पिछली पोस्ट दबाव के चलते हटा दी है ये भड़ास के इतिहास में कई बार होगा

रविवार, 20 दिसंबर 2009

हाल ही में पांच दस मिनट पहले एक पोस्ट अजमल कसाब कि प्रकरण पर लिखी थी। तत्काल प्रतिक्रिया हुई। कहीं दूसरी जगह से नहीं मेरे ही परिवार से कि उस पोस्ट को हटा दो वरना तुम्हारी वजह से हम सबकी बदनामी होती है पुलिस स्टेशन जाना पड़ता है, तुम्हें लोग मारते-पीटते हैं फिर भी तुम इतने निर्लज्ज हो चुके हो कि किसी की बात नहीं मानते। आदरणीय भाईसाहब ने तत्काल पिछले साल गणेशोत्सव पर उस घटना का जिक्र कर डाला कि तुम्हारे लिखने के कारण सोसायटी के लोगों ने तुम्हें घर में घुस कर मारा और उल्टा पुलिस कम्प्लेन्ट भी करी तो पुलिस ने भी सताया, जिसका दुष्प्रभाव कच्चे मन के बच्चों के ऊपर पड़ा कि अब उनके बच्चे सोसायटी में दबे सहमें से रहते हैं। मेरी भतीजी मेरी माता जी के साथ आकर रोते हुए कहती है कि पता नहीं क्यों हमारे पापा ने आपको भाई कहा है, आपके कारण कितनी बदनामी होती है। माताजी को पता नहीं किस भ्रम वश दिमाग में एक बात बैठ गयी है कि मैंने उन्हें घर से भगा दिया है(सोचने वाली बात है कि जिसके साथ ऐसे लोग तक आकर महीनों रह जाते हैं जिनसे कोई सामाजिक रिश्ता वास्ता नहीं है तो माताजी को क्यों भगाऊंगा लेकिन मेरा दुर्भाग्य है कि मेरी सोच से असहमति ही है जो उनके मन में इस तरह के पूर्वाग्रह पैदा कर देती है)।। भाईसाहब दुनियादार आदमी हैं तो उनका ऐसा सोचना स्वभाविक है कि मैं ऐसा कोई काम न करूं कि मुझे जूते पड़ें और उनकी बदनामी हो। वो अपने बच्चों को शरीफ़ आदमी बनने के संस्कार दे रहे हैं निःसंदेह हर परिवारी व्यक्ति को ऐसा करना चाहिये, झगड़े-फसाद से डरना चाहिए।
लेकिन मैं क्या करूं कि
इज़्ज़त जाने के डर से गलत बात का विरोध करने की फ़ितरत खत्म नहीं होती?
गलत को गलत और सही को सही कहने में भय नहीं लगता?
मौत से डर नही लगता?
झूठे सामाजिक सम्मान की कोई चाहत नहीं है?
जो लोग मुझे मार पीट रहे हैं या गालियां दे रहे हैं उनपर भी दया आती है?
जो लोग मेरा आदर करते हैं उनका मुझसे स्वार्थ है ऐसा हमेशा सत्य होता है क्या??
निंदा और आदर दोनो का मेरे ऊपर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है मैं प्रूफ़िंग कर चुका हूं?
दिल और दिमाग दोनो की सुनता हूं लेकिन तुम सहमत नहीं हो तो क्या करूं??
हज़ारों सवाल हैं जिनमें देश गौण हो जाता है। मुझे पीट रहे हैं वो कौन हैं मेरे पड़ोसी जो शरीफ़ हैं, शराबी हैं, गाली-गलौच करते हैं, धर्म के नाम पर धमाल करते हैं, आस्था के नाम पर हिंदू-मुस्लिम-ईसाई बन कर लड़ते-मरते हैं,हिंदी मराठी का झगड़ा करते हैं, जो दब जाए उसे पीस डालते हैं और जो दबा ले उसके तलवे चाट लेते हैं क्या इनमें से किसी को भी किसी हुमा नाज़ की परवाह है? क्या इन्हें पता है मुख्तारन माई या इरोम शर्मिला क्यों चर्चित हैं? कसाब और करकरे इनके लिये बस कुछ दिन चर्चा का विषय हैं उसके बाद टीवी पर डांस शो देखना, दो रुपए का समाचार पत्र पढ़ कर एक घंटे ट्रेन में बकैती कर लेना; क्या इन्हें अफ़जल गुरू प्रकरण में दिलचस्पी है? क्या इन्हें पता है कि अरुणाचल प्रदेश में चीन की क्या हरकते हैं? क्यों काश्मीर या मिजोरम जैसे सीमावर्ती प्रदेशों में केन्द्र सरकार के प्रति नफ़रत पनप जाती है? क्या संविधान की समीक्षा करी जानी चाहिये? देश चल कैसे रहा है? बस टैक्स दो और बोझ की तरह जिंदगी जिये जाओ, शरीफ़ आदमी बन कर। बच्चों के बर्थ डे में उन्हें खिलाओ जिनके गले तक पेट भरा है ये शराफ़त है शरीफ़ों की। ईद - दीवाली पर हज़ारों रुपया अपव्यय कर डालो दिखावे के लिये ये शराफ़त है।
साला दिमाग फिर गया है शराफ़त मेरे ऊपर चढ़ ही नहीं पा रही है, काश मैं भी नपुंसक बन सकता। यार मेरी मदद करो मुझे सामाजिक षंढ बना तो ताकि मैं शराफ़त की जिंदगी जी सकूं और मेरे परिवार को मुझ पर गर्व हो सके। मैं लज्जित हूं अपने भाईसाहब और माताजी से कि उनकी अपेक्षाओं पर सही नहीं उतर सका। मुझे मौत भी नहीं आती कि ये लोग कुछ समय शोक मना कर शेष जीवन सुख से रह सकें। इस लिये ईश्वर से भी प्रार्थन है कि और थुक्का फ़जीहत न करवाओ जल्दी भेजो किसी को उठाने के लिये वरना हमारे जैसा बोझ खुद तो उठने से रहा इस दुनिया से
जय जय भड़ास

6 टिप्पणियाँ:

मुनेन्द्र सोनी ने कहा…

भगत सिंह पैदा हो लेकिन हमारे घर में नहीं दूसरे के घर में ताकि हम अपनी नपुंसक शराफ़त के साथ शांति से खुश रह सकें
डा.साहब की बात भी कुछ ऐसी ही है। डा.साह्ब से हाथ जोड़ कर निवेदन है।
जय जय भड़ास

Chhaya ने कहा…

Rupesh bhai, aisa na kahein... plz

hamare samaj ko aap jaise mahan logo ki jaroorat hai. apna apna to sab sochte hain, jo doosro ki soche, use log vichitra samajhte hain, magar aap un sab baton se upar hain..

hamein aap-par poora vishwash hai, aasha hai aap bhi khud pe utna hi garv kareinge jitna hum karte hain

हिज(ड़ा) हाईनेस मनीषा ने कहा…

छाया जी आपने सच कहा कि हमारे समाज को मेरे भाई जैसे लोगों की ही जरूरत है जो कि सबकी लड़ाई अकेले लड़ कर शहीद हो जाए और षंढ समाज में से कोई उनके साथ तक न खड़ा हो,बाद में मूर्ति बना कर जयंती मनाओ;ऐसे लोगों को महानता की मुहर लगा दो कि जिस तरह सबके दुःख ये देख सकते हैं बाकी लोग नहीं देख सकते क्योंकि ये तो महान हैं हम नहीं.....
हम सबको आत्मावलोकन करना होगा ये देखने के लिये कि हम क्यों नहीं रूपेश भाई बन सकते? भाषाई कठोरता क्षमा करें
जय जय भड़ास

मनोज द्विवेदी ने कहा…

GURUJI...AAP UNKE BARE ME BHI SOCHIYE JINME APNE JINE KI CHAH PAIDA KI.

बेनामी ने कहा…

जय गुरुदेव,
जय भड़ास.

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