गुफ़रान सिद्दकी ! यदि मैं दलाल हूँ तो तुम और रणधीर सिंह जैसे लोग वेश्याओं से कम नहीं हो
गुरुवार, 24 जून 2010
मजबूर कर दिया है तुमने लेकिन मेरी इस मनोस्थिति के चलते कई लोग असलियत से परिचित हो जाएंगे। तुम जो चाहते हो वो तुमने कर लिया कि मेरी बात को अपनी तरफ घुमा लो लेकिन मेरा उद्देश्य था रणधीर सिंह सुमन या उस जैसे अन्य लोगों का मुखौटा नोचना जो कि अपने छद्म
आचरण से जनता को ये जताते हैं कि ये ही उनके सच्चे नेता और हितैषी हैं। भारतीय मुसलमानों में अपने बौद्धिक आतंकवाद का इस्तेमाल करके उन्हें हमेशा ये जताया गया कि देखो तुम इस देश में बेगाने हो,ये देश तुम्हारा नहीं है,तुम्हारी सारी श्रद्धा सउदी अरब के प्रति होनी चाहिये,तुम्हें पाकिस्तान के क्रिकेट मैच जीतने पर खुशियाँ मनानी है,तुम्हें और तुम्हारे बच्चों को सरकार झूठे मामले बना कर फंसा कर सजा दिला रही है....... कब तक आखिर भारतीय मुसल मानों के नेता बनने के चक्कर में गैर मुस्लिमों के अंधविरोध का कुटिल राजनैतिक कार्ड खेलना जारी रहेगा। तुम जैसे लोग जो मुसलमानों को जता रहे हो कि वे इस देश में असुर क्षित हैं ये आचरण वेश्याओं से भी गया बीता है। याद रखना हमवतन कि मैं भी भड़ास पर हूँ और तुर्की ब तुर्की जवाब देने का हुनर इसी मंच से तुम्हारे महाभड़ासी कहे गए शख्स से लिया है। चित्र प्रेषित कर रहा हूं तुम्हारे लिये जो कि भारी मन से कर रहा हूँ क्योंकि ये करना नहीं चाहता था लेकिन तुमने बार बार ............ जगह क्या है लिखने को कहा है। इसका दुष्प्रभाव ये होगा कि जो हरामी हिन्दू कार्ड को तुरुप का इक्का समझ कर देश की अस्मिता दांव पर लगाए हैं उन्हें लाभ होगा और वो सियारों की तरह हुआ-हुआ चिल्लाने लगेंगे। तुमने मजबूर कर दिया है इस तरह से पेश आने के लिये इस बात का जरूर अफ़सोस है क्योंकि ये तो हरगिज नहीं चाहा था।जय जय भड़ास
संजय कटारनवरे
मुंबई
2 टिप्पणियाँ:
क्या लोकतांत्रिक देश जैसे कि भारत जो कि इस्लामिक देश नहीं हैं काफ़िर मुल्क हैं?क्या ये कुरान शरीफ़ के पन्ने पर कलाकारी करके जोड़ा गया है या सचमुच ये लिखा है?यदि ऐसा है तो इसका स्पष्टीकरण भी होगा। विषय गम्भीर होता जा रहा है अब विमर्श की बजाए जूतम पैजार कर एक दूसरे की खाल उतारने की बात हो रही है।
संजय कटारनवरे जी आप लोकतंत्र में पहचान की गोपनीयता की बात करके अब तक सामने नहीं आए लेकिन जो भी आप ला रहे हैं आपको अनुमान भी है कि आप क्या कर रहे हैं?धर्मग्रंथों और ईश्वर संबंधी अवधारणा पर मैंने कभी कोई चर्चा नहीं करी,अब आपने जो करा है उसका परिणाम तत्काल ही किसी वेद या पुराण के पेज की फोटो के रूप में आएगा और फिर ले तेरे की... दे तेरे की...। असल चूतियापा इसी को कहते हैं। क्या बात है सुमन जी से पेट भर गया क्या?आपने सही लिखा है कि इस बात का लाभ हिंदुओं के हिमायती बनने वाले चिरकुट जरूर लेने की कोशिश करेंगे लेकिन उनकी लेने की जिम्मेदारी भी मैं आपको ही देता हूं।
जय जय भड़ास
आदरणीय गुरूदेव मैं कहता हूँ कि इस आदमी को खुद गुफ़रान सिद्दकी ने मजबूर करा है वरना इसने धर्म की तो बात तक नहीं करी है। इसका लिखना दमदार है
जय जय भड़ास
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