अभिलाषाओं की करवट फिर सुप्त व्यथा का जगना सुख का सपना हो जाना भींगी पलकों
का लगना। - प्रदीप सिंह
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अभिलाषाओं की करवट फिर सुप्त व्यथा का जगना सुख का सपना हो जाना भींगी पलकों
का लगना।
17 घंटे पहले




3 टिप्पणियाँ:
अरे भाई ये क्या है चश्मा लगा कर देखना पड़ा पर समझ में नहीं आया :)
जय जय भड़ास
डॉ साहब ये बेचारे गधे नामक एक मूक प्राणी की निर्मम पिटाई का दर्शय हास्य रूप मे चित्रित है , बस इतना ही ..........:)
गन्दी बात है छी..... छी... मासूम प्राणी की निर्मम पिटाई का मजाक बनाना बुरी बात है। डा.रूपेश श्रीवास्तव का पसंदीदा पशु है गधा :)
जय जय भड़ास
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