किसे रगड़ना है और किसे तेल लगाना है ये तो चिकित्सक ही निर्धारित करेगा न भाई..........

बुधवार, 7 जुलाई 2010

भाई दीनबंधु ने लिखा है कि कुत्तों को घी हज़म नहीं होता तो भाई कुत्ते ही क्या मैने अपने चिकित्साभ्यास में तमाम ऐसे इंसान भी देखे हैं जिन्हें दूध धी हज़म नहीं होता इसका मतलब ये नहीं कि वे कुत्ते हैं। ऐसे लोगों को यदि सही इलाज मिले तो इन्हें भी घी जैसी पौष्टिक चीज पचने लगेगी। लेकिन इसके लिये सबसे जरूरी बात ये रहती है कि पहले पेट भली प्रकार साफ़ हो क्योंकि जिस प्रकार मैले कपड़े पर रंग नहीं करा जाता पहले धोया सुखाया जाता है वैसे ही देह और मन को भी शुद्ध कर लेना आवश्यक रहता है। आयुर्वेद में वमन, विरेचन, स्नेहन ,स्वेदन, मर्दन जैसे कर्मों का आपने नाम सुना होगा इन्हें पंचकर्म कहते हैं। वैसे तो ये शुद्धिकरण के लिये प्रयोग करे जाते हैं लेकिन इनके अपने प्रभाव भी अत्यंत उपचारक होते हैं कई बीमारियां तो मात्र इनके ही प्रयोग से बिना औषधि के ही ठीक हो जाती हैं। इसी तरह मेरा मानना है कि यदि भड़ास पर पधारे लोग थोड़ा उल्टी करें, दस्त करें, पसीना छोड़ दें, रगड़े रगेदे जाएं या तेल लगाए जाएं तो काफ़ी हद तक निर्मल हो सकते हैं लेकिन किसे रगड़ना है और किसे तेल लगाना है ये तो चिकित्सक ही निर्धारित करेगा न भाई :) अब जिसे पहले से ही जुलाब हो रहा हो आप उसे ऐसे टाँग खीच दें कि उसकी नाभि ही उखड़ जाए और उसे कस कर जोरदार दस्त होने लगे तो ये सही न होगा ,उपचार ही गलत हो जाएगा लोग कहेंगे कि भाई भड़ास पर जाना ही गलत है उल्टा उपचार कर दिया जाता है। उम्मीद है कि आप सब इस विचार को भली प्रकार समझ रहे होंगे। मैं आप सब से मुखातिब हूँ चाहे भाई गुफ़रान सिद्दकी हों या भाई(?)संजय कटारनवरे, भाई अजय मोहन हों या भाई दीनबंधु,मुनव्वर आपा हो या फ़रहीन नाज़, भाई वकील साहब रणधीर सिंह सुमन हों या फिर अनूप मंडल........
आप सारे लोग इन बातों को समझ सकते हैं कि भड़ास की क्या रचनात्मकता है और वो कैसे उपज कर फलीभूत होती है, हम कैसे ऑनलाइन से ऑफ़लाइन होकर एक दूसरे के सुख दुःख में दिल से जुड़ जाते हैं जैसे कि भाई रजनीश झा के बेटे हनु का मुंडन हो तो भी भड़ास उस संस्कार की परम्परा के निर्वाह में आनंदित है दूसरी ओर मैं दुबई में बैठे मेरे एक परिचित की पथरी का इलाज के विषय में लिये गये गलत निर्णय पर उसे भड़ास पर ही इलाज बता रहा हूँ जबकि ये विषय मेरे चिकित्सा संबंधी आयुर्वेदीय पत्रा आयुषवेद का है।
बस ऐसे ही जीवन की गाड़ी चलती रहेगी और भड़ास अमर हो गया इस विचार का उद्भव हुआ है चाहे हम रहें न रहें.....
जय जय भड़ास

2 टिप्पणियाँ:

अन्तर सोहिल ने कहा…

बिल्कुल सही बात

प्रणाम स्वीकार करें

बेनामी ने कहा…

गुरुदेव बहुत खूब,
मगर अभी अमर कहाँ हुआ है, अभी तो बहुत सारी शहादत देनी बाकी है.
हाँ भड़ास ने एक परंपरा की शुरुआत करी है और ये लडाई का अद्भुत तरीका जरूर इतिहास में अमर हो जाने वाला है,
जय जय भड़ास

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