शुगर फ्री शक्कारोलिज्म !
सोमवार, 11 जनवरी 2010
आमतौर पर पूरे देश भर में 'पिंचिंग कोल्ड' का प्रकोप जारी है। उत्तर भारत की हाड़ कंपाती ठंड से दक्षिण भारत की ठुड्डयां कंपकंपा जा रही हैं और जुबान फिसलन का कीर्तिमान अपने आप बनता जा रहा है। उधर शुगर (वहीं अपना चीनी) भाई! जो जुबान पर चढ़ाने भर से मंहगाई महसूस करा जाती है, के अद्र्धशतकीय हो जाने पर भी इसकी कड़वाहट को बांग्लादेश में खेली जा रही किक्रेट सीरिज़ से मीठा करने की कोशिश जारी है। दाल पहले से ही शतक लगाकर 'संभ्रान्त' लोगों की जमात का हिस्सा बन चुका है। चीनी की ठोस मगर आक्रामक पारी जारी है। आशा है कि वह भी जल्द ही उच्च कुलीन वर्ग का चहेता बन जाएगा। राजनीति में लस्टम-फस्टम चल रहा है। मंहगाई से जनता की जुबान खुद ही बंद हो चुकी है तो नेताओं ने 'चुप्पी' साध ली है।
आलम वही है कि जनता और नेता के बीच तीसरे आदमी ने अपनी डीलिंग से व्यवस्था को भ्रष्टतम् बनाने में कामयाबी पायी है। जहीर खान एकाध मैचों को छोड़कर सही लेंथ व लाइन मेंटेन करने में सफल रहे हैं, पर धोनी की 'लीडरशिप' ने भी कमाल किया है। हमारी लीडरशिप दुबई से चल रही है और पूरी मीडिया ने 'कथ्य' को 'तथ्य' के बराबर मान लिया है। एक तरह से यह 'तेज' गति की मीडिया का रास्ते से भटकना माना जा सकता है। जनता से जुड़ी सिर्फ क्राइम, पैशन और हंसोड़ खबरों के बीच राजनीति का चस्का 'मसालेदार' चाय तो बन सकती है। पर, मूल उद्देश्यों से इतर भूख मिटाने में अक्षम ही रहेगी।
पवार साहब बयान दे रहे हैं, चीनी 50 रुपये से कब कम होगी, पता नहीं? पर उन्हें यह पता है कि अगला आईसीसी अध्यक्ष बनने के लिए कहां-कहां जुगाड़ फिट करना है। ठीक भी है जनता को 'सेक्यूलरिज्म' के भंवरजाल में डालकर 'कुर्सीलिज्म' की राजनीति में सब जायज है। वैसे भी 'बंबई' में आजकल 'गॉलीवुड' की गरिमा बरकरार है। दिल्ली का 'दिल' इतना जोर कभी न धड़का होगा जैसा कि आजकल धड़क रहा है। शीतलहर का कहर दिल की धड़कन को बढ़ाने का ही काम तो कर रहा है, क्योंकि कॉमनवेल्थ की हेल्थ को बचाये रखना आजकल दिल्ली की शान से जुड़ चुका है। उम्र के अंतिम पड़ाव पर पहुंच चुकी बसें, सड़कों पर धूं-धूं जल जाती है, तो लोअर बसों से अचानक निकलने वाला धुंआ सीन से गायब हो जाता है।
कोई बात नहीं, जनता कल्याण सिंह के अयोध्या पहुंचने पर चुंधिया जाती है तो अमर सिंह के दुबई से इस्तीफे की चर्चा गांव-जवार की बतकही का हिस्सा बन जाती है। थरुर अपने शउर के मुताबिक कमेंटिया देते हैं तो राजनीति में कबड्डी सा माहौल बन जाता है। मौतें हो रही हैं, ठंडी में ठंड से, गर्मी में लू से, मंहगाई में भूख से और ऑल टाइम हिट मौत मतलब 'किसान' की मौत का बहीखाता फुल होने के बाद बंद कर दिया, अब इसकी गिनती रुहानी शक्तियां करती हैं। इंसानों के वश की बात नहीं रह गयी। फिर भी जनती जी रही है, जीती थी और जीती रहेगी। मगर, जीतेगा वहीं जनता के जीने की राह में रोड़े डालता है। आखिर यहीं तो 'जनतंत्र' है।
जय भड़ास जय जय भड़ास
2 टिप्पणियाँ:
चीनी के बारे में तो बात ही न करिये ये आलम है कि जब भी चीनी के बात हुई मिठास के साथ कुछ न कुछ हड़प लेते हैं साले चपटी आंख वाले..... रही बात गन्ने वाली चीनी की तो अब उसकी जरूरत नहीं है मीठा बोलने से ही काम चला लिया जाता है
जय जय भड़ास
मनोज भाई बढिया लिखा है वर्तमान की तस्वीर से सज्जित है आपका लेख ।
प्रणव सक्सेना
amitraghat.blogspot.com
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