हम अंधन के अंध हमारे...
शुक्रवार, 25 जून 2010
कहते हैं जिंदगी में अंधापन सबसे कस्टकारी होता है। आँखों के अंधेपन में तो खैर किसी तरह गुजारा हो जाता है पर अकल के अंधेपन से पल-पल तिल-तिल कस्ट भोगना पड़ता है। जैसा की कुछ लोग भोग रहे हैं। मैं भी शामिल हू उन्ही अकल के अन्धो की जमात में जो देखते सब है लेकिन अनदेखा कर देते हैं। हमारी सब कुछ जानने वाली जनता भी मेरी तरह ही अकल की अंधी है। रोज ढोंगी साधू पकडे जा रहे है फिर भी जनता उन्ही के पीछे भागी जा रही है। क्या कहेंगे इसे अकल का अँधा ही न। कुछ और कह सकते है तो यह आपकी अपनी अकल होगी और आपकी अपनी भाषा शैली। कुछ दिन पहले एक आँखों के झोलाछाप डॉक्टर से मुलाकात हुई। झोलाछाप था इसीलिए उसने कुछ सड़कछाप बाते बताई। बोला- आजकल लोग अँधा नहीं होना चाहते, सब देखना चाहते है फटी फटी आँखों से। लोग बहुत सावधान हो गए हैं आँखों में प्रति, कोई गड़बड़ी नहीं होने देना चाहते। उसका नतीजा है की मेरी दुकान पर अब अंधे नहीं आते। लेकिन एक जबरजस्ट परिवर्तन आया है। ज्यादातर लोग मेरे पास दूसरों को अँधा बनाने के दावा लेने आते है। यानि एक बिजेनेस ख़त्म तो दूसरा शुरू हो गया। डॉक्टर अपनी रौओ में था। मैंने भी न आव देख न ताव एक पौवा देशी का उसकी गिलास में उलट दिया। एक ही घुट में पिने के वह जोर से बोला - आप मिडिया वाले ये क्यूँ चिल्लाते हो की देशी पिने से आदमी अँधा होता। मैं थोडा सकुचाया फिर वो मुस्कुरा कर बोला- यार लोग अंधे ही होते हैं जो देशी या विदेशी पीते है। इस अंधेपन का भी कोई इलाज नहीं है। क्योंकि दवाई मुह में तो ठूसी जा सकती है लेकिन खोपड़ी में घुसाने के लिए सर फोड़ना पड़ेगा। मैंने कहा एक पैक में ही फोड़ने फाड़ने की बात करने लगे डॉक्टर साहब। डॉक्टर हिल चूका था चेहरे से खिल चूका था। बोला- ये दुनिया ही अंधी है जनाब। दरअसल जो दिख रहा है वह नहीं होता और जो नहीं दिख रहा वह हम जान ही नहीं पते। यहाँ सब मुखौटा लगाये घूम रहे है। राम का, रावान का, अल्लाह का, हिन्दू का , मुस्लमान का , सिक्ख का, इसाई का, इसका , उसका सब मुखौटाधारी हैं। तो जो जिसका मुखौटा लगाये है उसी की आँख से देख रहा है। यानि आपकी नज़र में सब अंधे है। मैंने पूछा-- डॉक्टर बोला- नहीं भाई सब कैसे अंधे हो सकते है। फिर तो रस्ते पर चलना मुश्किल हो जायेगा। कुछ आँख वाले भी है धरती पर जो अन्धो को रास्ता दिखा रहे है...मुखौटे उतारकर उन्हें उनकी असली सूरत दिखा रहे हैं। इससे दो तरफा नहीं चौतरफा फायदा हो रहा है। एक तो मुखौटे धारी का भ्रम टूट रहा है की कोई उसे पहचान नहीं पायेगा। दूसरा अन्य अनुयायी जो मुखौटे को ही असली चेहरा मान लेते है उनका कल्याण हो रहा। वे बेचारे सीधे-सादे लोग अब दुसरे का मुखौटा देखने की बजाय अपनी शक्ल आइने में देख आगे बढ़ेंगे। तीसरा फायदा उन सच के अंधे मनुषो का होगा जिन्हें लोग अँधा देखते हुए भी अँधा मानने से इंकार कर उनकी सहयता नहीं करते और चौथा फायदा मुझे होगा। मुखौटा उतरेगा, आंखे खुली होंगी, उनमे धुल मिटटी प्रदुसन बढ़ेगी तो लोग मेरे पास आएंगे...और दो बूंद जिंदगी की तर्ज़ पर उनकी आँखों में अक्ल की दवा डालूँगा ...जिससे उन्हें सब कुछ साफ-साफ दिखने लगेगा....मैंने हंसते हुए कहा...ये सब तो भड़ास के मंच हो ही जाता है..आप भी मेरी सलाह मानिये डॉक्टर साहब ..रोज़ भड़ास की एक डोज लीजिये और आँखों व अक्ल के अंधेपन से मुक्त होइए.....क्योंकि
जय भड़ास जय जय भड़ास
2 टिप्पणियाँ:
मनोज भाई बड़े दिनों बाद??बेहतरीन लिखा है मुखौटा और मुखौटेधारियों के लिये।
क्या खुशखबरी है:)कुछ नया?
जय जय भड़ास
DIDI..KHUSKHABARI YE HAI KI APNE HALCHAL PUCHHA AUR NAYA YE HAI KI PURANE SE MUKTI NAHI MIL RAHI...APKA ASHYA SAMAJH RAHA HU. LEKIN YE BHI SACH HAI DIDI KI KUCHH CHIJE 'PARAMSATTA' KE HATH ME HOTI HAI..HAM TO BAS KOSHISH KAR SAKTE HAI. BAKI AP SABKA ASHIRVAAD RAHA TO KHUSHI BHI MILEGI AUR KHUSHKHABARI BHI...MERA PRANAM SWEEKAR KARE.
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