काहे का नियम काहे का कायदा..
गुरुवार, 15 जुलाई 2010
नि:संदेह नियम कानून की बात हो तो चौक चौराहे से लेकर गली के नुक्कड़ या फिर पान की दूकान बस कानून की दुहाई देने वालों का ताँता होता है मगर क्या हम खुद इन कानूनों पर अमल कर जिम्मेदारी को निभाते हैं ?
कहना तनिक भी कठिन नहीं की हमारे देश के जो जितने पढ़े लिखे सभ्य और बौधिक वर्ग के लोग हैं ने हमारे देश के नियम कानून और कायदे को अपने जूते का फीता समझ रखा है, बहस बा बहस की बात हो तो बड़े बड़े दपोर्शंखी बातों का पुलिंदा रखने वाले ये लोग बस हमारे देश की तुलना बाकी देश से कर गरीब और अति गरीब के गरीबी का माखौल उड़ा कर जहाँ देश के सुन्दरता और गतिशीलता की बात करते हैं वहीँ.........
तस्वीर तो मात्र एक आइना है ये हिन्दुस्तान की पहचान भी की हम कानून को जब चाहें तोड़ेंगे जो उखाड़ना है उखाड लो.........
2 टिप्पणियाँ:
sahi hai
काहे का नियम काहे का कायदा
सस्ते में तोड़ लो अगर हो फ़ायदा
ये तुकबन्दी डा.साहब की स्टाइल में है रजनीश सर आप जरा ये तस्वीर सही एंगल से लेते तो ये भी पता चल जाता कि ये कार किस भले आदमी की है
जय जय भड़ास
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