अथ भड़ास कथा... महाधूर्त वणिक यशवंत सिंह के प्रति पत्रकारों का नज़रिया

शनिवार, 10 जुलाई 2010

भड़ास किसकी, भड़ास की आवश्यकता क्यों, भड़ास की आड़ में कौन अपनी उल्लू सीधे कर रहा है, क्या इस प्रकार की भडास से वे पत्रकार लाभावन्वित हो रहे है जो पत्रकारिता में मर्यादा स्थापित करने का काम कर रहे है या इस भड़ास से वे चालबाज़ पत्रकार अपने सपने को साकार कर रहे है जो नहीं चाहते की देश व समाज में वैल्यू वाली पत्रकारिता स्थापित हो. इन दिनों पत्रकारों में गर कोई पोर्टल ज्यादा लोकप्रिय है तो वो है www.bhadas4media.com पर एक सच्चाई ये भी है की इसमें सत्य का बड़ी ही बेदर्दी से खून हो रहा है, जो बता रहा है की वैल्यू वाली पत्रकारिता के लिए खासकर इसमें कोई स्थान नहीं. ये साबित करने के लिए हमारे पास कई प्रमाण है, पर यहाँ तीन प्रमाणों से ही मै सब कुछ कह देना चाहता हूँ.
. आज मैंने इसी पोर्टल में पढ़ा की, "संपादक से परेशान तीन पत्रकारों ने प्रभात खबर छोड़ा". सच्चाई क्या है इसी पोर्टल में सुशील झा ने स्वयम कमेंट्स देकर बता दिया और पोर्टल पर समाचार लिखनेवालो की धज्जियाँ उडा दी. साथ ही ख़ुशी की बात हमारे लिए ये है की प्रभात खबर के पटना संपादक स्वयं प्रकाश जी और यही कार्यरत सुशील झा को मै बहुत अच्छी तरह जानता हूँ. ये दोनों भावी पीढ़ियों के लिए प्रेरणाश्रोत है, इनसे गड़बड़ियों की आशा करना, बेमानी है. क्योकि ये दोनों विशुद्ध रूप से पत्रकार है और धनलोलुपता एवम मर्यादाविहीन इनमे से कोई नहीं है.
ख. इसी में रांची से एक सूचना थी की "ब्राह्मण संपादक ने क्षत्रिय पत्रकारों को भगाए". मै तो जानता था की पत्रकार, सिर्फ पत्रकार होता है वो ब्राह्मण, क्षत्रिय और दलित कैसे होता जा रहा है, हमारी समझ के बाहर है. यानी आप अपने ढंग से किसी को ब्राह्मण और क्षत्रिय अथवा दलित कह कर अपमानित करते रहे. यानि गर उसने इमानदारी से कभी पत्रकारिता की भी होगी तो क्षण भर में उसे जाति में तौल कर उसे नीचे गिरा दिया. खैर आपकी मर्जी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का मानमर्दन करते रहिये.
ग. --- 1 जुलाई को इसी पोर्टल में एक समाचार आया की "मौर्य टीवी से 6 महीने में 8 गए". पहली बात की इसमें संख्या ही गलत थी, जानेवालो की संख्या 8 से भी ज्यादा थी. जो समाचार लिखे है वो गर मुझसे संपर्क करते तो हम बताते.
दूसरी बात जब आप लिखते है की उन्हें हटाया गया, तो हटाये जानेवाले का पक्ष भी इमानदारी से देना चाहिए. गर आप उसका पक्ष नहीं देते तो ये भी साफ़ है की आप किसकी आरती उतार रहे है.
तीसरी बात जब आपने कमेंट्स मंगाई, और लोगों ने कमेंट्स खुलकर दिए, तो उन 13 कमेंट्स को 3 जुलाई को किसके कहने पर उडा दिया. आखिर जो कमेंट्स उस पर अच्छा हो या बुरा जा रहा है, तो उससे किसको तकलीफ हो रही थी. जनाबे आली को बताना चाहिए. इसका मतलब है कि भडास4मीडिया. कॉम या तो यूज कर रहा है या यूज हो रहा है.
एक तकलीफ इस पोर्टल से मुझे कुछ ज्यादा ही होती है, वो ये की ये पोर्टल होती तो मीडियावालो के लिए पर आलेखों और कमेंट्स में जो छद्म नामों से एक - दुसरे नापसंदों के लिए जो अपशब्दों के प्रयोग होते है, वो बताते है की हम कितने शालीन और एक-दुसरे को इज्ज़त करनेवाले है. जरूरत है स्वयम को सुधारने की, जब आप सुधरेंगे, धीरे धीरे लोग आपका अनुसरण करेंगे, नहीं तो क्या होगा, शायद आप कबीर की पंक्ति भूल रहे है ------------------
बुरा जो देखन मै चला, बुरा न मीलिया कोय।
जो दिल खोजा आपना, मुझसा बुरा न कोय
।।

:- साभार-:
पत्रकारिता का सच....!

1 टिप्पणियाँ:

बेनामी ने कहा…

गुरुदेव,
यशवंत और अविनाश ब्लॉग जगत में आये दो पत्रकारिता के वो बड़े जुतखोर हैं जिन्हें दलाली के कारण ही पत्रकारिता से जूता मार कर निकला गया. पत्रकारिता के नए पौधे को भले ही इनके बारे में ना पता हो और ब्लॉग के बहाने इन्होने पत्रकारिता के दलाली का धंधा फिर से सुरु कर पत्रकारिता को सदा रहे हैं मगर पत्रकारिता के पुराने खिलाडी इन्हें जानते हैं और इनके सड़े गले दलाली और चुतियापे को मान तवज्जो ही नहीं देते.
भाई का प्रयास सराहनीय है और आगे भी जारी रहे.
जय जय भड़ास

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