शीला दीक्षित बनाम अश्लीला अदीक्षित : साहित्य कबड्डी की उठापटक

सोमवार, 24 मई 2010

जनतांत्रिक व्यवस्था में हमारे राजनैतिक नेतृत्व से हम ये अपेक्षा करते हैं कि वह साहित्य, संगीत, कला आदि जैसे मामलों में दखल न देगा। क्या ये संभव है जिस देश में मकबूल फ़िदा हुसैन की बनाई देवी-देवताओं की नंगी पेंटिंग्स को श्लील या अश्लील के पैमाने से नापने को सबसे पहले राजनेता ही खड़े हो जाते हों तो वहां कृष्ण बलदेव वैद जैसे शीर्षस्थ उपन्यास लेखक को यदि शीला बाई दीक्षित ने दिल्ली सरकार की स्वायत्त संस्थान हिंदी साहित्य अकादमी द्वारा जनाब वैद साहब को २००८ का शलाका सम्मान देने से रोक लगा दी है। ये भी जान लीजिये कि वरिष्ठ कांग्रेसी नेता और दिल्ली असेम्बली के पूर्व स्पीकर पुरुषोत्तम गोयल ने शीला बाई दीक्षित को पत्र लिख कर बताया है कि वैद जी ने जो लिखा उसमें अश्लीलता है,अब साले ठरकी राजनेता ये निर्धारित करेंगे कि किसे साहित्य सम्मान देना हैं और किसे नहीं।
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