि भाई क्या तुम जानते हो कि धर्मवीर कमीशन की रिपोर्ट किस संबंध में है। पुलिस वालों के कहने पर उन्हे बताया कि भाई लोगों ये कमीशन पुलिस की स्थिति की समीक्षा करके सुझाव देने के विषय में था और अब सुप्रीम कोर्ट के साथ ही भारत सरकार(ये आज तक न समझ आया कि कौन और क्या है?) उस आयोग की रिपोर्ट में कही गयी बातों को मानने में भयभीत है या राम जाने क्या बात है। बेचारे खाकी मामू-मुमानी जो थोड़ी देर पहले तक गरिया रहे थे चुपचाप भड़ास सुन रहे थे फिर अचानक पता चला कि हमें डरा-धमका कर छोड़ देने की बात थी मामला नहीं बनाना था सो बस इतनी खुराक हमारे लिये काफ़ी थी। हम चले भड़ास की आग लिये घर को वापस और बेचारे वो पुलिस वाले जो मुझे कल तक लतिया धमका रहे थे पछता रहे थे कि उनसे पाप हो गया एक गलत सिस्टम को मजबूरी लाचारी में फंसे होने के कारण। हमारे ऊपर इस तरह के प्रतिबंध लगाने का प्रयास जारी रहेगा लेकिन हम जुबान से नहीं दिल से बोलते हैं भड़ास धक-धक में धड़क रही है, शरीर मर सकता है विचार और जीवन शैली नहीं सो हम अजर-अमर हैं।
जय जय भड़ास
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