लो क सं घ र्ष !: ईमानदारी
रविवार, 23 मई 2010
कहा जाता है कि हर सिद्धान्त का एक अपवाद हुआ करता है। सिद्धान्त है - इस युग का हर वह व्यक्ति ईमानदार है जिसको बेईमानी का मौका नहीं मिलता, लेकिन एक नाम अपवाद है जो है अकील ज़फर। कहते हैं -
काजल की कोठरी में कैसो हू सयानो जाए।
एक लीक काजल की लगि है सो लागि है॥
एक लीक काजल की लगि है सो लागि है॥
कहा जाता है कि अपने देश के हर सरकारी विभाग में भ्रष्टाचार ही फल-फूल रहा है लेकिन स्टाम्प और पंजीयन विभाग नीचे से लेकर ऊपर तक भ्रष्टाचार में डूबा हुआ विभाग है। विक्रय विलेख का पंजीयन हो या फिर मामूली से वसीयत नामे का, बिना चढ़ावा के कोई भी पंजीयन सम्भव नहीं हैं, यह एक आम राय बन चुकी है।
माननीय इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ के समक्ष महानिरीक्षक पंजीयन हिमांशु कुमार ने उपस्थित होकर बताया कि अकील ज़फर उनके विभाग का अकेला अधिकारी (अतिरिक्त महानिरीक्षक, स्टाम्प) ही ईमानदार व्यक्ति है, जिसका समर्थन के दूसरे अधिकारी श्री ए0के0 द्विवेदी ने भी किया, फिर इस बयान पर हंगामा क्यों? अधिकारियों की समिति ने और विशेष करके समिति के अध्यक्ष श्री ओ0पी0 सिंह ने यह हंगामा क्यों खड़ा किया? जबकि श्री हिमांशु कुमार का बयान स्वयं उनके खिलाफ भी जाता है। कहीं ऐसा तो नहीं कि चोर अपनी दाढ़ी में तिनका ढूंढ रहा हो। इस औदे पर रहकर अगर एक अधिकारी सिर्फ अपने बच्चों को पढ़ा सकता है और वह अपने घर में अपनी पत्नी की इच्छा पूर्ति के लिए सोफा नहीं ला सकता और अपने से दफ्तर पैदल जाता-आता है, तो इस तरह की ईमानदारी को ईमानदारी नहीं तो फिर क्या कहें।
श्री ओ0पी0 सिंह जी मान जाइए आप भी ईमानदार को ईमानदार कहिए, वार्षिक प्रवृष्टि तो हर एक की अच्छी होती है बल्कि जहां सब बेईमान हों यहां तक कि वार्षिक इन्ट्री देने वाला भी तो वार्षिक इन्ट्री कैसे खराब हो सकती है। यह दुनिया, बेईमान चाहे जितने बढ़ जाएं चलती है और चलती रहेगी, लेकिन ईमानदारी और ईमानदार की तारीफ भी हमेशा होती आई है और होती रहेगी। ईमानदारी बस ईमानदारी है इसकी महत्ता को कम न कीजिए।
--मोहम्मद शुऐब
1 टिप्पणियाँ:
रूपेश g इमान ले आऊ तब जानो गे की रसूल की मोहृबत कया होती है
abubakar
editor halaat weekly bhiwandi.
allah ap ko neek hidayat de amin
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