सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के जज फुगड़ी खेल रहे हैं
शुक्रवार, 12 मार्च 2010
सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती देते हुए दलील दी है कि चीफ़ जस्टिस ऑफ़िस की सूचनाएं संवेदनशील प्रकृति की होती हैं और उनके खुलासे से न्यायपालिका की स्वतंत्रता को नुकसान हो सकता है(ये सिर्फ़ संभावना है या उनका दुराग्रह कि नुकसान हो सकता है, हो सकता है कि न्यायपालिका की कार्यप्रणाली में बेहतरी आ जाए और दूसरी बात कि जिस हाईकोर्ट ने निर्णय सुनाया है क्या वह निपट चूतिया है जो अब उस चूतियापे के निर्णय पर बहस करके संविधान निर्मित हुए इतने दशकों बाद समझा जाएगा कि न्यायपालिका की स्वतंत्रता की क्या सीमा है??) । हाईकोर्ट ने अपने फैसले में चीफ़ जस्टिस के कार्यालय को सूचना के अधिकार यानि आर.टी.आई. कानून के दायरे में होने और वांछित सूचना देने के लिए जवाबदेह बताया है। इस निर्णय के संदर्भ में सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने अपने ही समक्ष एक याचिका दायर करी(हा...हा...हा..... इससे बड़ी कॉमेडी देश के इतिहास में नहीं हुई है कि कोई खुद अपने सामने याचिका रखे लेकिन भाई कानून कानून खेल कर नौटंकी भी तो करनी है जैसे कि जब अंग्रेज किसी को फ़ँसाते थे तो मृत्युदण्ड देने के लिये बाकायदा अदालती नाटक करते थे और फिर अपने फैसले को सामने रख कर बन्दे को फ़ाँसी दे देते थे और हम कुन्दबुद्धि भारतीय ये सोचते थे कि अंग्रेज तो बड़े न्यायप्रिय हैं)। चीफ़ जस्टिस के.जी. बालाकृष्णन द्वारा अपने साथी(स्मरण रहे कि ये वही चीफ़ जस्टिस हैं जो कि मानते हैं कि न्यायपालिका में कोई भी भ्रष्ट नहीं है, पता नहीं ये इनका दुराग्रह है या भोलापन....?) जजों के साथ सलाह-मशविरे के बाद यह याचिका दाखिल की गयी है। याचिका को करीब एक महीने पहले ही तैयार कर लिया गया था। कानूनी मामलों और अदालती खेलों के निपुण इन जजों में जज आनंद सिंह का जिक्र आते ही जूड़ी का बुखार आ जाता है। जज आनंद सिंह जी के बारे में जानने के लिये भड़ास के पुराने पोस्ट टटोलिए।
जय जय भड़ास
1 टिप्पणियाँ:
nice........................
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