गुरुवार, 6 अगस्त 2009

सभी की सुविधा के लिए , महावीर जी का कमेन्ट पुनः पर्कासित किया का रहा है

Blogger MUMBAI TIGER मुम्बई टाईगर said...

रुपेशजी
आज चारो और धार्मिक असहिष्णुता का साम्राज्य अपना विस्तार कर रहा है: राजनिति धर्म मे प्रवेस कर रही है। धर्म को राजनिति के सरक्षण की जरुरत पडने लगी है। मान्यताए क्षीण हो रही है। सस्कार लुप्त होते जा रहे : युवा पीढी दिगम्रमित हो रही है: बच्चे अपने प्रशनो का का वैज्ञानिक विश्लेषण युक्त समाधान चाहते है। और आज हम उनके समक्ष निरुत्तर है।
आज भारत मे जैन धर्मानुयायी की आबादी, भारत की कुल आबादी का लगभग पॉच % है।
९९% शिक्षित वर्ग मे आने वाला जैन समुह देश की कुल आयकर मे सर्वाधिक% करदाता है। राष्ट्र की चहुमुखी प्रगती मे रुपायित करने वाले व्यव्साय और उघोग मे जैन समाज क अपना उल्लेख्निय अवदान है। कही भी प्रकृतिक आपदा हो/ विपदा के समय सर्वादिक अवदान भी जैन समाज का ही होता है। सामाजिक अवदान स्वरुप सर्वाधिक चैरिटेबल सस्थाए, स्कुल, अस्पताल, धर्मशालाए, महिला उत्थान उधोग आदि जैन समाज द्वारा ही सचालित है यह सभी आकडे विभिन्न राज्यो सरकार एवम भारत सरकार के आकडो मे साफ तोर पर देखे जा सकते है।

राजस्थान, गुजरात, मध्यप्रदेश, दिल्ली प्रदेश, महाराट्र तमिलनाडु, सहीत ज्यादातर क्षैत्रो मे जैनो द्वारा हजारो स्कुल भवन कालेज बनाकर दिऍ है जहॉ हिन्दुस्थान के सभी समाज को समान्तर लाभ मिलता है। राजस्थान के अधिकाश गावो शहरो मे जैनो द्वारा शिक्षा के लिए स्कुले एवम चिकित्सा के लिए अस्पताल बनाकर राज्य सरकार को दिऍ गऍ है यह सख्या हजारो मे है। खरबो रुपए से बने यह जनसेवा कैन्द्र, शिक्षा केन्द्र, चिकित्सा केन्द्र, आज जन सेवा मे लगे हुऍ है।

यह कार्य किसी जाति वर्ग की आखो के लिऍ किरकरी बन जाऍ तो यह देश हित मे नही। ना ही ऐसे सामाजिक कार्यो को करने के लिऍ किसी धर्म/ समाज/ व्यक्ती को जैन समाज ने रोका है।

भाई रुपेशजी काफी दिनो से भडास के माध्यम से कुछ लोगो ने जैन समाज पर अर्नगल आरोपो की बाते की । चुकी मर्यादाओ को लाघकर बाते करना ठीक नही था इसलिऍ मैने कभी किसी की भावनाओ को आहत करने वाली टीका नही की। भगवान महावीर के सन्देशो की पालना करना हमारे जीवन का मुख्य लक्ष्य है। मै किसी अर्नगल/अशोभनिय/ अव्यवारिक/ अप्रमाणीक/ बिना तार्किक या प्रमाण के बिना की गई बातो का जवाब देने को बाध्य नही हू। रुपेशजी,अमितजी, मोहनजी, जब आप जैसे परम दयालु मित्रो ने कहा तो मैने अपने ज्ञान अनुरुप एवम अध्यन के मुताबिक कुछ लिखने का प्रयास कर रहा हू ताकी वास्तविकता के करीब पहुच सके।
क्रमश........ २
(यह कमेन्ट कई भागो मे है अत आप एक एक कमेन्ट तुरन्त प्रकाशित करते जाए मे लिखकर भेजता रहुगा।)

August 5, 2009 5:07 AM

Blogger MUMBAI TIGER मुम्बई टाईगर said...

गताक से आगे.....

डा.रूपेशji श्रीवास्तव ने कहा…
छोटे सवाल जो कि मुझसे करे गए थे परन्तु मेरे पास उत्तर नहीं था अब आपसे जान सकता हूं---
१. भारत के स्वाधीनता संग्राम से जुड़े दस जैन क्रान्तिकारियों के नाम बताइये।
२.मुसलमान कुरान शरीफ़,हिन्दू भगवदगीता, क्रिस्तान बाइबिल की अदालत में सत्य बोलने के लिये शपथ लेते हैं जैन किस ग्रन्थ की शपथ लेते हैं यदि भगवदगीता की ही शपथ लेते हैं तो क्यों हिंदुओं से अलग मानते हैं खुद को?

मेहरबानी करके इन शंकाओं का समाधान करें।"
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मैने सहजता से एवम मेरे ज्ञान अनुरुप मुम्बई टाईगर पर्
डा.रूपेशजी श्रीवास्तव ने यह क्या पुछा नामक एक पोस्ट प्रसारित कि थी। उसमे जैन् हिन्दु नही है करके मैने स्पष्ट किया था।" यदि आप हिन्दु का अर्थ वैदिक परम्परा का अनुयायी से करते है तो जैन हिन्दु नही है. और यदि आप हिन्दु का अर्थ राष्ट्रीयता से है तो जैन हिन्दु है।"

२.मुसलमान कुरान शरीफ़,हिन्दू भगवदगीता, क्रिस्तान बाइबिल की अदालत में सत्य बोलने के लिये शपथ लेते हैं जैन किस ग्रन्थ की शपथ लेते हैं यदि भगवदगीता की ही शपथ लेते हैं तो क्यों हिंदुओं से अलग मानते हैं खुद को?

आपकी यह बात ठीक है की जैन भी गीता पर हाथ रखकर शपथ लेते है। इसके मुख्य कारण है गीता हम सबके लिऍ पवित्र ग्रन्थ है। इसमे कोई खराबी नही है यह तो अच्छी बात है।
जैन अल्पसख्यक है, इसलिए जैन ग्रन्थ "आगम" की उपल्बधता आदलतो मे नही है। आपने इस और ध्यान दिलाया इसलिए आभार। अगर कोई जैनी अदलतो मे आगम के समक्ष शपथ की माग करता है तो उसे उपल्बध कराई जा सकती है। मुझे भरोसा है जल्दी ही आदलतो मे जैन ग्रन्थ आगम को सुचीबद्धकर जैनो के लिए उपलब्घ होगा। फिर भी मैरा अनुग्रह जैन भाईयो से की गीता हो या बाईबिल या कुरान सभी ग्रन्थ पवित्र है हमे जो उपल्बध हो सभी घर्मो के ग्रन्थ सम्मान जनक है। हमारा ध्यान राष्ट्रीयता पर होना चाहीए। वैसे बोद्ध भी हिन्दु नही है। पर शपथ गीता की ही लेते है।

मुल प्रकृति के अनुशार हिन्दु शब्द देश या राष्ट्र का वाचक है। वह किसी धर्म का वाचक नही है।

भारत मे धर्म की दो धाराये प्रवाहित रही - श्रमण और वैदिक। श्रमण परम्परा का तन्त्र क्षत्रियो के हाथ था, वैदिक परम्परा का सुत्र धार ब्राहृमणो वर्ग था। साख्य, जैन, बोद्ध और आजिवक- ये सभी श्रमण परम्परा के धर्म है। मीमास, वेदान्त-ये वैदिक परम्परा के धर्म है। हिन्दु नाम का कोई भी प्राचीन धर्म नही है। मुसलमानो के आगमन के बाद हिन्दु और मुसलमान पक्ष और प्रतिपक्ष बन गये। प्राचीन काल मे श्रमण ब्राहृण पक्ष प्रतिपक्ष हुआ करते थे। इसका उल्लेख सस्कृत व्याकरणकारो ने उल्लेखित किया है। एक श्रमण ब्राहृण धर्म मे दिक्षित हो जाता है और एक ब्राहृण श्रमण धर्म मे दिक्षित हो जाता, उसे कोई जाति परिवर्तन नही होता।
क्रमश........3

(यह कमेन्ट कई भागो मे है अत आप एक एक कमेन्ट तुरन्त प्रकाशित करते जाए मे लिखकर भेजता रहुगा।)

August 5, 2009 5:15 AM

1 टिप्पणियाँ:

बेनामी ने कहा…

साथी भडासी और मित्रों,
धर्म कर्म, पोंगे पाखण्ड से हट कर हमारे देश में आमलोगों के लिए बहुत से मुद्दे हैं,
क्या हम सब मिल कर अपनी सम्मिलित ऊर्जा का प्रयोग अपने वतन के लिए करेंगे ?

आस्था पर प्रश्न ना उठायें.

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