तीसरा लघु फिल्मोत्सव : अयोध्या

मंगलवार, 22 दिसंबर 2009

आम आदमी का बिम्ब बना अयोध्या फिल्म उत्सव :

अयोध्या/फैजाबाद , २२ दिसंबर : साझी नगरी में आयोजित ३ दिवसीय 'प्रतिरोध का बिम्ब' फिल्म उत्सव आखिरी आदमी का जहाँ बिम्ब बना वहीँ हर शख्स के सामाजिक और नैतिक दायित्व का सन्देश वाहक भी बना.उत्सव में प्रदर्शित लघु और डाकुमेंट्री फिल्मे भारतीय समाज का आईना दिखा गई.
गंगा जमुनी तहजीब को आत्मसात किये साझा नगरी अयोध्या-फैजाबाद में फिल्म उत्सव का यह तीसरा आयोजन था अयोध्या फिल्म सोसाइटी के शाह आलम आयोजन के धुरी रहे .उत्सव का आगाज़ साकेत महा विद्यालय के राजा जगदम्बिका प्रताप सभागार में १९ दिसंबर को हुआ.यह दिन काकोरी कांड के शहीद रामप्रसाद बिस्मिल व शहीद अशफाक उल्लाह खां के बलिदान दिवस के रूप में जाना जाता है फिल्म उत्सव इन्ही शहीदों को समर्पित था.
उत्सव का उदघाटन मुख्य अतिथि साहित्यकार शुभाषचन्द्र कुशवाहा ने किया.उन्होंने कहा की किसी भी कला का जन्म प्रतिरोध की भावना से होता है बगैर प्रतिरोध के न तो साहित्य का जन्म होता है और न ही कला,राजनीती का.बुनियादी मुद्दों से सिनेमा भला कैसे अछूता रह सकता है.वर्तमान समय की राजनीति,समाज, शिक्षा और कला में अश्लीलता,हिंसा,वैश्वीकरण जन्मी है.जहाँ प्रतिरोध की भावना मर जाती है वहां मुर्दे निवास करते हैं.
मुख्य वक्ता फिल्मकार सुनील उमराव थे.उन्होंने कहा की देश में हो रही हत्याएं,शोसिता का आत्मदाह,आम नागरिकों के साथ बलात्कार आदि बिम्ब प्रतिरोध का रूप ग्रहण करती है.अध्यक्षता अतीक अहमद ने व सञ्चालन रंगकर्मी एस.के.दत्ता ने किया.
कवित्री आशा सिंह के काव्यपाठ के बाद राजीव यादव की फिल्म सैफ्रेन वार जारी की गई.लघु फिल्म १८५७ जंग-ए-आजादी और गाँव छोड़ब नहीं प्रदर्शित की गई.इस अवसर पर अशोक श्रीवास्तव,जलाल सिद्दीकी,डॉ.सम्राट अशोक मौर्या,मो.इस्माईल,इन्द्रजीत वर्मा,अफाक लश्करी,अनिल वर्मा,अयातुल्लाह खां,राज कुमार,गुफरान सिद्दीकी, हमीदा
खातून,विनीत,शाहनवाज़,राजीव यादव,जावेद,राकेश,आशीष आदि मौजूद रहे.
उत्सव की द्वितीय संध्या को फैजाबाद नगर के मोहल्ला पहाड़गंज,घोसियाना में बच्चों की फिल्म हिप-हिप हुर्रे,रामनाम सत्य है व ज़ुल्मतों के दौर में का प्रदर्शन किया गया.
उत्सव का समापन समारोह का आयोजन डॉ.राम मनोहर लोहिया अवध विश्व विद्यालय के समाज कार्य विभाग सभागार में किया गया.इस अवसर पर अभिषेक शर्मा की डाकुमेंट्री फिल्म 'साइलेंट चम्बल' को डॉ. रुपेश सिंह ने लोकार्पित किया.अनंतर उदबोधन सत्र में एशियन एकेडमी ऑफ़ फिल्म एंड टेलीवीज़न के लक्ष्मण सिंह ने कहा की डाकुमेंट्री फिल्मों के माध्यम से समाज के भीतर उठ रही आवाज़ों और सवालों के अंतर्द्वंद को सामने लाकर एक एतिहासिक चेतना का निर्माण किया जा रहा है.अर्गला के संपादक अनिल पुष्कर ने कहा की आज के बाजारवादी युग में वैकल्पिक संचार माध्यमों को मज़बूत करने का दायित्व भावी पीढ़ी का है.ऐसे दौर में और भी ज़रूरी हो जाता है की जब जीवन संघर्ष में रोज़मर्रा के मूल भूत मुद्दों को दरकिनार कर समाज के भीतर कड़वाहट घोलने की कोशिश की जा रही हो.
भुखमरी की पृष्ठिभूमि पर निर्मित 'ऍन अदर एक्स्पेक्ट ऑफ़ इंडिया राइजिंग' के निर्देशक सचिदानंद मिश्र भी मौजूद रहे.उन्होंने कहा की वर्तमान राजनीती ने आम जनता को भुखमरी और आत्महत्या करने को मजबूर कर दिया है इस फिल्म में राजनैतिक भ्रष्टाचार को दिखाया गया है.फिल्म उत्सव का समापन लांछन,खड्डा फिल्म प्रदर्शन के साथ हुआ.
सामानांतर सिनेमा समय की आवश्यकता : शाह आलम
अयोध्या-फैजाबाद : फिल्म उत्सव के आयोजक शाह आलम का मानना है की सामानांतर सिनेमा समय की आवश्यकता ही नहीं आन्दोलन है.आज ज़रूरत है की देश में एक समानंतर सिनेमा खड़ा किया जाये जो जनता की भाषा में हो और उसमे जनसंस्कृति की गूँज हो.शोषण के खिलाफ प्रतिरोध के इस कारवां को हम देश के तमाम हिस्सों में पंहुचा चुके हैं,सामानांतर सिनेमा का आन्दोलन खड़ा हो रहा है.
शाह आलम कहते हैं की दुर्भाग्य है की आज कला पूंजीवादी ताकतों की दिलचस्पी का साधन हो गई.बॉलीवुड की फिल्मे सन्देश देने के बजाये केवल धनसंग्रह का कार्य कर रही है.ऐसे में ऐसे सिनेमा की ज़रूरत है जिसमे आम जन यानि की मजदूर किसान के दिल की आवाज़ हो.

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Regards

M.Ghufran Siddiqui
http://awadhvasi.blogspot.com

1 टिप्पणियाँ:

बेनामी ने कहा…

कार्यक्रम की सफलता की कामना और शुभकामना,
समाजोपयोगी सन्देश आये.
जय जय भड़ास

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