बिहारी मीडिया सिर्फ नितीश की दलाली कर अपने संस्थान की उगाही के लिए है !!
गुरुवार, 8 जुलाई 2010
डोमा मंडल, उम्र २४ साल बिना माँ बाप का एक अनाथ अपनी बीवी और दो दूधमूंहें बच्चे के लिए दिल्ली छोड़ अपने घर (मधुबनी) आया और यहीं पहले किराए का रिक्शा फिर अपने मेहनत से अपना रिक्शा खरीद अपने घर बीवी बच्चे का गुजर बसर करता था। बिहार विकाश के लिए मैंने इसी डोमा मंडल का उदाहरण देते हुए पोस्ट भी डाली थी।
कल डोमा की मृत्यु पोखर में नहाते वक्त हो गयी, भारत बंद होने के कारण कल वो रिक्शा चलाने नहीं गया था और इसी कारण घर पर ही था। जिला मुख्यालय के एक प्रसिद्द महाविद्यालय में एक की मौत डूबने से हो गयी मगर ये खबर किसी अखबार में नहीं आयी। डोमा के मरने से जहाँ उसकी १८ साल की बीवी दाने दाने को मोहताज हो गयी वहीँ उसका दूध्मूहाँ बच्चा को अब दूध नसीब नहीं होगा।
एक मौत कई मौतें मगर बिहार के निकम्मे और दलाली में आकंठ दुबे मीडिया के लिए ये कोई खबर नहीं थी। गली कुचे मोहल्ले से लेकरचौक संस्करण तक का अखबार निकाल बिहार में दैनिक हिन्दुस्तान और दैनिक जागरण सरीखे अख़बारों ने पत्रकार के नाम पर गुंडे ठेकेदार और दलालों की जो फ़ौज इकट्ठी की है वो खबर के बजाय सरकार का गुणगान और अपने संस्थान के लिए उगाही तो खूब करती है मगर जिस आम लोगों से उनका अखबारी धंधा चलता है को रंगदारों की तरह समझने वाले बिहार के धंधेबाज पत्रकारों ने इस छोटे से उदाहरण से साबित किया की बिहार की पत्रकारिता बिहार के लोगों के लिए नहीं अपितु अपने मीडिया संस्थान और सरकार की दलाली कर सिर्फ बिहार को लूटने में लुटेरों के साथ किस कदर शामिल है।
भड़ास बिहार में मीडिया और पत्रकारिता की निंदा करता है।
1 टिप्पणियाँ:
रजनीश भाईसाहब आपने जो लिखा वह अक्षरशः सत्य है लेकिन ये मीडिया और हमारे मौकापरस्त पत्रकारजन सिर्फ़ नितीश की ही नहीं तौल रहे ये तो हर सत्तासीन के पीछे उसके तौलते खडे रहते हैं और ये हाल बिहार ही नहीं कमोबेश पूरे भारत का है
जय जय भड़ास
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