आपकी बहन घर से भाग गयी है जश्न मनाइये

शुक्रवार, 25 जून 2010

एक जमाना था जब इतिहास की किताबों में इस तरह की बातें देखा करती थी कि पहले लोग अपने थोथे सामाजिक सम्मान की रक्षा के लिये अपने परिवार की लड़कियों को कत्ल कर दिया करते थे। आजकल पिछले कुछ समय से ये बातें बड़ी तेजी से फैल गयी हैं लगभग हर तीसरा आदमी ट्रेन में इसी विषय पर चर्चा करता मिलता है। मैं तो लोकल ट्रेन के महिलाओं के डिब्बे में बैठती हूं वहां भी यही चर्चा का विषय गर्म है। हमने अपने देश की आजादी के बाद अत्यंत विषम परिस्थिति में संविधान को लिखवा कर देश की जनता पर किसी भी तरह थोप तो दिया लेकिन ये भूल गये कि सामाजिक बदलावों की गति इतनी धीमी होती है कि उसे वांछित रूप में आने में बहुत लम्बा समय लग जाता है। आप बेहद बड़े दिल वाले हैं और छोटे से गांव या कस्बे में रहते हैं तो जरा कल्पना करिये अपने आसपास मौजूद उन लोगों की जो कि जुड़ कर समाज की रचना कर रहे हैं क्या वे इस बात को देश आजाद होने और जमाना बदल रहा है की सोच के बाद भी इस बात को पचा पाते हैं कि उनकी बहन किसी गैर मजहबी या गैर जाति के लड़के के साथ भाग गयी और उसने उससे शादी कर ली? जब ऐसी लड़की का भाई या पिता घर से निकलता है तो फिकरे और छीटाकशी उसका पीछा करती रहती है। जीना हराम हो जाता है। कोई माने या न माने और देश का कानून कुछ भी हो लेकिन हमारा समाज अभी इतना आगे नहीं आया है कि एक चमार का लड़का ब्राह्मण की लड़की से शादी करले या एक सुन्नी मुस्लिम की लड़की शिया लड़के से शादी कर ले और शहर में कुछ फ़साद न हो। विचार करिये उस मनोस्थिति पर जिसमें कोई लड़का अपनी उस सगी बहन को जान से मार देने की हद तक पहुंच जाता है जिसके साथ वह खेला है,उंगली पकड़ कर चलना सीखा है,जिससे होमवर्क कराने में मदद ली है सारा का सारा बचपन साथ बीता है और हर सुख दुख में साथ रहने की बातें होती हैं हर रक्षाबंधन पर जिस बहन को रक्षा का वचन दिया होता है............ जिम्मेदार कौन है इन हत्याओं का जिन्हें ऑनर किलिंग कहा जा रहा है?
जय जय भड़ास

4 टिप्पणियाँ:

मनोज द्विवेदी ने कहा…

BILKUL SATIK CHOT KI HAI APNE..YE SAMAJ DOSHI HAI, SAJA IS PURE SAMAJ KO MILNI CHAHIYE..JAHAN BHOTHARI IJJAT KE LIYE INSAN KA KHOON BHI MAF HAI? BAHAN KE BHAGNE PAR TANE MARNE WALE AB INHE BAHAN KA HATYARA KAH KAR TANE MARENGE..FIR YE KISKA KHUN KARENGE?

बेनामी ने कहा…

आपा ज्वलंत मुद्दे के भड़ास को इस रंग में आप ही लिख सकती हैं,

जय जय भड़ास

डॉ.रूपेश श्रीवास्तव(Dr.Rupesh Shrivastava) ने कहा…

पूरी सहमति है कि समाज के नियम कदाचित कानूनी नियमों से भिन्नता लिये होते हैं और समाज को यदा-कदा कानूनी नियम थोपे हुए प्रतीत होते हैं। सामाजिक बदलाव की गति अत्यंत मंद होती है ये बात सही है जैसे कि भिक्षावृत्ति कानूनी नियम के विरुद्ध है लेकिन समाज में इसे अत्यंत सहज भाव से स्वीकारा जाता है वेश्यावृत्ति के प्रति भी कानून और समाज की बाते अलग हैं। मुझे याद है बचपन में हमारे मोहल्ले की एक लड़की किसी लड़के के साथ चली गयी थी उस समय तो बात समझ में न आयी थी लेकिन उस लड़की के छोटे भाई ने छीटाकशी से तंग आकर दो साल बाद आत्महत्या कर ली थी ये बातें अब समझ में आ रही हैं; क्या वो बहन अपने आपको माफ़ कर पाई होगी? समाज की सोच ने उस लड़के को बाध्य करा था आत्महत्या के लिये। कुछ नहीं हुआ जिन्दगी बस यूं ही चलती रही आज उस लड़की के बड़े बड़े बच्चे हैं लेकिन समाज की स्थिति जस की तस है फिर वही कहानी दोहराई जा सकती है लेकिन अंत अलग हो जाता है इसमें भाई खुद आत्महत्या न करके बहन को ही मार देता है।
जय जय भड़ास

मुनेन्द्र सोनी ने कहा…

आपा तुस्सी ग्रेट हो जी :)
जय जय भड़ास

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