अभिलाषाओं की करवट फिर सुप्त व्यथा का जगना सुख का सपना हो जाना भींगी पलकों
का लगना। - प्रदीप सिंह
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अभिलाषाओं की करवट फिर सुप्त व्यथा का जगना सुख का सपना हो जाना भींगी पलकों
का लगना।
13 घंटे पहले

1 टिप्पणियाँ:
तस्वीरें बहुत कुछ बयां कर जाती हैं, शब्दों के बाण के बिना भी अपना काम कर जाती है.
लगे रहिये
जय जय भड़ास
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