भड़ासी मरते ही नहीं हैं
शनिवार, 28 अगस्त 2010
आजकल मैंने अपने मुंबईय्या भड़ासियों को मना कर रखा है कि भड़ास को इंटरनेट की बजाए दैनिक जीवन में जगाए रहिये वरना वर्चुअल संसार में ही कलाबाजियां खाते रहोगे और दुष्ट, धूर्त,कांइया किस्म के लोग समाज में, सड़कों पर, ट्रेन में, संसद में हर जगह हरामीपन जारी रखेंगे और आप सब एक दूसरे को ई-मेल और एस.एम.एस. करते रहोगे और लुटते रहोगे। अजय मोहन, दीनबंधु, मनीषा नारायण दीदी, मुनव्वर सुल्ताना आपा, फ़रहीन, आएशा, शेख ज़ैनब, बादशाह बासित,मुनेन्द्र सोनी जैसे धुरंधर लिक्खाड़ शांत बैठे रहें ऐसा कैसे हो सकता है। इनमें अनूप मंडल शामिल नहीं हैं। भाई रजनीश झा भी भड़ास पर नज़र रखते हुए बैठे हैं लेकिन खामोश कैसे रहें तो सब के सब कहीं न कहीं भड़ास निकालते ही चल रहे हैं सुधरने की गुंजाइश समाप्त हो चुकी है। अपने निजी पत्रा पर लोग उगल ही रहे हैं। आजकल मेरा मन करा तो मैं भी मीडिया क्लब औफ़ इंडिया नाम की एक वेबसाइट पर लिख आता हूं। ये देख कर कोई आश्चर्य नहीं हुआ कि उस मंच पर भी मुखौटाधारी धूर्तों की कमी नहीं है। ये लोग इतने मक्कार हैं कि मुद्दे की बात पर चुप्पी साध लेते हैं और अघोषित बहिष्कार कर देते हैं, ये सोचते हैं कि इस तरह से भड़ासी इन्हें छोड़ देंगे। अब मैं अपने सभी भड़ासी साथियों को दोबारा वर्चुअल मंचों पर आने का निवेदन करता हूं कि मेरी इस मुहिम में बढ़ चढ़ कर ही नहीं बल्कि चढ़ चढ़ कर हिस्सा लें और इन धूर्तों के मुखौटे नोच कर असल चेहरे सामने लाने के लिये विमर्श रखें ताकि ये या तो बात करें या मंच छोड़ कर भाग जाएं। भड़ासी तब तक जीवित रहेंगे जब तक एक भी छद्मनेता और धूर्त जीवित है।
जय जय भड़ास
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