गोली चाहे सी.आर.पी.एफ़. की बंदूक से निकले या सेना की बंदूक से क्या फर्क पड़ता है?????
शुक्रवार, 9 जुलाई 2010
अब तक ये समझ में नहीं आया कि जब लोग नक्स्लवाद के वर्तमान रूप माओवाद को समाप्त करना चाहते ही हैं तो भारत सरकार बच्चों की तरह क्या खेल खेल रही है और हमारे अतिबुद्धिजीवी उसे मनोरंजन मान कर तर्क-वितर्क करते हैं। रोजाना की खबरें मीडिया द्वारा परोसी जाती हैं कि आज माओवादियों ने इतने पेल दिये कल उतने पेल दिये, रेलवे स्टेशन उड़ा दिया, रेलगाड़ी अगवा कर ली........। क्या कभी ये मीडिया ने बताया कि नक्सलवाद कैसे इस हद तक क्रूर और ताकतवर हो गया कि जिन अधनंगे किसान और मजदूरों के पेट में रोटी नहीं है वे एसाल्ट राइफ़ल्स कहां से ले आते हैं और ले भी आते हैं तो उन्हें बेच कर अपना पेट क्यों नहीं भर लेते? इस तरह के हजारों सवाल मेरे दिमाग में चकराते रहते हैं मैं ये सिद्ध करने की कोशिश नहीं कर रहा कि भड़ासियों के पास भी दिमाग है लेकिन जो भी है भूसा-कूड़ा उसी में मंडराते हैं ये सवाल। क्या सरकार खुद इस समस्या का पोषण कर रही है जैसे काश्मीर और अयोध्या की समस्याएं हैं? सरकार चलाते रहने के लिये जिस ईंधन की आवश्यकता सबसे ज्यादा होती है वह हैं मुद्दे.... रोटी, रोजगार, स्वास्थ्य, रास्ते, बिजली, पानी, धार्मिक उठापटक, आरक्षण...... हजारों मुद्दे.... यदि एक एक करके मुद्दे सुलझ गये तो मीडिया क्या करेगा और राजनेता क्या करेंगे?
अभी हाल ही में माओवादी पदाधिकारी आजाद के साथ में एक और बंदा हमारे बहादुरों ने मार दिया जिसका नाम हेम था जो कि एक पत्रकार था लेकिन सरकारी सूत्र उसे भी माओवादी बता रहे हैं ताकि ज्यादा झंझट न हो जो जो मरता जाए उसे माओवादी बताते चलें इसी बहाव में यदि निजी दुश्मनियां भी हों या सुपारी वगैरह लेना देना हो तो वो भी शुरू करा जा सकता है। श्री लंका में लिट्टॆ का सफ़ाया हो सकता है लेकिन हमारे यहां से नक्सल समस्या का हल नहीं निकल सकता इसके लिये तो हमारे प्रधानमंत्री अमेरिका से सलाह और सहायता लेंगे तब आगे काम करेंगे।
जय जय भड़ास
2 टिप्पणियाँ:
मार दिया पापड़ वाले को....
आपने सही लिखा कि सरकार समस्याओं को जिंदा रखती है तभी तो असरकार हो पाती है वरना असर खत्म हो जाता है...
जय जय भड़ास
जय गुरुदेव,
इसे कहते हैं डाक्टर रुपेश श्रीवास्तव की भड़ास ,
बिलकुल सही कहा है और इन्ही निकम्मों की वजह से समस्याएं जिन्दा हैं.
जय जय भड़ास
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