जी हाँ ये है हाले दिल बयां, हम भड़ासी और हमारा भड़ास जिसे यशवंत सिंह नामक बनिये ने बेचने के लिए वो तमाम तरीके अपनाये जिस से भड़ास कि आत्मा बिक जाए, इसी क्रम में इसने तानाशाही दिखाते हुए कईयों को भड़ास से डिलीट किया तो कईयों ने खुद ही भड़ास से कन्नी काट लिया. कारण भड़ास एक खुलामंच नहीं अपितु यशवंत सिंह के अपने दूकान भड़ास 4 मीडिया को चलाने के लिए दलालों कि जरुरत इसी जगह से पूरी होती दिखाई दे रही थी.विचारों पर बबेसबब बहस और उसका उत्तरोत्तर निष्कर्ष ही भड़ास की आत्मा में बसता था और इसी आत्मा के साथ कईयों ने दिल लगाये थे मगर श्रीमान यशवंत सिंह जी को लगता था कि ये सब उसकी टोली के हुडदंगी पहलवान हैं जो उसके लिए कुछ भी कर सकते हैं. जब इसकी तानाशाही से आजिज आने वालों कि संख्या बढ़ने लगी तो लोगों ने जो कन्नी कटा उनमें से कई भाइयों से मुलाकात हुई, तस्वीर में आप देख सकते हैं हरदेश अग्रवाल और मैं अर्थात दो भडासी जब मिले तो ना गिला रहा ना शिकवा बस दो भाइयों का आत्मीय मिलन मानो बरसो बिछड़े भाई हों.
बताता चलूँ कि यशवंत ने तानाशाही दिखाते हुए ना सिर्फ इनके पोस्ट को भड़ास से हटा देता था अपितु इसने मेरे और इनके बीच मतभेद भी करवाए, वो तो जब हमारा आमना सामना हुआ तो ना गिला रहा ना शिकवा बस भड़ास का परिवार और हमारी एकता.
ऐसे कई किस्से हैं जो यशवंत के करतूतों के गवाह हैं और मेरी उँगलियों में कैद हैं.
जय जय भड़ास
4 टिप्पणियाँ:
रजनीश सर जो किस्से कैद हैं उन्हें रिहा कर दीजिये ताकि मक्कारों के चेहरे बेनकाब हो जाएं वरना ये नेता बने रहेंगे
जय जय भड़ास
रजनीश भाई यशवंत जैसे चिरकुट यदि चाहें भी तो जो सच्चे भड़ासी हैं उनके बीच दूरी नहीं बना सकते। वो अपनी रोटी के लिये जमीन तलाश रहा था इसलिये उसने भड़ास को उर्वर पाकर कुत्तापन की फसल रोपनी चाही लेकिन हम तो दुनिया ही उड़ा लाए
जय जय भड़ास
पोस्ट के बारे में कुछ नहीं
हां दो यारों की गले मिलती और मुस्कुराती फोटो बहुत अच्छी लगी।
प्रणाम
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