संजय सेन सागर की भविष्यवाणी

मंगलवार, 29 जून 2010

देश में हिन्दू सही है या मुस्लिम इसका फैसला अब हिन्दुस्तान का दर्द पर होने लगा है,बड़े दिनों के बाद यहाँ से गुजरा तो कुछ तरह का माजरा नजर आया,इससे पता चला की संजय सेन सागर न कभी सुधरा है न सुधर सकता है बह हमेशा लोगों की भावनाओं से खेलना जानता है,इसी का एक नमूना आप सब के सामने है..


पृथ्वी पर इस्लाम का समय अब पूरा हो चुका है ?




अमेरिका में कार बम विस्फोट के सिलसिले में पाक-अमेरिकी नागरिक गिरफ्तार.

ये कुछ दिनों पहले की खबर है और इस तरह की खबरें अमूमन हर थोड़े दिन में सुनने में आती हैं. दुनिया धीरे-धीरे दो भागों में बंटती जा रही है - एक इस्लामिक और एक गैर-इस्लामिक. ये सच है कि हर मुसलमान आतंकवादी नहीं होता और ये भी सच है कि दुनिया का 8० फीसदी आतंकवाद इस्लामिक आतंकवाद है. मेरी बात को अन्यथा कतई न लिया जाए, मैं एक धर्म के रूप में इस्लाम का सम्मान करता हूँ. मैं पैगम्बर मोहम्मद के जीवन से वाकिफ हूँ. मोहम्मद का पूरा जीवन लड़ाइयों में बीता लेकिन फिर भी उनका सन्देश शांति और भाईचारे का था. लडाइयां उनकी मजबूरी थी क्योंकि वो समय, वो परिस्थितियाँ कुछ और थी. आदमी जंगली था और आपसी लड़ाइयों में उलझा हुआ था, उसे एकजुट करने के लिए उन्होंने सबको जीता. लेकिन समय बदलने के साथ बहुत सी चीज़ें बेकार हो जाती हैं, सिर्फ वस्तुएं ही नहीं, विचार और क़ानून-कायदे भी बेकार हो जाते हैं. वो समय कब का बीत चुका. उस समय की दुनिया और आज की दुनिया में ज़मीन-आसमान का फर्क आ चुका है लेकिन इस्लाम के अनुयायी इसे स्वीकार करने से इनकार करते हैं, वे वक़्त के साथ चलने को अधर्म मानते हैं. वे आज भी वही जंगली और बर्बर जीवन शैली अपनाए रहना चाहते हैं. उनका समय, उनके विचार जड़ हो गए हैं, एक ही जगह रुक गए हैं और बहता पानी अगर रुक जाए तो वो सड़ जाता है. यही हुआ है. गैर-इस्लामिक लोग अगर इस्लाम को न समझ पायें तो बात समझ में आती है लेकिन इस्लाम का दुर्भाग्य ये है कि उसके अनुयायी ही उसे नहीं समझ पाए. आज क्या इस्लामिक और क्या गैर इस्लामिक सब उसे जिहाद का पर्याय ही मानते हैं मानो अगर क़त्ले-आम न हो तो वो इस्लाम ही नहीं है. मैं ऐसा नहीं कहता कि सभी मुस्लिम उसे जिहाद मानते हैं लेकिन ऐसा मानने वालों की तादाद बहुत ज्यादा है और समझ वालों की कम वरना पढ़े-लिखे और अच्छे घरों के नौजवान क्यों आतंकवादी बनाते. इस्लाम अपने शुद्ध रूप में खूबसूरत है लेकिन उस शुद्ध रूप को समझने वाले लोग कब के ख़त्म हो चुके जिस तरह अब हिन्दू धर्म के शुद्ध रूप को समझने वाले लोग भी कम होते जा रहे हैं. आज जो संस्कृति का झंडा उठाये हुए हैं वे कपड़ों को ही धर्म समझते हैं। उन्हें उसके उच्च मूल्यों का ज्ञान तो दूर, आभास भी नहीं है. वे ठीक इस्लामिक आतंकवादियों की कार्बन-कॉपी होते जा रहे हैं. खैर, हमारा विषय ये नहीं है, बात हो रही है इस्लाम की. सोचने वाली बात ये है कि अब जब दुनिया आगे की ओर बढ़ रही है ऐसे में इस्लाम का ये पिछड़ापन उसके लिए चुनौती है. कोशिश की जा सकती है कि उन्हें इस्लाम का सही अर्थ समझ में आये लेकिन जड़ हो चुकी बुद्धि में कुछ भी उतरना लगभग असंभव हो जाता है. तो क्या ऐसा कहा जा सकता है कि पृथ्वी पर इस्लाम का समय अब पूरा हो चुका है, उसे जो भलाई इंसान की करनी थी वो उसने कर दी और अब सिर्फ नुकसान ही उसकी झोली में बचा है जो उसके अपने ही लोगो ने डाला है.
इस्लामिक संस्कृति ने हमें बहुत सी खूबसूरत चीज़ें दी हैं इसमें कोई शक नहीं. बहुत सी समृद्ध कलाएं जैसे भवन निर्माण जिसका बेहतेरीन नमूना ताजमहल है. लेकिन ये सब इतिहास बन चुका है, मौजूदा स्थितियों में वो कुछ भी रचनात्मक नहीं दे रहा है बल्कि जो कुछ भी रचनात्मक है उसे ख़त्म कर रहा है.
इन परिस्थितियों में दो ही बातें हो सकती हैं, या तो मुस्लिम धर्म के कुछ ऐसे नुमाइंदे सामने आएं जो दुनिया को उसका सही मतलब समझाएं और उसे तरक्की के रास्ते पर ले जाएँ या फिर इस्लाम शांतिपूर्वक दुनिया से विदा हो जाए क्योंकि आखिर में जो बात मायने रखती है वो ये है कि इंसानियत बचनी चाहिए. मैं जानता हूँ कि मेरी बात व्यावहारिक नहीं है लेकिन फिर भी वो एक रास्ता तो है और एक बार बात सामने आ जाए तो पता नहीं कब वो जोर पकड़ ले. सारे फसाद की जड़ ये है कि धर्म को ज़रुरत से ज्यादा संजीदा बना दिया गया है. आखिर धर्म क्या है? वो जीने का एक तरीका है, या यूँ कहें कि शांतिपूर्वक जीने का तरीका है, अगर उसका ये बुनियादी उद्देश्य ही पूरा नहीं हो रहा है तो फिर वो क्यों है? एक बच्चा जब पैदा होता है तो वो किसी धर्म को साथ लेकर नहीं आता. सदियों पहले की दुनिया आज की तरह नहीं थी. तब लोग इस तरह जुड़े हुए नहीं थे. सबने अपनी-अपनी जगहों और परिस्थितियों के अनुसार अपने धर्म बनाए. आज पूरी दुनिया बहुत पास-पास आ गई है. ऐसे में बहुत सारे मतभेदों के साथ नहीं रहा जा सकता. जीने के नए रास्ते अपने आप सामने आते रहेंगे और ये इंसान को ही तय करना है कि कौन सा रास्ता इंसानियत के हक में है जिसे मंज़ूर किया जाए और किसे नकार दिया जाए. एक खूबसूरत सा ख़याल ये भी है कि सभी धर्मों की अच्छाइयों को लेकर एक विश्व-धर्म बने जिसे पूरी दुनिया के लोग माने तो दुनिया कितनी सुखी और सुन्दर हो.आखिर हर इंसान अदृश्य तारों से आपस में जुड़ा है, एक ही उर्जा ने सबको बाँध रखा है फिर अगर मनुष्यता का एक हिस्सा दूसरे को आहत करता है तो वो खुद भी चैन से कभी नहीं रह सकता.



20 Response to "पृथ्वी पर इस्लाम का समय अब पूरा हो चुका है ?"

  1. समस्या की जड तक पहुंचने का प्रयास,
    सुन्दर विवेचन है।

    जब तक की विस्तृत जानकारी न हो तो ऐसे मौजू पर न ही लिखे तो बेहतर है.
    Er. मुहम्मद शाहिद मंसूरी "अजनबी"

    Assistant Professor
    E.C. Department
    N.C.E.T., kanpur
    naiqalam.blogspot.com

    +91-9044510836

    खुदा हाफिज़

5 टिप्पणियाँ:

डॉ.रूपेश श्रीवास्तव(Dr.Rupesh Shrivastava) ने कहा…

अम्बरीश भाई आप काफ़ी दिनों बाद भड़ास पर पधारे आपका तहेदिल से स्वागत है। लौंडियों के छद्म नाम से लिखने वाले संजय सेन सागर ने अब क्या तोता लेकर सड़क पर बैठना भी शुरू कर दिया है जो भविष्यवाणियाँ करने लगा? वैसे इन जैसे ठलुओं को तो सब आजमा कर देख लेना चाहिये वर्चुअली तो इसने सेक्स चेन्ज करा ही रखा है अगर फिजिकली भी करा के सोनिया कपूर बन जाए तो कोई आश्चर्य नहीं होगा। हिन्दुस्तान का सबसे बड़ा दर्द इस जैसे हलकट ही हैं इसने अपने ब्लॉग का नाम एकदम सही रखा है।
जय जय भड़ास

अजय मोहन ने कहा…

सर्वोच्च न्यायालय तक की राय में हिन्दू, हिन्दुत्व या हिन्दू धर्म की कोई परिभाषा नहीं हो सकती, लेकिन हमारे संविधान में यह एक रिलीजन के रूप में दर्ज है। रिलीजन के रूप में परिभाषित होने के कारण भारत जैसा परम्परा से ही सेकुलर राष्ट्र उसके साथ अपनी पहचान नहीं जोडऩा चाहता। सवाल है तो फिर हम विदेशियों द्वारा दिये गये इस शब्द को क्यों अपने गले में लटकाए हुए हैं ? हम क्यों नहीं इसे तोड़कर फेंक देते और भारत व भारती की अपनी पुरानी पहचान वापस ले आते।
आप पता नहीं किस नशे में हैं और हमारे देश की सर्वोच्च न्यायव्यवस्था भी दुष्टों के द्वारा संचालित प्रतीत होती है वरना इस तरह की बात कैसे आती। आप मान रहे हैं कि हिन्दू शब्द विदेशियों ने दिया है तो जरा इसी मंच पर "हिन्दू"शब्द के बारे में इस पोस्ट में देखो। सिर्फ़ अपने पत्रा का नाम नयी दृष्टि रख लेने से कुछ नहीं होता सचमुच नवीनता होनी चाहिये लेकिन आप तो दासतापूर्ण विचारों में ही रेंग रहे हैं।
जय जय भड़ास

santosh jain steel ने कहा…

संजय जी के बारे में इस तरह की बात करके आप लोग अपनी मानसिकता का परिचय दे रहे है,वो देश हित में काम करने वाला व्यक्ति लगता है..खैर आप अपना कम करें वो अपना कर ही रहा है

अनोप मंडल ने कहा…

दुनिया देख ले कि इस मुद्दे पर जो लिखा गया है उस पर एक राक्षस जैन दूसरे का समर्थन कैसे कर रहा है। संजय सेन राक्षस तो नहीं है लेकिन इसके कर्म ठीक वैसे ही है इसलिये जैन को ये देश हित में लग रहा है

बेनामी ने कहा…

गुरुदेव,
ये संजय सेन सागर ना ही पुरुष है ना ही अपुरुष. अपने क्षद्म नामों से इसने ब्लॉग अपने कूड़े के अम्बार के बाद ये नया धंधा शुरू करा है, वैसे हिन्दुस्तान के इस दर्द ने अपने महिला पुरुष के ना होने का दर्द इस ब्लॉग के माध्यम से खूब बटोर है.
भाई अम्बरीश अबकी ना जाना. बस भड़ास भड़ास करते रहना.
जय जय भड़ास

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