कई दिनों से देख रहा हूँ भड़ास का मंच नि:संदेह व्यक्तिगत होता जा रहा है, निंदनीय है. हालाँकि हम विचरों के अभिव्यक्ती की हमेशा से स्वागत करते हैं बशर्ते की उसका मकसद अंगूर के द्वारा निचुड़े हुए आम के लिया हो अर्थात वो आम लोग जो सिर्फ और सिर्फ पिसते रहे लोकतंत्र के ढकोसले और विचारों के बजाय अर्थवादी हो चुके तंत्र में,
सभी जानते हैं की ये ही वजह रही की भड़ास ने अपना दर्शन कायम रखते हुए महा बनिया और व्यवसायीक मीडिया का दलाल यशवंत को भड़ास के मंच से खदेड़ दिया क्यूंकि हमारा दर्शन अर्थ काम क्रोध लुभ और मोह से इतर सामाजिक विचार और उत्थान हेतु संघर्ष है.
हमारे कई भाई इन दिनों एक ऎसी बेवजह और व्यक्तिगत बत-कट में उलझ कर अपनी ऊर्जा को यूँ ही व्यय कर रहे हैं जबकि हमारे तमाम उर्जावान भाई इसका उपयोग हमारे देश के मौलिक आवश्यकता की लड़ाई में करें तो हमारी लडाई को एक आयाम प्राप्त हो.
मैं ये नहीं कहता की आप अपनी वैचारिक विभिन्नता को समाप्त कर लें अपितु अपने विभिन्न विचारों को भड़ास के मंच पर इकठ्ठा कर अपने देश के जरुरत मंद लोगों के हक़ की लड़ाई में एक आयाम दें.
आशा है की मेरी बात पर सभी भाई ध्यान देकर इस व्यक्तिगत होती जा रही लडाई को ख़तम कर अपने मिशन में हाथ बढा कर आगे बढ़ेंगे.
शुभेक्षु
रजनीश के झा
2 टिप्पणियाँ:
भाईसाहब लड़ाई व्यक्तिगत हो या संस्थागत लेकिन यदि बामकसद हो तो सही है लेकिन बेमकसद हो तो बिलकुल गलत है। संजय कटारनवरे ने अब तक जो भी लिखा है उसमें न तो कहीं वह निजी नाराजगी दिखा रहा है न ही उसे किसी सुमन या गुफ़रान से खीझ है वो विचारधारा और छद्मनेतृत्व को ललकार रहा है। आप उसकी बातों को बेवजह और व्यक्तिगत कहकर बौना मत करिये। भड़ास पर तो अनूप मंडल जैसे लोगों ने जैनों के खिलाफ़ बिलकुल सीधे शब्दों में हमला करा है तब भड़ास का दर्शन न हिला और अब इस दर्शन पर सवालिया निशान आ गया?
जय जय भड़ास
भाई सोनी जी,
आपसे सहमति है मगर धार्मिक विषय को लेकर अगर बहस व्यक्तिगत हो तो बहस नहीं विवाद हो जाता है,
हम सभी धर्म में एक सामान आस्था रखते हैं और सभी धर्मों का आदर करते हैं, यहाँ भड़ास बहस से इतर विकृत होता चला जा रहा है, सो सभी दुर्जन भड़ासी से एक बार फिर कहूँगा की इन विवाद से इतर सरकार की बेमौसम बरसाती की तरह महगाई की मार पर सरकार को पेल दें. और भड़ास का इस महगाई पर एक मुहीम चला लें तो बेहतर ना हो ?
एक टिप्पणी भेजें