लो क सं घ र्ष !: वंदे मातरम् विवाद और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ

सोमवार, 9 नवंबर 2009

वंदे मातरम् के विवाद पर राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने तरह-तरह के बयान पूरे देश में जारी किए है और अपने को राष्ट्र भक्त साबित करने का प्रयास किया है और शब्दों की बाजीगरी के अलावा कुछ नही हैराष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का राष्ट्रीय झंडे में ही विश्वाश नही है4 जुलाई 1946 को आर एस एस प्रमुख अस गोलवलकर ने कहा कि "हमारी महान संस्कृति का परिपूर्ण परिचय देने वाला प्रतीक स्वरूप हमारा भगवा ध्वज है जो हमारे लिए परमेश्वर स्वरूप हैइसीलिए परम वन्दनीय ध्वज को हमने अपने गुरु स्थान में रखना उचित समझा है यह हमारा द्रण विश्वाश है कि अंत में इसी ध्वज के समक्ष हमारा सारा नतमस्तक होगा "
14 अगस्त 1947 को आर.एस.एस के मुख पत्र आरगेनाइजर ने लिखा कि "वे लोग जो किस्मत के दांव से सत्ता तक पहुंचे हैं वे भले ही हमारे हाथों में तिरंगे को थमा दें, लेकिन हिन्दुओं द्वारा इसे कभी सम्मानित किया जा सकेगा अपनाया जा सकेगा3 का आंकडा अपने आप में अशुभ है और एक ऐसा झंडा जिसमें तीन रंग हों, बेहद ख़राब मनोवैज्ञानिक असर डालेगा और देश के लिए नुकसानदेय होगा ।" राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का राष्ट्रीय झंडे में विश्वाश नही है और ही वह राष्ट्र भक्त ही हैलेकिन वह जब कोई बात शुरू करते हैं तो अपने को सबसे बड़ा राष्ट्र भक्त साबित करते हैं
स्वर्गीय बंकिम चन्द्र के उपन्यास आनंद मठ में वंदे मातरम् गीत आया है राष्ट्रीय स्वतंत्रता आन्दोलन में बहुत सारे नवजवानों ने वंदे मातरम् कहते हुए फांसी के फंदे पर झूल गए थेआजादी की लडाई में इस गीत का अपना महत्त्व है
लेकिन यह भी सच है कि अनद मठ उपन्यास ब्रिटिश साम्राज्यवाद के ख़िलाफ़ लिखा गया था किंतु बाद में अंग्रेजों ने बंकिम चन्द्र को प्रताडित कर आनंद मठ का पुनः प्रकाशन कराया थाजहाँ-जहाँ अंग्रेज शब्द लिखा गया था वहां-वहां मुसलमान कर दिया गया था
आर.एस.एस कि राष्ट्र भक्ति अजीबो-गरीब है जिसका कोई पैमाना नही है उनका पैमाना सिर्फ़ यह है कि भारतीय मुसलमानों को किस तरह से बदनाम किया जाए यही उनकी हर कोशिश रहती है
गुजरात का नरसंहार इसका प्रत्यक्ष उदाहरण है ।।


सुमन
loksangharsha.blogspot.com

4 टिप्पणियाँ:

ab inconvenienti ने कहा…

आनंदमठ उपन्यास पढ़ा है?

अनोप मंडल ने कहा…

आदरणीय़ सुमन भाईसाहब, अंग्रेजों के स्थान पर मुसलमान करवा देना यही सोची समझी राक्षसी साजिश हमारे ग्रन्थ "जगतहितकारणी" के साथ भी हुई थी उसमें जैन के स्थान पर अंग्रेज लिखवा दिया था तो किताब प्रतिबंधित हो गयी थी। फिर बाबाजी ने जार्ज पंचम के बुलवाने पर मूलप्रति दिखाई और साजिश का पर्दाफ़ाश करा। इस कुत्सित कार्य के पीछे भी इन्ही राक्षसों का हाथ होगा जरा इतिहास को गहराई से टटोलें तो पता लग जायेगा कि उस वक्त ये राक्षस क्या कर रहे थे।
जय नकलंक देव
जय जय भड़ास

dr amit jain ने कहा…

@अनोप मंडल
जार्ज पंचम ??????????? हा हा हा / किसी बड़े का नाम अपने साथ जोड़ लो तो कोई तुम्हे भी पूछ लेगा

बेनामी ने कहा…

भाई सुमन तथ्यपरक जानकारी और जबरदस्त भड़ास,
ये निसंदेह इस ab inconvenienti की समझ में नहीं आएगा,

निसंदेह यह साजिश ही रही जिसमें अंग्रेज के साथ हमारे देश के तथाकथित लोग बराबर के शरीक रहे.
जय जय भड़ास

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