लो क सं घ र्ष !: माननीय उच्च न्यायलय को गुस्सा आया
शनिवार, 9 जनवरी 2010
माननीय उच्च न्यायलय उत्तर प्रदेश ईलाहाबाद खंडपीठ लखनऊ के न्यायमूर्ति राजीव शर्मा व न्यायमूर्ति सतीश चन्द्र मिश्रा दो नामो से दायर याचिका को ख़ारिज करते हुए याचिकाकर्ताओं पर दस-दस लाख का जुर्माना ठोका तथा याचिकाकर्ताओं के अधिवक्ताओं पर भी 25 लाख रुपये का जुर्माना लगाया है और जिला अधिकारी सिद्दार्थनगर को आदेशित किया है की एक माह के अन्दर जुर्माना वसूल कर लिया जाए इस फैसले के पीछे तर्क यह लिया गया है कि याचिकाकर्ताओं ने गलत याचिकाएं दाखिल कर न्यायलय के समय को बर्बाद किया है । न्यायलय के आदेश की हम कोई आलोचना नहीं कर रहे हैं लेकिन न्यायलय को राज्य द्वारा किये गए अधिकांश वाद, जो फर्जी साबित होते हैं उनपर भी राज्य के खिलाफ इस तरह की कठोर कार्यवाही करनी चाहिए । माननीय उच्च न्यायालय द्वारा पारित आदेशों का उल्लंघन राज्य करता रहता है और उसके अधिकांश निर्णय तब लागू हो पाते हैं जब अवमानना की कार्यवाही शुरू होती है। एक आइ.ए.एस अफसर माननीयों के सामने अवमानना की कार्यवाही में उपस्तिथ होता है तो वह क्षमायाचना करके फुर्सत पा जाता है और उसके खिलाफ कोई सख्त कार्यवाही नहीं होती है अच्छा यह होता की यदि राज्य के प्रति थोडा सा गुस्सा माननीय उच्च न्यायलय दिखाए और कठोर कार्यवाही कुछ करे तो वादों का काफी बोझ हल्का हो सकता है अफरा-तफरीह का माहौल है आए दिन विधि विरुद्ध निर्णय अधीनस्थ न्यायलयों द्वारा पारित होते रहते हैं सम्बंधित पीठासीन अधिकारीयों के खिलाफ माननीय उच्च न्यायलय कोई कार्यवाही अपने निर्णय करते समय नहीं लिखता है । राजस्व, व्यापार कर, आयकर तथा करों से सम्बंधित अदालतें विधि विरुद्ध आदेश करती रहती हैं अंत में माननीय उच्च न्यायलय से ही जनता को राहत मिलती है कभी भी माननीय उच्च न्यायलय उन पीठासीन अफसरों के खिलाफ कार्यवाही नहीं करता है। जनता कमजोर होती है अधिवक्ता निरीह होता है। न्यायलय की मदद अधिवक्ता करने के लिए होता है वह कोई पक्षकार नहीं होता है और अगर न्यायलयों के गुस्से से अधिवक्ताओं के ऊपर जुरमाना लगाने की परंपरा चल निकली तो माननीय उच्च न्यायलय को यह सोचना पड़ेगा की वह कैसे न्याय व्यवस्था बनायेंगे और कैसे लोगो को न्याय देंगे।
सुमन
loksangharsha.blogspot.com
3 टिप्पणियाँ:
बाप रे! अब तो जज अंकल को भी गुस्सा आने लगा अभी तक तो बस अल्बर्ट पिन्टॊ को गुस्सा क्यों आता है इसी बात का विवाद था लेकिन अब तो ज्यादा लफड़ा बढ़ गया। गुस्सा करने वालों की फेहरिस्त लम्बी होती जा रही है। गुस्सा विवेक को खा जाता है और यदि न्याय व्यवस्था को चलाने वाले विवेकहीन हो गये तो देश का क्या होगा? न्यायाधीश को बिलकुल अधिकार नहीं होना चाहिये कि वह "निरीह" अधिवक्ताओं पर गुस्सा करे आखिर वे भी उसी सिस्टम के पुर्ज़े हैं कल को उनमें से ही कोई उछल कर जज बन जाता है तो???????
जय जय भड़ास
न्याय में अन्याय ???? जैसे शहद में नीम का रस ... इस देश का क्या होगा ? बंधू .....
ये बात विचित्रतम है कि माननीय उच्च न्यायालय या सर्वोच्च न्यायालय निचली अदालतों के गलत फैसले देने वाले न्यायाधीशों के विरुद्ध कार्यवाही क्यों नहीं करता जबकि कानून की सोच तो सब जगह एक सी है, कोई आदमी निचली अदालत से सजा पा जाता है और ऊपरी अदालत उसे बरी कर देती है यानि कि निचली अदालत के जज महोदय ने तो उसकी जान ले ही ली थी अगर वो बेचारा ऊपर अपील करने की स्थिति में न हो तो.... यदि नीचेके जज दंडित होने लगें तो शायद ऊल जुलूल फैसले देने और कोताही से बच सकेंगे।
जय जय भड़ास
एक टिप्पणी भेजें