भड़ास:आजकल

शनिवार, 9 जनवरी 2010

काफ़ी दिनों बाद भड़ास पर लिख पा रहा हूं। दो-चार बार नजर तो जरूर मार ही लेता हूं रोजा्ना। आजकल भड़ास पर लोकसंघर्ष वाले वकील साहब की उपस्थिति प्रखर है। वैसे वो सिर्फ़ भड़ास ही नहीं दस-बारह जगहों पर उस वैचारिक पोस्ट को प्रकाशित करते हैं जिसमें एक भड़ास का मंच भी है। पुराने भड़ासियों में से कभी कभी इक्का-दुक्का कमेंट बाक्स में दिख जाते हैं कभी अचानक। मुनव्वर आपा के उर्दू ब्लाग लंतरानी ने उर्दू के चाहने वालों में धूम मचा रखी है तो उनका काफ़ी समय लंतरानी में ही लग जा रहा है। दीदी मनीषा नारायण और उनकी टीम ने उनके ब्लाग अर्धसत्य पर महीनों से कुछ नहीं लिखा है। डा.रूपेश श्रीवास्तव की व्यस्तता जमीनी है वो कई ब्लागों के कमेंट बाक्स में भड़ास-भड़ास करते नजर आ जाते हैं लेकिन उन्होंने भी अपने आयुर्वेदिक सलाह वाले ब्लाग "आयुषवेद" पर काफ़ी समय से कुछ नहीं लिखा है। भाई अग्निबाण कुछ पैने तीर चला कर काफ़ी समय से गायब हैं आजकल क्या तीर मार रहे हैं नहीं पता। मनोज द्विवेदी यदा-कदा दो-चार माह में एकाध लम्बे से लेख के साथ और कुछ टिप्पणियों के साथ प्रकट रहते हैं। अमित जैन महीनों बाद दोबारा चुटकुले वगैरह लेकर पधारे हैं अगर अनूप मंडल ने फिर से इन्हें न खदेड़ा तो शायद ये बने रहेंगे। अनूप मंडल बहुत समय से मौन हैं। बादशाह बासित और फ़रहीन नाज़ कभी कभी अचानक प्रकट होकर गायब हो जाते हैं शायद पढ़ाई-लिखाई की व्यस्तता के कारण ऐसा होता होगा। भाई रजनीश झा भी कम ही दिखाई पड़ते हैं शायद नौकरी के चलते इनकी व्यस्तता ज्यादा ही बढ़ गयी है, कभी कभी एकाधा लेख और टिप्पणी में नज़र आ जाते हैं। दीनबन्धु जी भी कई बार कमेंट बाक्स में मिल ही जाते हैं ये तो कभी कभी न जाने किन किन ब्लाग्स पर कमेंट मारते दिखाई दे जाते हैं(धन्य है चिट्ठाजगत जो ये सब बता देता है)। हरभूषण सिंह जमाने से गायब हैं जो कि कानून के गहरे जानकार हुआ करते हैं।गुफ़रान सिद्दिकी यदा-कदा आ ही जाते हैं लेख या कमेंट के रूप में, इन्हीं के गांववाले चंदन श्रीवास्तव कहीं खो गये हैं उनके बारे में कुछ पता नहीं है वो बस एक अरसा पहले एक बहस में अवतरित हुए थे। शेष तो ऐसे हैं जिनके नाम तक याद नहीं आ रहे हैं। जब कोई किसी को कस कर पेल देता है तो उस बात का रोना रोते हुए अपनी सहलाते हुए भड़ास पर आ जाते हैं जैसे महेन्द्र मिश्र आदि।
आजकल भड़ास पर मैंने एक बड़ा मुद्दा देखा जो कि समान नागरिकता की बात समेटे हुए था और अधिकारों से वंचित कर दी गयी स्त्रियों के हक़ की बात लिये हुए था यानि कि बहन हुमा नाज़ का मुद्दा लेकिन उसमें किसी ने कोई विशेष दिलचस्पी ली या नहीं ये समझ में ही न आया। आज मैं खुद डा.साहब से इस विषय पर निजी तौर पर फोन करके चर्चा करना चाहता हूं। मैं चाहता हूं कि बहन हुमा अपनी कहानी दुनिया के सामने रखे ताकि उसके साथ हुए अत्याचार को सब जान सकें और जिस में सहायता करने या रास्ता बताने का माद्दा होगा वो सामने आएगा।
जय जय भड़ास

2 टिप्पणियाँ:

डॉ.रूपेश श्रीवास्तव(Dr.Rupesh Shrivastava) ने कहा…

भाई सबकी अपनी-अपनी व्यस्तता रहती है। रही बात मेरे आयुषवेद पर न लिखने की तो आपको एक बड़ी अजीब सी बात बताऊं जो कि मेरे अनुभव में आयी है कि लोगों को आयुर्वेद की याद सामान्यतः सैक्स रोगों पर ही आती है मेरे पास आने वाले ९५ प्रतिशत सवाल ऐसे ही रहते थे तो मेरा अवसादित होना जायज़ है। बाकी मनीषा दीदी ने जो करा है वो तो मैं खुद ही लिखूंगा जल्द ही। मेरी बेटी हुमा का मामला मैं आप सबके सामने ले कर आ रहा हूं मैं चाहता तो सारे मामले को लात-जूते की जद में रख कर निपटाने का प्रयास करता लेकिन ये मामला किसी एक बेटी का नहीं है बल्कि मेरे देश की लाखों बेटियों का है इसलिये गहराई से विचार विमर्श करने की बात है।
जय जय भड़ास

मुनव्वर सुल्ताना Munawwar Sultana منور سلطانہ ने कहा…

भाई,आपने लगभग सही ही लिखा है। तमाम लोग तो भड़ास पर रोना रोने के लिये ही आते हैं जबकि भड़ास पर ई-मेल के द्वारा लेख भेजने की सुविधा है सीधे ही जो कि अन्य किसी सामुदायिक चिट्ठे पर नहीं है। मनीषा दीदी हमारे गुरूजी डा.साहब के साथ कंधे से कंधा मिला कर हुमा बिटिया के मामले में संग हैं(जाहिर है हम सभी हैं) भाई रजनीश से काफ़ी समय से बतिया नहीं पायी हूं आजकल लंतरानी की भी व्यस्तता है। कोई भले लेख न लिख पाए लेकिन दिली तौर पर हम सब जुड़े हैं और ये जुड़ाव आजीवन रहेगा
जय जय भड़ास

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