राक्षस अपने हिसाब से कानून बदलवा लेते हैं क्या आपको इसकी खबर है?
सोमवार, 19 जुलाई 2010
हमारे देश के संविधान में वन्य जीवों के संरक्षण से संबंधित कानून है, पशुओं के साथ क्रूरता रोकने के लिये कानून है। साथ ही साथ आप सब ये भी जानते हैं कि हमारे संविधान में ही इन सारे कानूनों को कानूनी तौर पर तोड़ने मरोड़ने और अपने हिसाब से पक्ष में करवा लेने की ब्रिटिश शासन काल की व्यवस्था अब तक विद्यमान है जिसे कि संविधान की आत्मा माना जाता है इसीलिये कथित न्याय हमेशा शक्तिशाली और अमीर के पक्ष में अधिकांशतः होता है। अन्याय भी न्यायायिक पद्धति से करा जाता है ताकि आपको लगे कि ये तो न्याय प्रक्रिया ही है। पहले न्याय खुले मैदानों में जनता के समक्ष हुआ करता था आजकल बंद वातानुकूलित कमरों में दो चार जज मिल कर मनमाना निर्णय देते हैं जिसे न्याय मान कर स्वीकारना आपकी मजबूरी हो जाता है यदि न माने तो अदालत की अवमानना से लेकर राजद्रोह तक के मुकदमों में आपको जेल में डाल कर सीधा कर दिया जाता है।जैन राक्षसों की प्रत्येक सरकार पर बड़ी गहरी पकड़ रहती है क्योंकि अधिकतर पूँजी इन्हीं के पास है जिसमें से ये चंदे के रूप में काफ़ी धन लालची राजनैतिक पार्टियों को देते हैं और सरकार में आने पर मनमाने फैसले अपने पक्ष में करवाते हैं। जिसका सीधा उदाहरण आप सबके सामने रखा जा रहा है। मोर पंखों के लिये राष्ट्रीय पक्षी मोर का निर्ममता से शिकार करा जाता है वो जमाना बीत गया कि जंगलों से लोग खुद अपने आप गिरे मोरपंखों का संग्रह करें और बाजार में बेचने आएं। आजकल तो मोर को मार कर उसका माँस विशेष जनों को परोस दिया जाता है और पंख बाजार में बेच दिये जाते हैं। इस बात पर कुछ लोगों ने मोरपंख की बिक्री को वन्यजीव संरक्षा अधिनियम के अंतर्गत प्रतिबंधित कराने के लिये प्रयास करे लेकिन जरा देखिये कि राक्षसों की कानूनी पकड़ कितनी गहरी है कि इस मुद्दे को कानून में से ही विलोपित यानि गायब करा लिया जिसके लिये कांग्रेस को तेल मालिश करी जा रही है। यदि इसी तर्ज पर हिंदू बाघ की खाल और हिरन की खाल को धर्म से जोड़ कर कुछ बोलना चाहें तो उन्हें झट से फिरकापरस्त, क्रूर और न जाने क्या क्या ठहरा दिया जाएगा। चलिये इसी बहाने अब बेहोशी की दवा बुझे दाने डाल कर मोरों का शिकार करने का रास्ता राक्षसों ने खोल लिया है। ऐसी सरकार और न्याय प्रणाली धिक्कार की पात्र है। मृगचर्म और व्याघ्रचर्म भी एक समय में हिंदू साधुओं के लिये साधना का आसन रही है ये बात न जाने कितने पुराने ग्रन्थों में लिखी है किन्तु हिन्दुओं ने सहिष्णुता दिखा कर बदलते समय को स्वीकार लिया है पर राक्षस नहीं मानते। अब भी मौका है कि आप इन राक्षसों को पहचानिये और इनसे मुक्ति पाने का उपाय करिये वरना हिंदू मुसलमान आपस में लड़ते रहोगे और ये भामाशाह के पुजारी तुम्हारी औलादों को भी गारत कर देंगे।
जय नकलंक देव
जय जय भड़ास
4 टिप्पणियाँ:
क्या बात है यार जब से संजय कटारनवरे ने कबड्डी खेली है वकील साहब रणधीर सिंह सुमन अब आपकी पोस्ट पर nice तक लिखने नहीं आते। वैसे आपने कानून में मनचाही हेराफेरी की जो बात लिखी है वह कुछ हद तक सही है कि कानून भी वही है जो ताकतवर और धनी की पसंद है
जय जय भड़ास
चुप्पी.... बस यही प्रतिक्रिया रहेगी। इतना सब होने के बाद किसमें साहस है कि अपना पक्ष स्पष्ट कर सकेगा। जैनों के बारे में आपने जो लिखा है वह प्रमाण के साथ लिखा है आपकी कोई बात आज तक कपोलकल्पित नहीं महसूस हुई
जय जय भड़ास
लो इनकी ये अपना रूप दिखा रहे हैं
जय जय भड़ास
ह्म्म्म कबड्डी कबड्डी.....
जय जय भड़ास
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