महाबनिया यशवंत सिंह और सुरेश चिपलूणकर को पत्राकारिता के महाआलेख में हाशिए पर पटक दिया रवीन्द्र प्रभात ने
बुधवार, 16 जून 2010
आत्मन रवीन्द्र प्रभात जी या तो जानते नहीं है या उन्होंने जानबूझ कर ऐसा करा होगा ये नहीं पता लेकिन उन्होंने लोकसंघर्ष की सोच से विरोध रखने वाले लोगों को हाइपरलिंक नहीं करा है और जो करे भी हैं तो गलत हैं ये क्या कारण है कि सुरेश चिपलूणकर का पत्रा कड़ीबद्ध नहीं है? दूसरी बात कि बनिया शिरोमणि परमधूर्त मुर्दा भड़ास(हम भड़ासियों द्वारा डंडा करे जाने पर अब भड़ास blog में परिवर्तित) की समाधि पर फूल-माला का धंधा करते यशवंत सिंह का कहीं जिक्र तक नहीं है। निजी तौर पर मैं इन दोनो लोगों असहमत हूं लेकिन ये भी पत्राकार हैं और इस क्षेत्र में खासी दखल रखते हैं। आप सब सोच सकते हैं कि ये क्या बेवकूफ़ी है कि जिनसे वैचारिक विरोध है उन्हें क्यों प्रसिद्धि दी जाए लेकिन यही तो भड़ास का दर्शन है प्यारों कि हो सकता है कि कभी सदबुद्धि आए तो निर्माणात्मक सोच रख कर असल लोकतंत्र को पुष्ट करने के काम आएगा चाहे बनिया हो या बाम्हन। हमने तो यशवंत सिंह के द्वारा भड़ास की प्रसिद्धि को रोकड़ा कराने के लिये चलायी गयी दुकान भड़ास4मीडिया को भी बहुत समय तक भड़ास पर सचित्र कड़ीबद्ध कर रखा था ताकि लोग जान सकें कि आखिर भड़ास के नाम पर ये हो क्या रहा है, यशवंत सिंह ने बड़ी ही कुटिलता और कपट से कई सौ सदस्यों वाले मंच को हड़प लिया लेकिन भड़ास कोई महज वेबपेज नहीं बल्कि जीवनशैली है जो कि एक घोड़े की लीद को धनिया कह कर बेचने वाला बनिया नहीं जी सकता है। घोर वैचारिक असहमति के बाद भी मैं जो इस समय लिख पा रहा हूं वह भड़ास को जी पाने के चलते ही है। आपका आलेख सुरेश चिपलूणकर और यशवंत सिंह जैसे लोगों तक पहुंचे बिना अपूर्ण है ये ध्यान दीजिये। भड़ासियों ने जो भी करा है वो भी शायद आपके इस लेख में आ ही नही सका क्योंकि आपको जानकारी ही नहीं होगी। खैर प्रयास अच्छा है खूब सारे लोग खुश हो गये होंगे उनके चिट्ठों के कड़ीबद्ध जिक्र से।
जय जय भड़ास
1 टिप्पणियाँ:
ओए इडली सांभर तुझे डॉ.साहब ने समझाया भी फिर भी तू समझ नहीं रहा है। भड़ासी अच्चा बच्चा नहीं है ये बात तुम क्यों नहीं समझता कि लोग भड़ास की तरफ मुंह भी करने से डरते हैं चिट्ठाकारों के संपर्क में आकर क्या बिटिया ब्याहनी है।
जय जय भड़ास
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