मैं टॉयलेट में लंच - डिनर करता हूँ इसपर कानूनी मोहर लगा दें
शनिवार, 18 जुलाई 2009
चिकित्सक हूं तो एनल-फ़ीडिंग(गुदा मार्ग से तरल भोजन देना) के बारे में समझता हूं। जाहिर सी बात है कि भोजन करना मेरा निजी मामला है। मुझे ये इतना पसंद है कि कुछ मत पूछिये। मैं अपने मुंह को बस बकबकाने के लिये ही रखना चाहता हूं और अपना पिछवाड़ा खाना खाने के लिये। थोड़ी सी चबाने में दिक्कत होगी क्योंकि पीछे दांत नहीं है लेकिन एक अच्छी बात है कि दांतों में अन्नकण नहीं फंसेंगे और न ही दांतों में सड़न होगी, टूथपेस्ट और टूथब्रश का खर्चा भी बचेगा। हो सकता है कि कुछ पुराने ख्यालातों के दकियानूसी लोगों को ये बात पसंद न आए और लगे कि बात अननेचुरल सी है परन्तु उन्हें नहीं पता है कि नेचर में "स्टार फिश" नामक समुद्री जीव में कुदरत ने भोजन करने और पचने के बाद निकलने का एक ही रास्ता बना या है अब आप उसे मुंह कह लें या गां...., ये आपकी श्रद्धा है। इस तरह मैंने तार्किक तौर पर सिद्ध कर दिया कि कुदरत में ऐसा होता है यानि मेरी पसंद अननेचुरल तो हरगिज नहीं है। बस सामान्य लोगों से थोड़ी भिन्न है। अतः भारत सरकार से निवेदन है कि वह मुझे इस किस्म का अकेला प्राणी मानते हुए "अति अल्पसंख्यक" घोषित कर दे और मुझे किसी भी दंड का पात्र न माना जाए। इस बात को जैसे ही कानूनी मान्यता मिलेगी हमारे भारतीय राजनेता जो कि मुंह का अधिकांश उपयोग बकबक करने में ही करते हैं मेरी इस जमात में शामिल हो जाएंगे। हो सकता है कि बाई जी अंजली गोपालन जो कि "नाज़ फाउंडेशन" की संस्थापक हैं उनकी हम पर नजर पड़ जाए और वे हमें भी किसी तरह अपनी दया के लायक समझ लें।
जय जय भड़ास
5 टिप्पणियाँ:
अपने साथियो को भी इसमे शामिल करौ जिससे सरकार पर दबाव बन सके
सत्यवती जी क्या आप हमारे साथियों में शामिल होना चाहेंगी या फिर हमारी सरकार बन जाने के बाद बाहर से अपना समर्थन देंगें?
जय जय भड़ास
कोई माने न माने लेकिन मैं ये मानने लगा हूं कि अब लोग भड़ास पर टिप्पणी देने में भी कतराते हैं कि कहीं भड़ासी पगला कर उनके पीछे न पड़ जाएं। ये तो एक गलत सा संदेश जा रहा है। ये एक गम्भीर विचार-विमर्श का मंच है जिसे बहुत हल्के में लिया जा रहा है। जिनमे साहस है वही इसमें भागीदार हो सकते हैं।
जय जय भड़ास
विचित्र पोस्ट थी| स्टार फिश के बारे मे जानकारी अच्छी थी|
चर्चा मे पढ़े- ॐ (ब्रह्मनाद) का महत्व
कमाल का पोस्ट,लगे रहिये.
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