श्रीमती आशा जोगलेकर वास्तविकता स्वीकारने में झेंप रही हैं क्या?????

बुधवार, 22 सितंबर 2010

हिंदुओं में नजदीकी शादी संबंधों को लेकर भाई अजय मोहन जी ने जो लिखा कि महाराष्ट्र में लोग मामा की बेटी से शादी करते हैं जबकि उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश, बिहार आदि राज्यों में इस तरह के संबंध के बारे में सामाजिक सोच रखने वाला व्यक्ति सोच भी नहीं सकता। मामा, मौसी आदि से शादी के बारे में तो यदि कोई कितनी भी कसमें खा कर कहे कि ऐसा भी होता है तो लोग बताने वाले को पागल ही मानेंगे और साथ में जुतिया भी देंगे।
श्रीमती आशा जोगलेकर जी ने इस बात पर टिप्पणी करी है कि अब महाराष्ट्र में ये परम्परा सिर्फ़ सांकेतिक रह गई है तो आशा जी भ्रमित हैं क्योंकि यहाँ के सभी वर्णो यानि ब्राह्मण(कोकणस्थ और देशस्थ दोनो), वाणी , माली, कुणबी, आगरी , कोळी , चांबार , महार , लोहार आदि सभी में तो मेरे मित्र और मरीज़ हैं जिनमें मैं अक्सर ही इस तरह के संबंध देख रहा हूँ तो आशा जी से इतना ही कहूँगा कि ये परम्परा पूरी तरह से जीवित है बल्कि बहुत सारे घरों में तो मैंने देखा है कि मामा जी की लड़की से यदि शादी न कर के दूसरी लड़की से शादी कर दी जाए तो रिश्तों में आजीवन खटास देखी है। कई मामले तो ऐसे कि यदि मामा ने अपनी लड़की की शादी दूसरे लड़के से तय कर दी तो लड़के ने लड़की की हत्या तक कर दी क्योंकि वह उस पर पहला हक अपना मानता रहा है बचपन से....। कितने गहरे में धंसे हैं ये विचार समाज में और आशा जी हैं कि इसे सांकेतिक बता कर शायद अपनी झेंप मिटा रही हैं। ये बात तो यहाँ के हजारों लोकगीतों में आपको सुनने को मिल जाएगी। आप यदि भारत से बाहर हैं तो भी यदि चाहें तो इंटरनेट पर आगरी/कोळी लोकगीतों को डाउनलोड कर लीजिये मेरी बात की पुष्टि हो जाएगी और आपका भ्रम दूर हो जाएगा।
जय जय भड़ास

5 टिप्पणियाँ:

Gyan Darpan ने कहा…

इस परम्परा के बारे में हमने तो पहली बार सुना है और आश्चर्यचकित है कि मामा की लड़की के साथ महाराष्ट्र के हिन्दुओं में शादियाँ होती है !!

Unknown ने कहा…

बात सही है… महाराष्ट्र की कई उपजातियों और समूहों में यह होता है…

लेकिन जैसा कि लेखक भाई ने कहा कि "वह उस पर पहला हक अपना मानता रहा है बचपन से...." वैसी बुरी स्थिति भी नहीं है… ये थोड़ा अतिवादी बयान है…

बुआ-मामा के लड़के-लड़की की शादी को मराठी में "आते-मामे" सम्बन्ध कहते हैं और बहुत आम प्रचलन में तो नहीं, लेकिन हाँ… ग्रामीण क्षेत्रों में प्रचलन में अवश्य है अभी भी…

और जैसे-जैसे शिक्षा का प्रसार बढ़ता जा रहा है यह धीरे-धीरे खत्म हो रहा है…। क्योंकि लड़कियाँ पढ़ाई करके करियर बना रही हैं और लड़के भी गाँव से बाहर जाकर शहरों में बस रहे हैं…। आने वाले कुछ साल में यह परम्परा(?) अपने-आप खत्म हो जायेगी…

अनोप मंडल ने कहा…

शेखावत जी और चिपलूनकर जी आपने इस तरह के संबंधों के बारे में शायद एक और संबंध न सुना हो जिसे "साठा-पाठा" कहते हैं महाराष्ट्र में यानि कि तेरी बहन से मैं शादी कर लूं और मेरी बहन से तू... यानि कि मैं तेरा जीजा और तू मेरा जीजा साथ ही तू मेरा साला और मैं तेरा साला। ये कैसा संबंध है क्या हिंदुओं में मान्य होगा क्योंकि जिसके पैर पूजे जाते हैं परंपरा होती है जिसे बहन दी जाती है तो पैर पुजाई की रस्म है लेकिन ये हिंदुओं की कैसी परम्परा है??
महाराष्ट्र में मुसलमानों का तो शिवाजी महाराज के समय से विरोध रहा है जो कि आज भी जनमानस में खुल कर दिखता है लेकिन महाराष्ट्र में जैनियों का कैसा रोल रहा इसके बारे में सब शान्त रहे हैं क्या आप को ऐसा नहीं लगता कि राक्षसी परम्पराएं हैं क्योंकि मारीच और खर दूषण आदि राक्षस महाराष्ट्र के ही थे तो बहुत संभव है कि हिंदुओं में ये दूषित परम्पराएं वहीं से आयी हों जिसके निर्वाहक जैन रहे हों और जब हिंदू दूषित हो गए तो इन्होंने अपने आपको बदल लिया हो.... विचार करिये
जय नकलंक देव
जय जय भड़ास

भारतीय नागरिक - Indian Citizen ने कहा…

कुरीतियों को दूर किया जाता है जो कि हिन्दुओं ने भली-भांति किया है. न कि सामान्य नियम बना दिया है जिसके बारे में कहूंगा नहीं आप स्वयं जानते हैं... छलनी भी सूप पर उंगलियां उठा सकती है...

आर्यावर्त डेस्क ने कहा…

उदाहरण देकर कुरित्यों का वर्णन सटीक रहा, क्या अब भी हिन्दू के ठेकेदार काँव काँव करेंगे जो अपने ही धर्म के लोगों को मंदिर इस लिए नहीं घुसने देते क्यूंकि वो हिन्दुओं में अछूत है.
जय जय भड़ास

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